लिव इन रिलेशनशिप में रह रही श्रद्धा वाकर के वहशियाना हत्याकांड के बाद देश में एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या लड़कियों को ऐसे रिश्तों को अपनाना चाहिए? ये भी कि ऐसी वारदात के लिए क्या सिर्फ लड़कियां ही कसूरवार हैं? दरअसल, केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने एक विवादित बयान देकर ये बहस छेड़ी है, जिसकी खूब आलोचना भी हो रही है.
 
केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने पढ़ी-लिखी लड़कियों को नसीहत दी है कि उन्हें अनपढ़ लड़कियों से सीखना चाहिए. पढ़ी-लिखी लड़कियां लिव-इन के लिए मां-बाप को छोड़ देती हैं. किसी को भी लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं जाना चाहिए. उनके मुताबिक, "ऐसी घटनाएं उन सभी लड़कियों के साथ हो रही हैं जो पढ़ी-लिखी हैं और सोचती हैं कि वे बहुत खुले विचारों की हैं, अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं. ऐसी लड़कियां लिव-इन में फंस जाती हैं. लड़कियों को ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं."


केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर के तर्कों को कुछ हद तक अगर सही मान भी लिया जाए तो सवाल उठता है कि आधुनिक समाज में अगर शिक्षित लड़कियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं तो अपनी निजी जिंदगी के फैसले लेने का हक आखिर उन्हें क्यों नहीं होना चाहिए? अब उनका फैसला कितना सही है या गलत, इसका पैमाना समाज में घटने वाली दो-चार घटनाएं नहीं हो सकती हैं और न ही इसके आधार पर ये फैसला दिया जा सकता है कि लिव इन में रहना एक पाप है.


जिस दिन समाज में ये मानसिकता पनपने लगेगी, उसी पल से देश की आधी आबादी की आजादी छीनने की शुरुआत होने लगेगी, जो कि समाज के लिए एक खतरनाक संकेत होगा. वह इसलिए कि इस तरह की मानसिकता समाज को सदियों पुरानी उसी रूढ़िवादी और दकियानूसी विचारधारा की तरफ धकेल देगी जहां स्त्री को महज दासी और उपभोग की वस्तु समझा जाता था. लिहाजा, किसी एक वारदात की बुनियाद पर ऐसे रिश्तों में रहने वाली सभी लड़कियों को कसूरवार ठहराने की मानसिकता को बिल्कुल ही गलत समझा जाएगा.


लिव इन रिलेशनशिप का कॉन्सेप्ट बेशक पश्चिमी सभ्यता की देन है लेकिन पिछले दो दशकों में इस रिश्ते ने हमारे देश के महानगरों में ही नहीं बल्कि अब तो छोटे शहरों में भी बेहद तेजी से अपनी जगह बना ली है. इससे जाहिर होता है कि शिक्षित और आत्मनिर्भर लड़कियों की एक बड़ी संख्या शादी के बंधन को बोझ समझती है और वे ऐसा पार्टनर तलाशती हैं, जिसके साथ वे अपनी मर्जी के अनुसार स्वच्छंद होकर जीवन बिता सकें. लिव- इन के रिश्तों में एक-दूसरे पर शर्तों को थोपने की बजाय दोनों पार्टनर साथ रहते हुए भी आजाद व बिंदास जिंदगी जीने में यकीन रखते हैं. 


समाज में ऐसे सैकड़ों उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां कि शादी के बंधन में बंधे पति-पत्नी या तो घुट-घुट कर जिंदगी जीने पर मजबूर होते हैं या फिर विवाह के कुछ समय बाद ही तलाक के लिए अदालत की चौखट पर खड़े दिखाई देते हैं. इसके उलट ऐसे अनेक किस्से हैं, जहां सालों से लिव-इन में रहने वाले दोनों पार्टनर मौज से अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. रिश्तों में आपसी मतभेद होना साधारण बात है लेकिन इसे लेकर कोई इतनी दरिंदगी पर उतर आए कि अपनी पार्टनर को मारकर उसके शव को दर्जनों टुकड़ों में काट डाले तो ये मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ही कर सकता है.


आफ़ताब पूनावाला ने यही श्रद्धा के साथ किया. अब ये जांच का विषय है कि श्रद्धा की ऐसी क्या मजबूरी थी कि अत्याचार झेलने के बावजूद उसने आफताब के साथ ही लिव-इन में रहना जरूरी समझा, जबकि लिव-इन में आमतौर पर यही देखा गया है कि जब रिश्तों में दरार पड़ने लगती है तो दोनों पार्टनर मर्जी से ही एक -दूसरे से अलग होकर नया रास्ता अपना लेते हैं. जाहिर है कि केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर के इस बयान से बवाल होना तय था. शिव सेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे मुद्दा बनाया और ट्वीट के माध्यम से मंत्री की आलोचना की. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "आश्चर्य है कि उन्होंने यह नहीं कहा कि इस देश में जन्म लेने के लिए भी लड़कियां ही जिम्मेदार हैं. बेशर्म, हृदयहीन और क्रूर, सभी समस्याओं के लिए महिलाओं को दोष देने की मानसिकता पनप रही है."


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