पलायन जब भी होता है तो उसके पीछे कोई वजह होती है....कौन अपना आशियाना छोड़ कर जाना चाहता है...कौन अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ कर जाना चाहता है....किसे अपने लोग प्यारे नहीं...कौन अपने इलाके से मोहब्बत नहीं करता...लेकिन ये जो जोशीमठ की दरारें हैं...ये पलायन ही कराएंगी. घर बार छुड़वाएगी.दूर ही तो करेगी अपनों को अपनो से...अपने घर से.. खेत से खलिहान से... अपनी दुकान से ...अपने फिजाओं से अपने आसमान से.



जोशीमठ में इनका घर जब तक रहने लायक था, रहे. लेकिन अब स्थिति खराब है. प्रशासन का आदेश आ गया है...घरों पर लाल निशान लगा दिया गया है. तो लोग अपने घर- बार छोड़ कर जा रहे हैं. अपना मकान छोड़ कर जा रहे हैं. अपने अरमान छोड़ कर जा रहे हैं.


लोगों का सोचना है कि अब छत नहीं बची. सर छुपाने का स्थायी ठिकाना क्या होगा. बच्चों के भविष्य क्या होगा...क्या खाएंगे....कब तक खाएंगे. लोन कैसे चुकाएंगे. पाली गई गाय भैसों का क्या होगा. इनके भारी मन में कई सवाल हैं. एक ओर जोशीमठ के जमीन में पड़ी दरारें हैं जो दिख रही हैं. और दूसरी ओर वो फटा हुआ मन है जो इनसे चहरे पर साफ दिखाई दे रहा है.



आइए जोशीमठ की जड़ों में चलते हैं 


जहां आदि शंकराचार्य को ज्ञान मिला. आज भी उस शहतूत के पेड़ को संभाल कर रखा है जोशीमठ ने. जिसे लोग कल्पवृक्ष के नाम से जानते हैं. लेकिन दरकती जमीन से मंदिर टूट गया. मतलब साफ है कि प्राकृतिक चीजों को संभालने की क्षमता है अभी भी उसमें. लेकिन विकास के नाम पर मानवीय गलतियों को ढोने का जिम्मा उसने नहीं ले रखा है. 


यहां भगवान नरसिंह का मंदिर है. जहां भक्त प्रह्लाद ने तपस्या की. प्रह्लाद, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, गणेश का नाम का कुंड है. ये तीर्थस्थल है. लेकिन इसे टूरिस्ट स्पॉट बना दिया तो भुगतेंगे ही ना हम. बिस्कुट, चिप्स, सिगरेट के पैकेट हर वो चीज जिसे तामसिक माना गया है वो मिल जाएगी. जब पूरे जोशीमठ कि कल्पना ही सात्विक है तो यहां तामसिक प्रवृत्ति होना भी सवाल खड़ा करेगा कि नहीं करेगा? जब पूरा भू-भाग खाली है तो यही बस्ती घनी करना सवाल खड़े करेगा कि नहीं करेगा ? बड़े बड़े होटल बनाना सवाल तो खड़े करेगा की नहीं करेगा ?


2011 की जनगणना कहती है कि जोशीमठ की आबादी करीब 17 हजार तभी हो चुकी थी. अब उसके दोगुने का आंकड़ा वहां बसता है, जो जगह मान्यताओं के लिए बनाई हो. जो जगह एकांत के लिए बनी हो. जो जगह शांति के लिए बनी हो. जो जगह ज्ञान के लिए बनी हो. ऊर्जा-संचार के लिए बनी हो. उसका ये हाल ? तो आपदा-विपदा बर्बादी-तबाही शब्दों से परहेज़ नहीं होना चाहिए. अपनी बर्बादी अपनी आंखों से देखने को तैयार होना चाहिए. अपनी पीढ़ियों को दी जाने वाली विरासत को अपने कर्मों से बर्बाद करने पर गम नहीं चिंतन होना चाहिए. सिर्फ जोशीमठ नहीं पूरे देश में अपने आने वाली पीढ़ियों को हम कितना सुरक्षित भविष्य दे रहे हैं इस पर मंथन होना चाहिए. पूरा विश्व सिर्फ #saveearth ना चलाएं. काम करें नहीं तो सब मारेंगे. लिख कर रख लीजिए. 


मुआवजे के नाम पर मजाक


10 वैसे घर हैं जो पूरी तरह खत्म हैं उन्हें सरकार मुआवजा देगी. एक मकान का सरकार 1 लाख 30 हजार रुपए मुआवजा देगी. बताइए ये मजाक नहीं तो और क्या है ? जिन लोगों को विस्थापित किया जा रहा है उनके लिए मात्र 5 हजार. क्या इससे वो अपने पूरे महीने का खर्चा चला पाएंगे ? सुबह का नाश्ता, दिन में खाना, रात का खाना पूरे परिवार का. बच्चों की पढ़ाई. बुजुर्गों की देखभाल, दवाइयों का खर्चा चला पाएंगे ?


यहां एक सवाल है


आम तौर पर जिस बैठक में मुआवजे की राशि तय की जाती है उसमें आईएएस लेवल के अधिकारी और नेता होते हैं. क्या उनकी संवेदना इतनी मर गई है या फिर वो इस समाज में नहीं रहते की महंगाई में इतने रुपए से क्या होगा उन्हें नहीं पता? ये बस सरकार का जिम्मा छुड़ाने की चालाकी भर है. ये जो जोशीमठ के लोग भुगत रहे हैं ना ये सिर्फ इनके बाप-दादाओं और उनके नेताओं की गलती है.


कई रिपोर्ट आई लोग नहीं चेते


1976 में रिपोर्ट आई थी कि लैंडस्लाइड के मलबे पर बना जोशीमठ के विनाश का कारण ज्यादा निर्माण बनेगा तब नहीं चेते. तब से अब तक 7 बार बीजेपी 4 बार कांग्रेस के सांसद चुने गए इस क्षेत्र से उन्होंने कुछ नहीं किया. वोट लेने के लिए जनता को बर्बाद करने में योगदान देते रहे. और तो और दिसंबर 2009 में एक रिपोर्ट आई. सरकार ने तब भी चेताया. टनल बोरिंग मशीन ने एक जल स्रोत पंचर कर दिया था. तब भी हालात खराब हुए थे. 2010 को Disaster Looms Large Over Joshimath के नाम की रिपोर्ट छापी गई. तब भी होश नहीं आया. तो अब भुगतना तो पड़ेगा. सरकार ने वार्निंग नहीं दी कि प्रकृति ने नहीं चेताया? आप बताइए.


जोशीमठ आज बेहाल है. लोग मजबूर है. प्रशासन कछुए का पुराना यार है उसी की गति से चलता है. सरकार और नेताओं को सिर्फ वोट चाहिए. हमें अपनी पीढ़ियों का भविष्य बचाना है. 
एक शेर है कि 


इससे पहले कि बे- वफ़ा हो जाएं
क्यों ना ए दोस्त हम जुदा हो जाएं..


तो इससे पहले की पहाड़ अपना धैर्य तोड़ दें. जोशीमठ में जिन लोगों को घर छोड़ने को कहा गया है वो अपना घर छोड़ दें. हां, प्रशासन से, सरकार से मुआवजा जरूर लें क्योंकि अपने मेहनत की कौड़ियों से खड़ी कि गई एक एक दीवार की ईट. खर्च की गई उम्र के सीमेंट से बनती है.


[ये आर्टिकल व्यक्तिगत राय पर पूरी तरह से आधारित है]