दिल्ली में बिजली की दरों में बढ़ोतरी की गयी है. इसके बाद सियासी तलवारें खिंच गयी हैं. बिजली की भारी मांग और कोयले की कमी के चलते दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमिशन (डीईआरसी) ने बिजली वितरण कंपनियों को 2 से 6 प्रतिशत अतिरिक्त पावर परचेज एडजस्टमेंट कॉस्ट (पीपीएसी) वसूलने की छूट दे दी है. इसके बाद 31 अगस्त तक दिल्ली में रहने वाले लोगों को बिजली के बढ़े दाम देने होंगे. इसके साथ ही इस पर बयानबाजी भी शुरू हो गयी है. भाजपा ने इसे केजरीवाल के झूठ का पुलिंदा करार दिया है और उनके इस्तीफे की मांग की है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने यह कहा है कि जो 200 यूनिट मुफ्त बिजली वाली योजना चल रही थी, वह वैसे ही चलेगी. 


केजरीवाल ने परोसा झूठ का पुलिंदा


हमलोग तो शुरू से ही कहते आए हैं कि आम आदमी पार्टी दिल्ली के लिए झूठ का पुलिंदा पेश करती रही है. जिस तरह इन्होंने इतने वर्षों तक दिल्ली में यह झूठ परोसा कि वे फ्री बिजली दे रहे थे, जबकि उसका पोस्टमॉर्टम किया जाए, तो वह फ्री बिजली नहीं थी. एक तबके को उन्होंने निश्चित तौर पर कुछ सस्ती बिजली देने का शगूफा दिया था, लेकिन उसकी भरपाई दिल्ली का कमर्शियल वर्ग कर रहा था. एक मॉडल था ये दिल्ली सरकार का कि वे एक ही वर्ग पर सारा बोझ डालना चाहते थे और दूसरे वर्ग को वोट-बैक का हिस्सा बनाए रखना चाहते थे. अभी जैसे इन्होंने दरें बढ़ाईं, तो अरविंद केजरीवाल से पूछा जाना चाहिए कि साहब किस मॉडल के तहत ये नयी नीति लाए हैं?


उनको यह जवाब देना चाहिए क्योंकि जो एक्सचेकर का पैसा वे खर्च कर रहे हैं, जो लूट उन्होंने मचा रखी है, 45-45 करोड़ ये अपने घर की मरम्मत पर लगा देते हैं, जो आप शराब घोटाला कर देते हैं, क्या उसकी भरपाई अब बिजली की दरें बढ़ाकर होंगी. इन सवालों का जवाब तो अरविंद केजरीवाल जी को देना है. हमें नहीं. हम तो शुरू से जानते थे कि ये जो फ्री बिजली, फ्री बिजली का शिगूफा है, इसमें कोई सच्चाई नहीं थी. कुछ गरीब तबकों को मुफ्त बिजली दी गयी, लेकिन उसका परसेंटेज बहुत कम था. कमर्शियल और टैक्स यूनिट इसकी भरपाई कर रहा था. अब जब हालात बदले हैं तो इनका पर्दाफाश होना तय है. 



बिजली के दामों पर केवल ठगा


अरविंद केजरीवाल की सरकार का जहां तक सवाल है,  तो जो भी वादे करती है, मुझे कुछ भरोसा ही नहीं है. वही बात उनके 200 यूनिट तक बिजली वाली योजना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाली बात का है. आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर उन्होंने पांच-छह साल के अंदर किसी भी चुनावी वादे को अगर उन्होंने पूरा किया है और उसे जस का तस रहने दिया है, तो वह अचंभे का ही विषय होगा. उन्होंने कई बार यू-टर्न लिया है. शराब पॉलिसी को लेकर यू-टर्न मार दिया. कहीं न कहीं तो वो स्थिर हों. कहीं तो अपने फैसलों को लेकर दृढ़ दिखें. यही वजह है कि मुझे न तो अरविंद केजरीवाल पर कल भरोसा था, न आज है. दिल्ली की जनता को ठगने का अगर किसी ने काम किया है, तो वह केजरीवाल सरकार ने किया है.


आम जनता को जो वह झूठ परोस रहे हैं, उससे बचना चाहिए और उनको जनता पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहिए. अभी जब बिल आने शुरू होंगे और दिल्ली के अंदर हाहाकार मचेगा, तो पूरी दुनिया को ही पता चल जाएगा. हम तो लगातार इस बात का विरोध कर रहे हैं कि दिल्ली की जनता को लगातार बिजली के दामों पर ठगा जा रहा है. कहीं न कहीं इस प्रकार की राजनीति बहुत दिनों तक टिकती नहीं है. अगर दिल्ली के खजाने को खाली करने का अरविंद केजरीवाल ने ठान ही लिया है तो यह तो दिल्ली का दुर्भाग्य है, लेकिन यह फैसला बहुत निंदनीय है इतना मैं कह सकता हूं. 



केंद्र को दोषी बताना केजरीवाल की पुरानी आदत


अरविंद केजरीवाल की पुरानी प्रैक्टिस है कि आप जब भी असफल हों, तो उसे केंद्र सरकार के ऊपर थोप दीजिए. जब उन्होंने पहली बार मुफ्त बिजली का ऐलान किया था तो कौन सा डिस्कॉम या डीआरसी की बात मानी थी. उस समय भी डीआरसी ने चेताया था कि आप अगर कम करेंगे तो पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को घाटा होगा. अपने दोषों को केंद्र सरकार पर मढ़ने का उनका पुराना फॉर्मूला है. वह अगर दिल्ली की जनता की सेवा नहीं कर सकते तो उनको गद्दी से उतर जाना चाहिए. अच्छा, जब बिजली की कीमत कम कर रहे थे, तब तो कहा कि हम अपने बूते कर रहे हैं, अब जब कीमत बढ़ा रहे हैं तो बताते हैं कि यह केंद्र सरकार की वजह से है. ये कौन सा न्याय है, भाई? ये तो जायज नहीं है. वह अपनी जिम्मेदारी से भागना बंद करें. वह जो दिल्ली की जनता को बरगला और बेवकूफ बना रहे हैं, वह दिल्ली की जनता भी समझ चुकी है और अब इनके झांसे में नहीं आएगी.


एक आदर्श स्थिति तो यही होती कि आप पावर रेवेन्यू को देख लेते कि भाई, इतना रेवेन्यू आ रहा है, इतना कॉस्ट है, उसके मुताबिक ही वितरण करते, लेकिन केजरीवाल लोकलुभावन वादे करने में आगे हैं. अब जब लेने के देने पड़ गए, तो आप घबरा रहे हैं. दिल्ली के अंदर अगर पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को लाभ नहीं हो रहा है, तो ये किसकी जिम्मेदारी है और अगर उनको लाभ हो रहा है, तो उसको बनाए रखने की जिम्मेदारी भी किसकी है. अगर अरविंद केजरीवाल ये काम नहीं कर पा रहे, तो फिर उनको तत्काल इस्तीफा देना चाहिए. 


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