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BLOG: बॉलीवुड में होली के दिन, अब नहीं मिलते पहले जैसे दिल

"होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं. गिले शिकवे भूल के दोस्तो, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं." फिल्मों में यूं तो होली के बहुत से शानदार गीत हैं. लेकिन फिल्म 'शोले' का आनंद बक्षी का लिखा गीत 'होली के दिन' सबसे पहले जुबां पर चढ़ जाता है. इसका एक कारण यह है कि यह गीत होली के चुनिन्दा सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में एक है. साथ ही इसमें होली के दिन को लेकर रंगों, गिले शिकवे भूलने, दोस्तों और दुश्मनों से भी गले मिलने की वे सब बातें इन दो पंक्तियों के मुखड़े में पिरो दी गयीं हैं, जो होली मनाने का सार तत्व है, उद्देश्य है.

फिर इसमें कोई संदेह नहीं की होली के फिल्म गीतों ने होली के उत्सव को और अधिक रंग दिए हैं, होली को लोकप्रियता को और बढाया है. फिल्मों के होली गीत जंगल में मंगल कर देते हैं. उस सबके साथ बॉलीवुड में होली के त्यौहार को 'हाई जोश' में सभी के साथ मिल जुलकर मनाने की भी जो परंपरा रही है. वह भी सभी को होली के लिए और प्रेरित करती रही है. जिनमें आरके स्टूडियो की होली तो बरसों तक ऐसी होली के रूप में लोकप्रिय रही जिसका मुकाबला कोई और नहीं कर सका.

हालांकि राज कपूर के इस होली मिलन से प्रेरित होकर कुछ और फिल्मकारों, कलाकारों ने अपने यहां होली मिलन के कार्यक्रम आयोजित करने शुरू किये लेकिन उनमें से कोई भी नियमित आयोजन बनकर लगातार नहीं चल सका. यहां तक अब तो हाल यह हो गया है कि बॉलीवुड में इस प्रकार की सामूहिक होली की परंपरा लगभग ख़त्म हो गयी है. जिसे देख कहा जा सकता है कि बॉलीवुड में होली के दिन, अब पहले की तरह लोगों के दिल नहीं मिलते. होली के दिन दुश्मनों से क्या दोस्तों से भी गले मिलने में ज्यादातर लोग दिलचस्पी नहीं दिखाते. सभी अपने अपने घरों में सिमट कर अपनी अपनी होली में ही मस्त रहने लगे हैं.

आर के स्टूडियो की होली

आज जब मैं आर के स्टूडियो की वैभवशाली होली के साथ कुछ और फिल्म वालों की सामूहिक होली को याद करता हूं तो मन रोमांचित हो जाता है. यहां तक जब भी मेरी मुंबई में फ़िल्मी दोस्तों और कुछ पुराने कलाकारों से बात होती है तो वे भी पुरानी यादों में दूर तक चले जाते हैं. अभी आज कल में ही होली की बधाई और शुभकामनाएं आदान प्रदान करने के दौरान मेरी कुछ ख़ास लोगों से बात हुयी तो आर के स्टूडियो की होली की बातों का सिलसिला भी उनसे चल निकला.

असल में राज कपूर ने सन 1950 के दशक की शुरुआत में ही अपने आर के स्टूडियो की स्थापना और 'आवारा' फिल्म के देश विदेश में बम्पर हिट होने के बाद ही अपने यहां सामूहिक होली मनाना शुरू कर दिया था. पृथ्वीराज कपूर भी अपने होनहार बेटे के इस कदम से बहुत खुश हुए थे. राज कपूर के पास आर के स्टूडियो के लम्बे चौड़े परिसर में न तो जगह की कोई कमी थी. न ही उनके बड़े दिल में. वह इस दिन मेहमान नवाजी पर खुल कर खर्च करते थे. कितने ही लोगों को होली के दिन अपने यहां दावत देने के निमंत्रण देने का काम वह कई दिन पहले ही शुरू कर देते थे.

सबसे बड़ी बात यह थी कि सभी धर्म के लोग इस होली में आते थे. फिर कुछ ऐसा बन गया था कि किसी को राज कपूर का इसके लिए बुलावा भी नहीं आता था तब भी वह वहां निसंकोच चला आता था. असल में कई बार तो उस होली पर वह अगले बरस की होली का निमंत्रण भी तभी लोगों को दे देते थे. राज कपूर ने यूं तभी नए नए शिखर छूना शुरू कर दिया था. लेकिन वह तब भी जमीन से जुड़े व्यक्ति थे. अपने यहां आए हर मेहमान के सम्मान और उनके खाने-पीने का वह खुद पूरा ख्याल रखते थे.

राज कपूर उस समय एक बेहद सफल और लोकप्रिय अभिनेता, निर्माता, निर्देशक होने के साथ सर्वाधिक प्रतिष्ठित फिल्म घराने के रूप में स्थापित हो गए थे. इसलिए हर कोई उनसे मिलना-जुलना चाहता था. साथ ही उनके यहां होली के दिन पूरी फिल्म इंडस्ट्री उमड़ने से कपूर परिवार से ही नहीं,बाकी कई फिल्म हस्तियाँ भी परस्पर मिल लेती थीं. इसलिए हर कोई होली के दिन आर के स्टूडियो में खिंचा चला आता था.

