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अवसरवादी और सत्ता लोलुप नीतियों का ट्रूडो को भुगतना पड़ा खमियाजा, पीएम से इस्तीफे का ट्रंप से भी कनेक्शन

कनाडा के प्रधानमंत्री पद से जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा अवश्यंभावी था. ट्रूडो के समक्ष कोई विकल्प नहीं रह गया था बजाय इसके कि वह इस्तीफा दे दे. ट्रूडो की सरकार एक डूबता हुआ जहाज थी. सोमवार को ट्रूडो के एलान से ये जाहिर है कि जहाज डूब गया है और उनकी सरकार गिर गई है. ट्रूडो की सरकार का पतन और उनका इस्तीफा उनके अनेक गलत निर्णयों की वजह से हुआ है. अनेक अवसरवादी सत्ता लोलुप नीतियों की वजह से ऐसा हुआ है. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अनेक ऐसी गलतियां कीं, जिससे उनकी छवि पर नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ा. 

जस्टिन ट्रूडो ने अपनी सत्ता लोलुपता और अवसरवादिता की वजह से भारत-कनाडा के महत्वपूर्ण संबंधों को दांव पर लगाया, अपनी अल्पमत सरकार को बचाए रखने के लिए उन्होंने खालिस्तान समर्थक आतंकवादी और अतिवादी तत्वों से हाथ मिलाया. 

न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के लीडर जगमीत सिंह के साथ ट्रूडो ने एक समझौता किया. रवनीत सिंह और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के इशारे पर उन्होंने भारत विरोधी स्टैंड लिया, आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के संदर्भ में कनाडा की संसद में जाकर बेबुनियाद आरोप भारत के ऊपर लगाए. इन सभी चीजों से ये साफ जाहिर होता है कि भारत-कनाडा के संबंधों में बहुत ही ज्यादा नकारात्मक गिरावट आई है, जिसका परिणाम ये हुआ कि जस्टिन ट्रूडो की अवसरवादी और सत्ता लोलुपता में लिप्त चरित्र सबके सामने एक्सपोज हुआ है. उनकी छवि नि:संदेह प्रभावित हुई है. 

विद्रोह का सामना कर रहे थे ट्रूडो

दूसरा फैक्टर अगर देखें तो घरेलू स्तर पर भी वे लिबरल पार्टी के अनेक सांसदों की तरफ से आलोचनाओं के शिकार हो रहे थे. जस्टिन ट्रूडो की अपनी लिबरल पार्टी के अंदर ही उनके खिलाफ एक विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई थी. हाल के समय में उनके बड़े मंत्रियों ने जस्टिन ट्रूडो सरकार से इस्तीफा देना शुरू कर दिया था, जिसमें लिबरल पार्टी की एक बड़ी नेता और डिप्टी प्राइम मिनिस्टर एवं वित्त मंत्री फ्रीलैंड भी शामिल थीं.

यानी, जिस तरह से जस्टिन ट्रूडो की पार्टी के अनेक बड़े नेताओं ने एक के बाद एक इस्तीफा देना शुरू किया, उससे यह जाहिर होता है कि जस्टिन ट्रूडो की सरकार लगातार कमजोर पड़ती चली गई. एक और बात जो महत्वपूर्ण है वो ये कि अभी जब यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने जा रहे हैं और ट्रंप का ट्रूडो के साथ जिस तरह का तनाव ग्रस्त संबंध पहले भी रहा है, ऐसे में आगे चलकर एक बार फिर से उसी तरीके की स्थितियां कनाडा-अमेरिका के संबंधों में भी बन सकती थी. 

अभी हाल में जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा को अपने 50 फर्स्ट स्टेट के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू किया, उन्होंने जिस तरीके के बयान दिए, वे जस्टिन ट्रूडो की सरकार के लिए काफी सिरदर्द पैदा करने वाला था कि कैसे कोई पड़ोसी राष्ट्र आपके देश को अपना एक प्रांत बता दे.

