कामिनी कौशल हिन्दी सिनेमा की एक ऐसी शानदार अभिनेत्री हैं. जिनका नाम फिल्म इतिहास के सुनहरे पन्नों पर लिखा है. उनके खाते में कई अच्छी और यादगार फिल्मों के साथ कई बड़े सम्मान भी हैं. बड़ी बात यह है कि अब जब वह 94 बरस की हो गयी हैं तब भी उनकी बातें, उनकी सुंदरता और उनकी फिटनेस मन मोह लेती है. उनके इस 94वें जन्म दिन पर इस खूबसूरत अदाकारा की ज़िंदगी और फिल्मों को लेकर, वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना बहुत सी खास बातें बता रहे हैं.


अपने जमाने की बेहद खूबसूरत नायिका कामिनी कौशल आज 94 बरस की हो गयी हैं. आज देश में इतनी उम्र की कोई और फिल्म अभिनेत्री नहीं हैं. इसलिए कामिनी कौशल अब देश की सर्वाधिक आयु वाली अभिनेत्री हैं. उधर देश के सर्वाधिक आयु के अभिनेता दिलीप कुमार हैं, जो गत 11 दिसम्बर को अपनी उम्र के 97वें साल में प्रवेश कर चुके हैं.


इसे संयोग कहें या कुछ और कि आज के देश के सबसे अधिक उम्र के अभिनेता दिलीप कुमार और आज की सबसे अधिक उम्र की अभिनेत्री कामिनी कौशल के बीच, कभी इतने मधुर संबंध और प्रेम था कि दिलीप कुमार, कामिनी कौशल के साथ शादी करने वाले थे. दोनों की शादी होने ही वाली थी. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी कि कामिनी कौशल ने दिलीप कुमार को शादी के लिए मना कर दिया. वरना आज भारतीय सिनेमा की इन दो शानदार शख्सियत को हम एक अलग रूप में, एक अलग ढंग से भी याद कर रहे होते.



हालांकि आज भी सिनेमा के ये दो ऐसे ‘लिविंग लिजेंड्स’ हैं, जिन पर हम नाज़ कर सकते हैं, फक्र कर कर सकते हैं. ये दोनों उम्र के अपने इस पड़ाव में भी बेहद खूबसूरत लगते हैं. हालांकि दिलीप साहब की याददाश्त उनका साथ छोड़ चुकी है. वह ज्यादा बोल भी नहीं पाते. लेकिन कामिनी कौशल अपनी इस उम्र में भी काफी सुंदर लगती हैं. उन्हें आज भी अपनी बरसों पुरानी बातें काफी हद तक याद हैं. अपनी उम्र के हिसाब से वह काफी चुस्त दुरुस्त हैं.


मैं उनसे जब जब मिला हूँ. उनसे एक नयी ऊर्जा, एक नयी प्रेरणा, एक नयी खुशी लेकर लौटा हूँ. इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि साल भर में उनसे चार पाँच बार फोन पर भी बात कर लूँ. क्योंकि इस महान अभिनेत्री की सादगी और किस्म किस्म की बातों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. वह हमेशा खुश होकर बात करती हैं. लेकिन हाल ही में उनसे दो तीन बार जब भी बात हुई तो वह काफी उदास थीं, दुखी थीं. क्योंकि कुछ समय पहले उनके बड़े पुत्र राहुल सूद का निधन हो गया है. यही कारण है कि इस बार उनके 94 वें जन्म दिन पर कोई विशेष समारोह नहीं हो रहा है.


मैंने आज भी कामिनी कौशल से बात की और कल भी दो बार लेकिन वह इतनी उदास थीं कि बात नहीं कर पा रही थीं. अन्यथा वह हमेशा उत्साह और उमंग से बात करती हैं.


क्यों नहीं हो सकी दिलीप कुमार से शादी


दिलीप कुमार ने अपने फिल्म करियर की शुरुआत 1944 से की थी और कामिनी कौशल ने उनसे दो बरस बाद 1946 में फिल्मों में अपना पहला कदम रखा. लेकिन इन दोनों की पहली फिल्म आई सन 1948 में- ‘शहीद’. दोनों की यह पहली फिल्म इतनी सफल हुई की यह उस साल की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल हो गयी. हालांकि तब तक दिलीप कुमार नूरजहां, मुमताज़ शांति और नर्गिस जैसी नायिकाओं के साथ फिल्में करके मशहूर हो चले थे. उधर कामिनी कौशल भी राज कपूर और देव आनंद जैसे नायकों के साथ फिल्में कर चुकी थीं. लेकिन ‘शहीद’ के बाद दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की जोड़ी यकायक बेहद लोकप्रिय हो गयी.