आर के स्टूडियो की होली की एक बात और जो सबसे ख़ास थी वह यह थी कि स्टूडियो में एक बड़ा सा हौज था जो रंग भरे पानी से भरा रहता था. जो भी होली खेलने वहां आता था उसे गुलाल लगाने और कोई एक पकवान खिलाकर उसका मुंह मीठा कराने के बाद, उस व्यक्ति को उस बड़े बाथ टब टाइप हौज़ में डुबकी लगवा दी जाती थी. चाहे कोई लाख मना करे, चाहे कोई बड़ी से बड़ी हीरोइन हो या बड़े से बड़ा हीरो हौज़ में तो होली डुबकी लगनी ही होती थी.

हालांकि हौज़ में डुबकी के डर से कुछ अभिनेत्रियाँ वहां आने डरती भी थीं. अभी कल ही अपने जमाने की दिग्गज अभिनेत्री कामिनी कौशल जी से मेरी बात हुई तो उनसे मैंने पूछा आप तो राज कपूर की हीरोइन भी रही हैं, क्या आप उनके होली मिलन में जाती थीं. वह मुस्कुराते हुए कहती हैं- हाँ मैंने राज कपूर की होली देखी है. लेकिन वहां हौज़ में डुबकी लगाने में मुझे बहुत डर लगता था. इसलिए मैं फिर वहां नहीं गयी. इसका एक कारण यह भी है कि मैं जब 16-17 साल की तब तो बहुत होली खेलती थी, लेकिन बाद में होली खेलने में मेरी दिलचस्पी कम होती चली गयी. हालांकि शम्मी कपूर तो मेरे पडोसी भी रहे. यहां भी हम आपस में होली खेलते थे. लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. ज्यादातर पुराने संगी साथी अब इस दुनिया में नहीं हैं. फिर उनके परिवार के लोग भी कुछ विदेश चले गए, कुछ मुंबई से बाहर चले गए. इसलिए अब तो अपने अपने घर में ही परिवार के साथ थोड़ी बहुत होली हो जाती है.उसके आगे कुछ नहीं.

ऐसे ही कल सुप्रसिद्द अभिनेत्री आशा पारिख जी से भी कल मेरी बात हुई, जिनका फिल्म 'कटी पतंग' का होली गीत 'आज न छोड़ेंगे' तो बहुत लोकप्रिय हुआ था. आशा जी बताती हैं, "बिलकुल आर के की होली तो बहुत लोकप्रिय रही. लेकिन मुझे होली खेलते हुए लोगों को देखना तो पसंद है, पर खेलना नहीं. मैं कभी आर के स्टूडियो होली खेलने गयी ही नहीं. हाँ बहुत पहले हम अपने फ्रेंड सर्कल में वहीदा रहमान, नंदा, हेलन या साधना, शशि कला के साथ थोड़ी बहुत होली खेल लेते थे. लेकिन अब तो वह भी नहीं होता. होली के दिन अब सभी अपने अपने घरों में रहते हैं."

इस साल तो कपूर परिवार में भी होली नहीं

असल में देखा जाए तो राज कपूर का होली मिलन तो तभी ख़त्म हो गया जब राज कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कहा. बाद में कपूर परिवार के सदस्य आपस में या अपने अपने घरों में होली खेलते रहे. लेकिन इस साल तो जहाँ अभी करीब 6 महीने पहले राज कपूर की पत्नी कृष्णा राजकपूर का निधन हो गया. वहां उनके बेटे ऋषि कपूर भी अपनी गंभीर बीमारी का इलाज़ कराने के लिए 6 महीने से ही अमेरिका में हैं. उनकी पत्नी नीतू सिंह भी उनके साथ हैं. अभी रंधीर कपूर भी अपने बेटी करिश्मा कपूर के साथ ऋषि से मिलने अमेरिका चले गए हैं, जिससे होली वाले दिन ये सब होली से दूर अमेरिका में होंगे. इसलिए इस बरस तो कपूर परिवार में होली के दिन कोई धूम धड़ाका होने का सवाल ही नहीं.

उधर राज कपूर का वह प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक आर के स्टूडियो भी इस बार बिक चुका है जहाँ होली के दिन नर्गिस, गीता बाली, निम्मी, सिम्मी, बबीता,जीनत अमान, डिम्पल कपाड़िया, पद्मिनी कोल्हापुरे, टीना मुनीम जैसी अभिनेत्रियाँ ही नहीं शम्मी कपूर, शशि कपूर, संजीव कुमार, मनोज कुमार, राजेश खन्ना, अनिल धवन, शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, शंकर जय किशन, मुकेश, लक्ष्मीकान्त प्यारे लाल, प्रेम नाथ, प्रेम चोपड़ा, राजेन्द्र नाथ, जोगेंद्र और धीरज कुमार जैसी बहुत सी हस्तियाँ आर के की होली का हिस्सा बनती रहीं.