ट्रंप से भी ट्रूडो का रहा तनावग्रस्त संबंध

इन सभी चीजों से जाहिर है कि जस्टिन ट्रूडो अपनी छवि खराब कर रहे थे. ऐसे में ट्रूडो सरकार गिरी और अमेरिका-कनाडा के संबंधों में भी कोई बड़ी प्रगति भविष्य में भी होने की संभावना नहीं दिखाई दे रही है. 

ट्रूडो न सिर्फ अपनी घरेलू नीतियों की वजह से बल्कि स्वार्थपरता और अवसरवादिता की वजह से और वैदेशिक स्तर पर भारी गलतियों के चक्कर में उन्होंने विश्व के बड़े लोकतंत्र जैसे भारत-अमेरिका से अपने संबंध खराब कर लिए थे. वे चौतरफा घिरते गए और जब वे आंतरिक रूप से कमजोर पड़ने लगे, तब उनकी पार्टी के अंदर भी उनके खिलाफ विद्रोह की स्थिति पैदा हुई. 

इससे पहले, जब कनाडा के डिप्टी पीएम पद से फ्रीलैंड ने इस्तीफा दिया, ये भी जाहिर करता है कि इससे उनकी स्थिति और भी ज्यादा कमजोर पड़ी. उसके बाद ट्रंप के लिए ये गिनती के ही दिन बचे थे कि कब वे इस्तीफा दे और आखिरकार जल्द ही वो समय भी आ गया. ट्रूडो ने पीएम पद से इस्तीफे के वक्त एक बड़ा ही भावुक भाषण दिया. इसमें उन्होंने अपने आपको एक फाइटर बतया. लेकिन अगर जस्टिन ट्रूडो को अपने आने वाले भविष्य को अब बेहतर बनाना है तो एक पॉलिटिशियन के तौर पर ये उनके लिए एक आत्मनिरीक्षण और आत्म अवलोकन का समय है. 

यदि वे आने वाले समय में अपने विजन में, अपने राष्ट्र के प्रति, अपनी राजनीति के अप्रोच के प्रति जो उनका रवैया है, उसमें अगर कोई सुधार लाते हैं, अगर वे अपनी गलतियों से सीखते हैं तो ही उनका राजनीतिक भविष्य बेहतर बन सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो जाएंगे. 

ट्रूडो के इस्तीफे के बाद उनकी लिबरल पार्टी अब एक नया नेता का चुनाव करेगी. पार्टी के अनेक सांसदों को ऐसा लगता था कि जो कनाडा अक्टूबर के महीने में जो आम चुनाव होना है, जिसे समय से पहले भी कराया जा सकता है... ऐसे में ट्रूडो की पार्टी चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी. इसी वजह से आंतरिक विद्रोह की स्थिति इतनी ज्यादा विकेट हो गई कि उनके पास इस्तीफा देने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा. 

यानी, ट्रूडो सरकार के अंदर का जो कुछ भी घटनाक्रम है, वो खुद उनकी अपनी स्वयं की भारी गलतियां हैं. इसी का परिणाम है कि आज जस्टिन ट्रूडो ना सिर्फ प्रधानमंत्री पद से हटेंगे बल्कि अपने पार्टी के नेता के पास से भी हटेंगे. अब ये उम्मीद की जानी चाहिए कि ट्रूडो के बाद लिबरल पार्टी का जो अब नया नेता होगा या फिर चुनाव के बाद जो भी पार्टी सत्ता में आती है, उससे उनके नेतृत्व में भारत और कनाडा के संबंधों में सुधार आएगा. क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम से जो सीख लिया जा सकता है वो ये कि यदि कोई राष्ट्र का नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ की सिद्धि के लिए अकट्टरपंथियों, अतिवादी आतंकवादियों से हाथ मिलता है तो फिर उसका वही परिणाम होगा जो आज ट्रूडो का हुआ है. आज जस्टिन ट्रूडो को अपनी क्रेडिबिलिटी लॉस के रूप में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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