‘शहीद’ का निर्माण उस समय के प्रतिष्ठित और सफल प्रॉडक्शन हाउस फिल्मिस्तान ने किया था. दोनों के जोड़ी की लोकप्रियता देख फिल्मिस्तान ने दिलीप कुमार और कामिनी कौशल को लेकर एक और फिल्म ‘नदिया के पार’ भी झटपट शुरू कर दी. सन 1948 के अंत में जब ‘नदिया के पार’ रिलीज हुई तो यह फिल्म भी सफल हो गयी. इन दो फिल्मों में साथ काम करते हुए, दिलीप कुमार और कामिनी कौशल करीब आ गए और दोनों ने शादी करने का निर्णय ले लिया. लेकिन तभी कामिनी कौशल की बड़ी बहन उषा सूद का निधन हो गया. उषा तब दो बच्चियों कुमकुम और कविता की माँ थीं. कामिनी अपनी बहन और भाँजियों से बहुत प्रेम करती थीं और उनसे काफी घुली मिलीं थीं. उषा के निधन के बाद इन दो बच्चियों की ज़िंदगी खराब न हो और उनकी जीजा बीएस सूद दूसरी शादी करके कविता और कुमकुम के लिए सौतेली माँ न ले आयें, यह सोचकर कामिनी ने अपने जीजा बीएस सूद से शादी कर ली. अपनी बहन की बेटियों के लिए अपना फर्ज़ निभाने के लिए कामिनी कौशल ने अपने प्रेम का त्याग कर दिया. दिलीप कुमार तब कामिनी के इस निर्णय से काफी आहत हुए. लेकिन कामिनी का यह त्याग तब बहुतों के लिए एक नयी मिसाल बना.


उधर ‘शहीद’ और ‘नदिया के पार’ के बाद दिलीप कुमार और कामिनी दो और फिल्मों ‘शबनम’ और ‘आरज़ू’ में भी साथ आए. ये दो फिल्में भी सफल रहीं. ‘शबनम’ में तो कामिनी कौशल का काम देखकर दिलीप कुमार उनके अभिनय के भी कायल हो गए. लेकिन तब कामिनी ने फैसला लिया कि अब वह दिलीप कुमार के साथ फिल्में नहीं करेंगी. इसलिए 1950 में प्रदर्शित ‘आरजू’ दोनों की आखिरी फिल्म बन गयी.


कैसे हुआ फिल्मों में आना


बता दें की कामिनी कौशल का मूल नाम उमा कश्यप था. जिनका जन्म 25 फरवरी 1927 को लाहोर में हुआ था. उमा के पिता शिव राम कश्यप उस दौर में बॉटनी के मशहूर प्रोफेसर थे. हालांकि उमा सिर्फ 6 साल की थीं, जब उनके पिता का निधन हो गया. तब उनके बड़े भाई अमर और केदार ने उनका पालन पोषण किया, उन्हें पिता का प्यार दिया. उमा जो भी करना चाहती थीं, उन्हें वह सब करने दिया. जबकि उस दौर में लड़कियों के लिए काफी बन्दिशें थीं. लेकिन उमा शुरू से रचनात्मक कार्यों में काफी दिलचस्पी लेती थीं.


लाहोर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उमा रेडियो नाटक करने लगी थीं. एक दिन चेतन आनंद ने उनको रेडियो नाटक करते देखा तो वह उमा से बोले कि मेरी फिल्म में काम करोगी. असल में चेतन आनंद भी तब रंगमच से ज्यादा जुड़े थे. उन दिनों वह विश्व प्रसिद्द रूसी साहित्यकार मैक्सिम गोर्की के नाटक ’द लोअर डेप्थ्स’ से प्रेरित होकर अपनी पहली फिल्म ‘नीचा नगर’ बनाने की तैयारियों में जुटे थे. जब चेतन ने उमा को फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया तो वह समझ नहीं पाईं कि क्या कहूँ. तब चेतन ने कहा मैं तुम्हारे भाई को जानता हूँ उनसे बात कर लूँगा तुम पहले अपना मन बना लो.


