कारगिल युद्द के 19 साल बाद भी उसकी यादें धुंधली नही हुई है. आम लोगों के मन में इस युद्ध के शहीदों की शहादत का सम्मान रस्मी नही बल्कि दिल से जुड़ा है. ये मान-सम्मान ही कारगिल युद्ध के शहीदों के परिवार वालों का मरहम है. इसकी झलक कारगिल युद्ध के हीरो, शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता जीएल बत्रा की बातों में मिलती है. कैप्टन बत्रा के पिता ने कारगिल पर एक किताब की प्रस्तावना लिखते हुए जो बातें लिखी हैं वो दिल को छू जाती हैं. . कैप्टन बत्रा के पिता लिखते हैं कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बहादुर बेटा ऐसे अनुपम सम्मान का भागीदार बना जाएगा, जो देश भर के लोग उन्हें पिछले 20 सालों से दे रहे हैं.

सूरत में भीगी पलकों के सामने विक्रम आ गया

उन्होंने लिखा है - “हमने कल्पना भी नहीं की थी कि एक सुपुत्र कभी अपने अभिभावकों को इतना सम्मान दिला सकता है, जितना हमें उसकी शहादत के बीस साल बाद भी देश के लोगों से मिल रहा है. एक परमवीर चक्र प्राप्त सुपुत्र के गौरवांवित अभिभावक के रूप में उसने हमारा मान-सम्मान बढ़ा दिया.” पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने सूरत (गुजरात) के बाशिंदों द्वारा किए गए स्वागत-सम्मान का जिक्र कुछ यूं किया है- “जब बग्घी पर सवार कोई 20 किलोमीटर लंबे मार्ग से हम गुजरे तो रास्तों के दोनों ओर खड़े लगभग चार लाख सूरतवासी पंखुड़ियों की वर्षा कर स्वागत करते रहे. इसने मुझे भावुक कर दिया. भीगी पलकों के सामने विक्रम आ गया. मैंने सोचा काश, यह सम्मान देखने के लिए मेरे बेटे को और जीवन मिला होता”

गौरव से भरे बत्रा कहते हैं कि मुझे हर पल बेटे की याद आती है, लेकिन यह सोच कर शांति मिल जाती है कि आत्मिक रूप से वह उनके साथ है. उन्होंने लिखा “ऐसे अनमोल रत्न का जाना निश्चित ही दुखदायी है, लेकिन ऐसा बेटा पाना भी बहुत किस्मत की बात है. हमें आजीवन उस पर गर्व रहेगा” .

8 जुलाई को शहीद हुए कैप्टन बत्रा

कारगिल युद्ध 3 मई 1999 को शुरू हुआ था, जब स्थानीय चरवाहों ने सूचना दी कि पाकिस्तानी घुसपैठिये भारतीय सीमा में घुस आए हैं. पाकिस्तानी सेना की दो ब्रिगेड भारतीय सीमा में घुस कर सेना के सामने चुनौती बन आ खड़ी हुई थीं. यह ऐसी घुसपैठ थी, जिसके बारे में भारतीय सेना कल्पना तक नहीं कर सकती थी. प्रारंभिक दौर में भारतीय सेना के हमले कमजोर रहे, लेकिन 8 जुलाई 1999 की सुबह भारत ने पॉइंट 4875 जीत लिया. अलबत्ता इस जंग में 24 साल के बहादुर कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए. पॉइंट 4875 जीत लेने के बाद लद्दाख से संपर्क मार्ग सुरक्षित हो गया. भारतीय सेना के वाहन अब श्रीनगर-लेह हाईवे पर आसानी से आ-जा सकते थे.

बेटे की शहादत का दुख औऱ गौरव

बत्रा उन पलों को याद करते हैं जब विक्रम की पार्थिव देह घर लाई गई. वह सब बहुत ह्रदय विदारक था. “गालों पर बहते आंसुओं के बीच मेरी पत्नी ने कहा ‘कोई माता-पिता अपने जवान बेटे का मृत शरीर नहीं देख सकते. अपने बेटे ने तीन चोटियां फतह कीं. उसने देश को तूफान से बचा लिया, लेकिन अब वह हमारे बीच नहीं है. जब भी भगवान हमें अपार दुख देता है, वह उसे सहने की शक्ति भी देता है. गुरु गोबिंद सिंह ने देश पर अपने चार बेटे कुर्बान कर दिए. शायद यही कारण होगा कि भगवान ने मुझे जुड़वां बेटे दिए हैं – एक देश पर कुर्बान होने के लिए और दूसरा मेरे लिए.”

‘जंग जीत कर तिरंगा लहराता आउंगा’

बत्रा ने अपनी प्रस्तावना में यह भी लिखा है कि विक्रम के एक दोस्त ने उसे सतर्क किया था कि वह सावधान रहे, क्योंकि जंग शुरू हो चुकी है. इस पर विक्रम ने उसे जवाब दिया, ‘चिंता मत करो, या तो मैं जंग जीत कर तिरंगा लहराता हुआ आऊंगा, या उसी को ओढ़ कर वापस लौटूंगा.’ बत्रा कहते हैं, विक्रम ने अपनी दोनों बातें निभा दीं. दिल को छू लेने वाले अंदाज में उन्होंने लिखा, “उसने भारत का विजयी तिरंगा 17 हजार फुट की ऊंचाई पर लहरा दिया, जब उसे पॉइंट 5140 को फतह करने में कामयाबी मिली. बाद में जब वह देश के लिए पॉइंट 4875 हासिल करने की जंग लड़ते-लड़ते शहीद हो गया, तो उसका शरीर हमारे राष्ट्रीय ध्वज में लपेट कर घर लाया गया. हमारे बेटे विक्रम की बहादुरी और देशभक्ति ऐसी महान थी”

किताब में है युद्ध का आंखों देखा हाल

कैप्टन बत्रा के पिता ने ये बातें कारगिल युद्ध पर लेखक-पत्रकार हरिंदर बवेजा की एक किताब ‘अ सोल्जर्स डायरीः कारगिल, द इनसाइड स्टोरी’ की प्रस्तावना में लिखी हैं. डायरी के रूप में लिखी गई ये ये किताब कारगिल युद्ध का आंखों देखा हाल है. इसमें कारगिल युद्द की तमाम अहम घटनाओं का विस्तृत वर्णन है. रॉली बुक्स द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का दूसरा व संशोधित एडिशन 26 जुलाई 2018 को कारगिल विजय दिवस पर जारी किया जा रहा है. उस युद्ध में अग्रिम पंक्ति के कमांडर्स में से एक के द्वारा वर्णित आंखों देखा हाल के आधार पर बवेजा ने इस किताब का तानाबाना बुना है.इस नए संस्करण में जीएल बत्रा की प्रस्तावना भी शामिल है, जो सर्वोच्च बहादुरी सम्मान परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता हैं.

(पत्रकार व लेखक रशीद किदवई ओआरएफ के विजिटिंग फेलो हैं)