दिल्ली के राउज रेवेन्यू कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समन जारी कर 16 मार्च को पेश होने के लिए कहा है. इससे पहले ईडी यानी की परावर्तन निदेशालय भी आबकारी घोटाले के मामले को लेकर आठ बार उनको समन जारी कर चुका है, लेकिन किसी भी समन पर अरविंद केजरीवाल हाजिर नहीं हुए . इसको लेकर कहीं न कहीं बीजेपी भी हमलावार रही. अब कोर्ट ने समन जारी करते हुए कहा है कि हर हाल में 16 मार्च को अरविंद केजरीवाल को पेश होना होगा. 


समन पर पेश न होना शर्मनाक
जब देश के प्रजातांत्रिक रूप से निर्वाचित मुख्यमंत्री उसी प्रजातंत्र की एक संस्था के द्वारा नोटिस जारी होने के बाद जब नहीं जाते हैं. और भेजे गए समन का उल्लंघन कर के ना जाना एक बेहद ही शर्मनाक स्थिति है. राज्य और देश में कानून ही सर्वोपरि होता है इससे बढ़कर कोई नहीं होता है. समन के बाद भी केजरीवाल का ना जाना बताता है कि कहीं न कहीं वो खुद को कानून से ऊपर मान रहे हैं. केजरीवाल का मानना है कि जो समन भेजा गया है वो गलत है. लेकिन समन गलत हो या सही, लोकतांत्रिक राज्य में उस किसी संस्था द्वारा जब नोटिस भेजी जाती है तो उस राज्य के व्यक्ति के अनुसार दायित्व होना चाहिए कि जांच की स्थिति में सहयोग करे. यह दुर्भाग्य है कि अरविंद केजरीवाल ईडी के समन को गैरकानूनी बताते हुए आठ शमन के बाद भी हाजिर नहीं होते, लेकिन क्या यह केजरीवाल का निर्णय सही है कि समन सही है या नहीं. क्या उनको यह अधिकार है कि वो ये तय कर सकें. संविधान के अनुसार तो हरेक अंग है, जूडिशियरी है, वो काम करेगी, वो बताएगी कि समन वैध है या अवैध है?.


सीएम का ऐसा करना नहीं ठीक


इससे पहले अभी तक देश में ऐसी स्थिति नहीं हुई है कि किसी सरकारी संस्था ने समन भेजा हो और संबंधित व्यक्ति ने समन ना लिया हो. यह पहली बार है कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं. तो इसलिए कोर्ट का आदेश महत्वपूर्ण हो जाता है और कोर्ट का ये कहना है कि क्यों नहीं ईडी के समन लेकर जांच में सहयोग कर रहे हैं. अगर कोई कानून से भाग रहा है तो ये कोर्ट का कर्तव्य  हो जाता है कि वो संबंधित व्यक्ति को कानून की परिधि में लाकर और उससे कानून का पालन करवाए. अरविंद केजरीवाल वो व्यक्ति हैं जो मुख्यमंत्री बनते समय संविधान और कानून की शपथ लेते हैं और बाद में कानून का पालन नहीं करते हैं. तो फिर इससे शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता. राउज रेवेन्यू कोर्ट ने भी अभी तक सिर्फ समन ही भेजा है. कानून  में  कई तरह के प्रावधान दिए गए हैं. जिसमें संबंधित व्यक्ति की जगह अधिवक्ता को किसी कारण के साथ जवाब के साथ भेज दिया जाता है. लेकिन एक बात यह भी है कि कोर्ट से समन जारी होने के बाद अब अरविंद केजरीवाल को समन लेना पड़ेगा और जांच में सहयोग करना पड़ेगा. अगर वह कोर्ट के समन को दरकिनार करते हैं तो सीधे गिरफ्तारी हो सकती है, क्योंकि पहले ही ईडी के शमन को आठ बार नकार चुके हैं.


वैसे एक बार तो वह तारीख पर जाने से परहेज कर सकते हैं, लेकिन अगर कोताही बरतेंगे तो कोर्ट के आदेश पर पुलिस और ईडी को रास्ता मिल जाएगा कि वो अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर सकें इसलिए अरविंद केजरीवाल शायद ऐसा ना करें.


कानून का सहयोग न करना बड़ी गलती


अगर 16 मार्च कोअरविंद केजरीवाल कोर्ट में जाएंगे तो सबसे पहले जमानत के लिए याचिका डालेंगे. अगर जमानत मिल जाती है तो केजरीवाल को थोड़ी सी आजादी मिल जाएगी. अगर ऐसा नहीं होता है तो ईडी तुरंत वहीं पर गिरफ्तारी कर लेगी, क्योंकि जांच का हिस्सा ना बनना इनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल की राह है. पुलिस कस्टडी में लेकर पूछताछ करने के लिए कोर्ट से दरख्वास्त कर सकती है. कानूनी प्रक्रिया में सहयोग ना करना ही शायद केजरीवाल की गिरफ्तारी का रास्ता बनना माना जा रहा है. ईडी के समन के बाद पस्थित नहीं हुए और बाद में कोर्ट को एक्शन लेते हुए शमन भेजना पड़ा. तो यह एक बड़ा आधार माना जा सकता है. इससे पहले हेमंत सोरेन 11 समन को ठुकरा चुके थे. लेकिन बाद में सोरेन की गिरफ्तारी हुई. अगर कोई परिस्थितिवश उपस्थित नहीं हो पाता है तो दूसरी-तीसरी बार समन भेजा जाती है.


16 मार्च का दिन अरविंद केजरीवाल के लिए गंभीर हो सकता है. क्योंकि अब तक का जैसा उनका कानून के प्रति व्यवहार रहा है उस हिसाब से कोर्ट से पुलिस कस्टडी में लेकर पूछताछ करने की इजाजत मांग सकती है, लेकिन कोर्ट की ओर से जमानत मिलना भी मुश्किल माना जा रहा है क्योंकि जमानत का एक आधार होता है कि अगर संबंधित व्यक्ति पुलिस या संस्था का सहयोग कर रहा हो. तब कोर्ट जमानत देती है. अगर ईडी चाहती होगी कि उनको कस्टडी में लेकर पूछताछ करना है तो कोर्ट भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन अगर 16 मार्च को अरविंद केजरीवाल खुद नहीं पहुंचते हैं तो शायद यह मामला अगली तिथि को जा सकता है.


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