तब चेतन ने उनके भाई से बात की तो भाई ने खुद आगे बढ़कर अपनी बहन को फिल्मों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. तब उमा कश्यप को चेतन ने अपनी फिल्म ‘नीचा नगर’ में रूपा की भूमिका के लिए चुन लिया. लेकिन समस्या यह थी कि इस फिल्म में चेतन की पत्नी उमा आनंद भी माया की भूमिका कर रही थीं. इसलिए एक फिल्म में दो दो उमा न हों. यह सोचकर चेतन ने उमा कश्यप को एक नया नाम दिया- कामिनी कौशल.


‘नीचा नगर’ का प्रथम प्रदर्शन 29 सितंबर 1946 को फ्रांस के प्रसिद्द कान अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में किया गया तो यह फिल्म काफी पसंद की गयी. फिल्म को समारोह में पुरस्कृत भी किया गया. इससे देश की यह पहली फिल्म बन गयी जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मानित हुई. इसके बाद कामिनी कौशल भी सुर्खियों में आ गईं. उनके अभिनय और उनकी सुंदरता से कई फ़िल्मकार प्रभावित होने लगे.


शिक्षक बनना चाहती थीं कामिनी कामिनी कौशल अपनी बातचीत में बताया था कि वह रेडियो नाटक और अन्य रचनात्मक कार्य तो करना चाहती थीं. लेकिन फिल्मों में काम करने का उनका कोई इरादा नहीं था. वह खुद एक टीचर बनना चाहती थीं जबकि उनके भाई चाहते थे कि वह एक डॉक्टर बनें. लेकिन नियती ने उन्हें एक अभिनेत्री बना दिया.


कामिनी कौशल ने ‘नीचा नगर’ के बाद कई शानदार फिल्में कीं. जिनमें जेल यात्रा, दो भाई, शायर, राखी, पारस, नमूना, बिहरे मोती, शहंशाह, आस, चालीस बाबा एक चोर, जेलर, बड़े सरकार, आँसू, राधा कृष्ण, नाइट क्लब और गोदान जैसे कई नाम शामिल हैं. इन फिल्मों में कामिनी कौशल ने अपने दौर के कई प्रमुख नायकों के साथ काम किया. जिनमें दिलीप कुमार के साथ अशोक कुमार, राज कपूर और देव आनंद जैसे दिग्गज भी थे.


‘बिराज बहू’ के लिए मिला था फिल्मफेयर


कामिनी कौशल के करियर में यूं तो कई शानदार फिल्में हैं. लेकिन ‘बिराज बहू’ को उनकी बेहतरीन फिल्म कहा जाता है. इस फिल्म के लिए कामिनी कौशल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था. इस फिल्म का निर्देशन भी बिमल राय सरीखे निर्देशन ने किया था. फिर यह फिल्म शरत चंद्र के उपन्यास ‘बिराज बहू’ पर आधारित थी. जिसमें नायिका बिराज की ज़िंदगी की दुख भरी गाथा सभी को झकझोर देती है. कामिनी कौशल ने एक बार कहा बताया था-‘’ मैंने बिराज के चरित्र को आत्मसात करने के लिए ‘बिरज बहू’ उपन्यास को 22 बार पढ़ा था.


75 साल का शानदार सफर


भारतीय सिनेमा की यह दिग्गज अभिनेत्री जहां अपने जीवन के 94 वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हैं. वहाँ उन्हें फिल्मों में काम करते हुए भी पूरे 75 साल हो गए हैं. फिल्मों में इतनी लंबी पारी खेलने का भी यह एक रिकॉर्ड है. असल में ज्यादातार अभिनेत्रियाँ पहले तो इतनी उम्र तक पहुँच ही नहीं पातीं. यदि कोई पहुँचती हैं तो वे तब तक फिल्मों से दूर हो चुकी होती हैं. लेकिन कामिनी कौशल ने 1946 में जो अपना फिल्मी सफर शुरू किया था वह अभी तक जारी है. यूं वह अब फिल्में कभी कभार और किसी निर्माता के विशेष आग्रह पर ही करती हैं. लेकिन इस उम्र में कभी कभार फिल्में करने से उनका फिल्म सफर अभी थमा नहीं है.


नायिका के रूप में कई अच्छी और सफल फिल्में करने के बाद जब उन्होंने चरित्र भूमिकाएँ करनी शुरू कीं तो उन्हें उसमें भी अच्छी सफलता मिली. अभिनेता मनोज कुमार ने तो कामिनी को अपनी अधिकतर फिल्मों में अपने साथ लिया. जिनमें उनकी स्वयं निर्मित-निर्देशित फिल्में उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर, रोटी कपड़ा और मकान और संतोष हों. या फिर मनोज कुमार की यादगार, संन्यासी, दस नंबरी.


