कंझावला कांड: दोस्त निधि का बयान, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और नार्को टेस्ट... अंजलि की मौत बनी मिस्ट्री, आखिर कहां रह गई चूक
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कंझावला में 31 दिसंबर की देर रात अंजलि की एक रोड एक्सीडेंट में हुई मौत का रहस्य उसके दोस्त निधि के बयान, सीसीटीवी फुटेज और आरोपियों की पूछताछ में अलग-अलग बातों के बाद और गहराता जा रहा है. अंजलि की पोस्टमार्टम रिपोर्ट उसके जिस्म पर 36 जगहों पर 40 चोट के निशान हैं. दोस्त निधि ने यह दावा किया था कि अंजलि ने बहुत पी रखी थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये बात सामने नहीं आई है. इसके साथ ही, दिल्ली पुलिस ने रेप से इनकार किया है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अंजलि के परिवार की तरफ से लगाए गए आरोपों के बीच उसकी दोस्त निधि अपने बयानों को लेकर सवालों में आ चुकी हैं. इतना ही नहीं, सहेली निधि ने ये भी दावा किया कि अंजलि को कार के साथ करीब 12 किलोमीटर तक घसीटने वाले आरोपियों को यह पता था कि उनकी कार और स्कूटी में टक्कर के बाद कोई फंस गया, लेकिन वे रुके नहीं. निधि ने कहा कि वो इतना डर गई थी कि किसी को नहीं बताया और अपने घर चली गई.
अंजलि की मौत हत्या या हादसा?
कंझावला कांड के आरोपियों की संख्या अब पांच आरोपियों से बढ़कर सात हो गई है. दिल्ली पुलिस ने गुरुवार (5) दिसंबर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात की जानकारी दी है. कंझावला कांड के आरोपियों को क्या-क्या सजा मिलनी चाहिए. इस पर खूब बहस चल रही है. अंजलि की मां से लेकर हर कोई आरोपियों के लिए फांसी की सजा की मांग कर रहा है.
कंझावला कांड में सबसे बड़ी गवाही देने वाली सबसे बड़ी झूठी साबित हो रही है. सवाल तो निधि पर भी उठता है.आखिर वो क्या छुपा रही है.क्या निधि ने पुलिस के दबाव में झूठ बोला है?
कंझावला कांड को पूरे पांच दिन हो गए है. लेकिन दिल्ली पुलिस के हाथ अभी भी खाली ही नजर आ रहे हैं. केस से जुड़े आरोपियों को लेकर पुलिस गोल-मोल बयान देती नजर आ रही है. दिल्ली पुलिस के अधिकारी सागर पी. हुड्डा ने बताया कि अभी तक मर्डर का केस नहीं बन रहा है क्योंकि मर्डर के लिए मोटिव चाहिए होता है और अभी तक की जांच में कोई मोटिव सामने नहीं आया है. अधिकारी ने बताया कि इस केस पर 18 टीमें काम कर रही हैं.
निधि के बयान से मौत बनी मिस्ट्री
अंजलि का परिवार लगातार अपनी बेटी के लिए इंसाफ मांग रहा है. अंजलि का परिवार थाने के बाहर धरने पर बैठा और आरोपियों के लिए डेथ पेनल्टी जैसी बड़ी सजा की मांग की. हालांकि दिल्ली पुलिस बार बार कह रही है कि आरोपियों पर मर्डर केस दर्ज नहीं किया जा सकता क्योंकि हत्या करने का कोई इरादा नहीं था.
सोशल राइट एक्टिविस्ट शबनम खान कहती हैं -कंझावला कांड ने 2012 में हुए निर्भया कांड की यादें ताजा कर दी हैं. उस तरह ही दरिंदगी अंजलि के साथ इन दरिदों ने की है. यह बहुत खौफनाक है. अभी ये साफ नहीं हुआ है कि अंजलि के साथ रेप हुआ या नहीं हुआ, क्या पुलिस के लिए ऐसा जरूरी है कि बलात्कार होगा तभी मुद्दा गंभीर होगा.
दिल्ली पुलिस के रवैये पर सवाल
उन्होंने कहा कि पीडिता को 12किलोमीटर तक कार से घसीटा जाता है. दिल्ली पुलिस के डीएसपी जल्दबाजी में आते हैं और बिना जांच करे आरोपियों को क्लीन चिट दे देने की जल्दबाजी करते हैं. और डीएसपी अंजलि के माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं साथ ही मीडिया के साथ भी गलत व्यवहार करते हैं. दिल्ली पुलिस क्यों हर मामले को थाने के बाहार ही निपटाना चाहती है. अगर पुलिस दिल दहलाने वाले कंझावला कांड की निपष्क्ष जांच नहीं कर सकती है तो फिर दिल्ली के लोगों को पुलिस की इतनी लंबी चेन की जरूर ही क्या है. फिर तो पुलिस में डीएसपी से लेकर बड़े अधिकारियों की नियुक्ति की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए.
शबनम खान ने कहा कि ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि दिल्ली पुलिस के बड़े अधिकारी पीड़ित परिवारों की नहीं सुनते हैं. जब तक कोई मुद्दा बड़ा नहीं बन जाता है. जब तक मीडिया उस मुद्दे को ना उठाए. डीएसपी को सिर्फ तारीफ करने वाले लोग ही पसंद आते हैं अगर उनकी तारीफ नहीं करोगे और पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठा दिया तो समझो आप ने सबसे बड़ा गुनाह किया है ऐसा करने पर डीएसपी पुलिस स्टेशन में आप की एंट्री बैंन कर सकते है. पुलिस ने जो अमन कमेटी बना रखी है. उस में अपने चमचों को भर रखा है.
उन्होंने कहा कि जनता आखिर किस के पास अपनी शिकायत लेकर जाए. एसएचओ की शिकायत एसीपी से नहीं कर सकते हैं. एसीपी की शिकायत डीएसपी से नहीं कर सकते हैं. दिल्ली पुलिस के कमिश्नर किसी से नहीं मिलते हैं. वह सिर्फ उनकी तारिफ करने वालों लोगों से मिलते हैं. दिल्ली पुलिस को अपना रवैया बदलना होगा और अंजलि को न्याय देने के लिए पुलिस कमिश्नर को सड़क पर निकल कर जांच करनी होगी जब वह खुद घटना स्थल पर जाएंगे तो पुलिस डिपार्टमेंट में एक मैसेज जाएगा. एक- एक सिपाही अपनी ड्यूटी अच्छे से करेगा और अंजलि को न्याय मिलेगा.
[ये पूरी स्टोरी सामाजिक कार्यकर्ता शबनम खान से बातचीत पर आधारित है]