एक समय के मशहूर फिल्म अभिनेता और आज के दौर के जाने माने टीवी सीरियल निर्माता और मेरे पुराने दोस्त धीरज कुमार से आज होली की बधाई को लेकर बात हुई तो उनसे भी आर के स्टूडियो की होली की यादों को लेकर बात चल निकली. धीरज भाई बताते हैं- एक दौर में आर के स्टूडियो की होली में जाकर जो आनंद आता था, जो सुख मिलता था, वह आज भी मन में रंगों उमंगों को भर देता है. मैं अपने दिल्ली के पुराने साथी और 'बिंदिया और बन्दूक' तथा 'रंगा खुश' जैसी फिल्मों के अभिनेता जोगेंद्र के साथ होली के दिन हर साल आर के स्टूडियो जाता था. राज साहब सभी का इतना ख्याल रखते थे कि मन खुश हो जाता था. पूरे कपूर परिवार की एक साथ वहां मौजूदगी ही इतनी बड़ी थी कि वहां इंडस्ट्री से कोई और न भी हो तो वह बहुत बड़ा होली मिलन था. रंग के साथ संगीत की मस्ती खान पान की महक सभी कुछ इतना दिलकश की भुलाये नहीं भूलता."

रिश्ते और होली दोनों बदल गए हैं

आर के स्टूडियो की होली को लेकर और अब बॉलीवुड से वैसा कल्चर गायब होने को लेकर आज मैंने जाने माने फिल्मकार सुनील दर्शन से भी बात की, जो 'लुटेरे', 'जानवर', 'हाँ मैंने भी प्यार किया', 'अंदाज़', 'बरसात', 'दोस्ती' जैसी कई फिल्म बना चुके हैं. दर्शन जी कहते हैं- "सच यह है कि अब लोगों में पहले जैसी बॉन्डिंग नहीं रही. मैं राज कपूर जी की होली में भी गया हूँ और अमिताभ बच्चन जी के यहां की होली में भी. राज साहब के यहां तो पूरी फिल्म इंडस्ट्री पहुंची होती थी. मुझे याद है जब उनकी 'प्रेम रोग' फिल्म आई थी शायद तब मैं वहां गया था, शम्मी जी, शशि जी, राजेश खन्ना, बोनी कपूर, अनिल कपूर, प्रेम चोपड़ा कितने ही लोग वहां थे. बाद में एक बार मैं अमिताभ बच्चन जी के यहां भी होली में गया, वह भी इसका अच्छा आयोजन करते थे. लेकिन अब जबसे फिल्म इंडस्ट्री में कॉर्पोरेट हावी हुआ है तब से व्यक्तिगत सम्बन्ध पहले जैसे नहीं रहे. इसलिए अब फिल्म जगत में रिश्ते हों या होली दोनों ही बदल गए हैं. इसलिए अब पहले जैसे होली मिलन का आयोजन भी नहीं होता."

उधर मेरे एक और मित्र और 70 के दशक की कई हिट फिल्मों 'चेतना', 'दो राह', 'अन्नदाता', 'पिया का घर', 'समझौता', 'हनीमून' और 'हवस' जैसी फिल्मों के हीरो अनिल धवन से भी कल बात हुई तो उनसे भी मैंने आर के की होली की चर्चा छेड़ दी. अनिल धवन जी बताते हैं- मैं काफी समय तक आर के स्टूडियो में होली के दिन जाता रहा. वहां की होली की यादें कभी भुलाई नहीं जा सकती. होली के दिन वहां की मस्ती की बात ही और थी. डब्बू मेरा दोस्त था, चिंटू मेरा पडोसी भी रहा, नीतू सिंह मेरे साथ 'हवस' फिल्म में हीरोइन थी. सभी के साथ वहां बहुत मज़ा आता था. कोई ऐसी हस्ती नहीं थी फिल्मों की जो वहां न पहुँचती हो. ज्यादातर हीरोइंस तो सफ़ेद साड़ी में आती थीं. राज कपूर जी इतनी इज्ज़त करते थे कि सभी से पूछते थे कि खाना खाया या नहीं, वहां फ़ूड ड्रिंक्स सब लवली था. तभी वहां इतनी दूर जाते थे. इस सबसे राज जी ने सभी को जोड़कर रखा था. लेकिन अब वक्त के साथ सब ख़त्म हो गया. राज कपूर के साथ इंडस्ट्री की होली ख़त्म हो गयी, उन्होंने ही होली शुरू की थी, उनके साथ ही ख़त्म भी हो गयी. अब तो हाल यह है कि लोग किसी को एक आँख ढंग से देखते भी नहीं. फिर होली क्या होगी."

सच, यह बात दिल को निश्चय ही ठेस पहुंचाती है कि बॉलीवुड का मशहूर होली कल्चर और पहले जैसा परस्पर प्रेम अब नहीं रहा. आर के स्टूडियो की होली भी अब बस यादों का हिस्सा बन कर रह गयी है.

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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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