'मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन' रेवड़ी कल्चर से हो रहा है राज्यों की अर्थव्यवस्था का बंटाधार
रेवड़ी किसे नहीं भाती? इसका जिक्र होते ही मुंह में पानी आ जाता है. लेकिन रेवड़ी की तासीर तब बदल जाती है, जब उसे चुनाव में परोसा जाता है. फिर वह जीभ का स्वाद ही नहीं बदलती, चुनावी फिजा भी बदल देती है. चुनावी अखाड़े में दांव आजमा रहे पहलवानों की तो यह किस्मत ही चमका देती है. जिस पहलवान ने रेवड़ी का दांव सफलतापूर्वक लगा दिया, बाजी उसके हाथ होती है.
चुनावी रेवड़ी का दांव कोई नया नहीं है. सियासी खलीफा समय-समय पर इसे आजमाते रहे हैं. दक्षिण के राज्यों में तो चुनावी रेबड़ियां बांटे जाने का चलन आम रहा है. लेकिन आम आदमी पार्टी के दिल्ली और पंजाब मॉडल ने इसे संस्कृति का रूप दे दिया है.
अब तो चुनावी रेवड़ी सियासतदानों की रणनीति का हिस्सा बन गई है. वे बेझिझक इसकी वकालत करने लगे हैं. अगर कुछ लोग इसका विरोध करते दिखते हैं, तो वह विरोध भी जुबानी होता है. इसका उनके सियासी आचरण से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं होता. अभी अभी संपन्न हुआ कर्नाटक विधानसभा चुनाव इसका बेहतरीन उदाहरण है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में हर परिवार को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, घर की महिला मुखिया को महीने के दो हजार रूपये और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को हर महीने दस किलो मुफ्त चावल और बेरोजगार युवाओं को 1500 से 3000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया गया.
रेवड़ी बांटने में बजेपी भी पीछे नहीं है. कर्नाटक के लिए इसके घोषणापत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति के परिवारों को 5 साल के लिए दस हजार रुपये की FD करवाने, गरीब परिवारों को साल में तीन मुफ्त गैस सिलेंडर, रोज आधा लीटर नंदिनी दूध और हर महीने 5 किलो चावल और बाजरा मुफ्त देने का ऐलान किया गया था.
बात जहां तक जेडीएस की है, तो एचडी कुमारस्वामी की पार्टी का घोषणापत्र ही रेबड़ियों पर आधारित दिखता है. इसमें गर्भवती महिलाओं को 6 महीने तक 6 हजार रुपये, विधवा महिलाओं को 2500 रुपये की सहायता, एक साल में 5 फ्री गैस सिलेंडर और किसान के बेटे से किसी लड़की की शादी होने पर उसे 2 लाख रुपये की सब्सिडी देने की घोषणा की गई थी.
आम आदमी पार्टी की राजनीति का तो आधार ही दिल्ली मॉडल की रेवड़ी हैं. कर्नाटक में आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, छात्रों के लिए शहरों में मुफ्त बस यात्रा और 3000 रूपये की बेरोजगारी भत्ता को शामिल किया गया था.
अब किसे मतलब है कर्नाटक की आर्थिक सेहत से, जो पहले से ही साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये के कर्ज से दबा हुआ है. इसकी भरपाई सरकार अप्रत्यक्ष कर से ही कर सकती है, जिसका बोझ आखिरकार गरीबों को ही ढोना होगा. रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2021 तक देश के सभी राज्यों पर कुल 69.47 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. कहने का मतलब ये है कि स्थिति गंभीर है और चुनावी रेवड़ियों का कनात में परोसा जाना अगर जारी रहता है, तो तमाम चाकचिक्य (चमक) के बावजूद देश को अंधेरे के गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता.
लेकिन हकीकत से फ़साना हमेशा सुहाना होता है... और जब यह रेवड़ी की मिठास से सराबोर हो जाए, फिर कहने ही क्या ! मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)