इसके अलावा भी कामिनी कौशल की उपहार, दो रास्ते, हीर राँझा, इश्क़ पर ज़ोर नहीं, हारजीत, अनहोनी, प्रेम नगर, अपने रंग हज़ार, नेहले पे दहला, स्वर्ग नर्क, हम शक्ल गुमराह, हर दिल जो प्यार करेगा और लागा चुनरी में दाग जैसी कितनी ही फिल्में हैं जो उनकी लाजवाब अभिनय की गवाही देती हैं. पीछे 2013 में रोहित शेट्टी की फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में भी कामिनी ने शाहरुख खान की दादी का चरित्र निभाया था. साथ ही 2019 में प्रदर्शित फिल्म ‘कबीर सिंह’ में भी कामिनी कौशल,शाहिद कपूर की दादी बनकर आयीं.


नाज नखरों से रहती है दूर


कामिनी कौशल की एक खास बात यह भी है कि स्टारडम के शिखर को छूने के बावजूद उन्होंने कभी नाज नखरे नहीं दिखाये. वह हमेशा सादगी से जीवन जीती हैं. मुंबई में मालाबार हिल स्थित उनके घर में उनसे मुलाक़ात के बाद मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव भी रहा कि वह शान ओ शौकत दिखाने में ज़रा भी यकीन नहीं रखतीं. आज भी वह कुछ न कुछ क्रिएटिव करती रहती हैं. पहले कुछ बरस उन्होंने बच्चों के लिए कुछ सीरियल भी बनाए. फिर कठपुतली बनाने का और ‘पपेट शो’ करने का शौक तो उनका काफी पुराना है.



अपने काम के साथ वह अपने बच्चों को हमेशा काफी अहमियत देती हैं. मैं जब भी उनसे बात करता हूँ तो वह एक बात हनेशा कहती हैं –‘’मेरे बच्चे बहुत अच्छे हैं. सभी मेरा बहुत ख्याल रखते हैं. मेरा एक बेटा विदुर जो लंदन में रहता है, वह हर सुबह सबसे पहले मुझको फोन करता है.‘’


इसलिए उनके इस जन्म दिन पर जब उनके बड़े बेटे राहुल इस दुनिया में नहीं हैं तो वह काफी उदास हैं. मुझे याद है पिछली बार राहुल उनके जन्म दिन की तैयारी में दो तीन दिन पहले से ही जुटे हुए थे. मैं जब भी कामिनी जी पर कुछ लिखता तो उसे राहुल खुद भी चाव से पढ़ते और कामिनी जी को भी वह सब पढ़ाते थे.


अभी कुछ समय पहले राहुल सूद ने खुद भी अपनी मम्मी के बारे में बताया था - मॉम को मैंने अपने बचपन से बहुत मेहनत करते देखा है. अपने परिवार के लिए वह हमेशा पूरी तरह समर्पित रहती हैं. उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत पैसा कमाया लेकिन कभी फिजूल खर्च नहीं किया. स्टार की तरह शान दिखाने के लिए कभी पैसों को उड़ाया नहीं. जिस चीज की जरूरत थी वह हम सबको उपलब्ध कराई. भविष्य के लिए भी बचत करके अपने पूरे परिवार के लिए ऐसी स्थिति बना दी कि उस सब की बदौलत आज हम सब सुख चैन से जी पा रहे हैं. फिर उन्होंने हम सभी को भी मेहनत से काम करने का सलीका सिखाया. मॉम के कारण हम बहन भाइयों ने देश विदेश में कई जगह सैर की. कितने ही बड़े लोगों से मिले. आज भी मॉम के प्रति लोगों का प्यार सम्मान देखते हैं तो हमको उन पर गर्व होता है.‘’


इसमें कोई शक नहीं कि चका चौंध और ग्लेमर की दुनिया में बरसों रहने के बाद भी कामिनी कौशल की सादगी और उनकी मधुरता देखते ही बनती है. आज कुछ तो ऐसे कलाकार भी देखने को मिलते हैं जो अपनी किसी एक फिल्म की थोड़ी बहुत सफलता या किसी मात्र एक सीरियल की सफलता के बाद ही खुद को स्टार समझ लेते हैं. लेकिन कामिनी कौशल 75 साल के अपने शानदार लंबे सफर और ढेरों मान सम्मान पाने के बाद भी ज़मीन से जुड़ी हैं.


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म समीक्षक हैं )


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