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BLOG: जानिए- सेल्फ पार्टनर्ड बनाम सिंगल औरतों के सेलिब्रेशन का मतलब 

सिंगल औरतें पूरी दुनिया में अब खूब नजर आती हैं और भारत में इनकी संख्या करोड़ों में हैं. यहां जानिए क्या है सेल्फ पार्टनर्ड महिलाओं का मतलब और कैसे दुनिया में बढ़ रही है ऐसी महिलाओं की संख्या.

‘हैरी पॉटर’ सिरीज की नन्ही हरमाइन यानी एमा वॉटसन काफी बड़ी हो गई है और सयानी भी. पिछले दिनों ब्रिटिश मैगजीन ‘वोग’ को दिए एक इंटरव्यू में उसने एक नई टर्म ईजाद की- ‘सेल्फ पार्टनर्ड’. मैगजीन की रिपोर्टर ने एमा से उसके स्टेटस के बारे में पूछा तो उसने कहा- ‘सेल्फ पार्टनर्ड’. मतलब अपनी पार्टनर खुद. यह सिंगल होने के लिए नया टर्म बन गया. सोशल मीडिया में लोगों ने इस स्टेटस को सराहा भी. कुछ ने मजाक बनाया. कुछ वल्गर भी हो गए. एमा ने कहा- ‘मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के सवालों से परेशान हो चुकी हूं. वे मेरे रिलेशनशिप स्टेटस के बारे में बार-बार सवाल करते है. मैं खुद को सिंगल नहीं, सेल्फ पार्टनर्ड बताना पसंद करती हूं. यानी मैं खुद के साथ रहना पसंद करती हूं. मुझे कंप्लीट महसूस करने के लिए किसी दूसरे इंसान की जरूरत नहीं.’ सिंगल होने के लिए कई साल पहले हॉलीवुड एक्ट्रेस ग्वायनेथ पाल्ट्रो ने ‘कॉन्शेस अनकपलिंग’ शब्द का इस्तेमाल किया था- तब वह अपने पति क्रिस मार्टिन से अलग हुई थीं. यह कपलिंग से अनकपलिंग होने का कॉन्शेस फैसला था इसलिए पाल्ट्रो ने इस नए टर्म का इस्तेमाल किया था. सिंगल औरतें पूरी दुनिया में अब खूब नजर आती हैं. भारत में इनकी संख्या करोड़ों में है. 2011 में जब आखिरी जनगणना हुई तो सिंगल औरतों की संख्या में 39 प्रतिशत का इजाफा हुआ था. इन सिंगल औरतों में ऐसी औरतें शामिल थीं जिन्होंने कभी शादी नहीं की, जिनके तलाक हो चुके हैं, जिनके पति उन्हें छोड़कर जा चुके हैं, जिनके पति का निधन हो चुका है. ऐसी अकेली औरतों की संख्या 2001 में 5.12 करोड़ थी जोकि 2011 में बढ़कर 7.14 करोड़ हो चुकी थी. जनगणना में कभी शादी न करने वाली औरतों को ‘नेवर मैरीड’ की कैटेगरी में डाला जाता है. इनमें 18 साल से अधिक की महिलाओं को शामिल किया जाता है. इसी से सिंगल औरतों की सही तस्वीर मिलती है जो कि पांच करोड़ से ज्यादा हैं. इन सिंगल औरतों पर आपको दया करने की जरूरत नहीं. जैसा कि एमा ने साफ किया है. वह बदकिस्मती से नहीं, अपनी इच्छा से सिंगल हैं. चूंकि उन्हें अपने आपके साथ रहना अच्छा लगता है. अपनी ही पक्की सहेली. अपनी रोशन मीनार खुद.

हाल ही में कल्पना शर्मा की संपादित एक किताब आई है- ‘सिंगल बाय च्वाइस: हैपिली अनमैरीड विमेन.‘ इस किताब में 13 औरतों की आपबीतियां हैं जो अपनी च्वाइस से सिंगल हैं. वे अपने अकेले होने को सेलिब्रेट करती हैं. एमा की सेल्फ पार्टनर्ड की परिभाषा उन पर फिट बैठती है. बेशक, उन्होंने फेमिनिज्म पढ़ा नहीं, जिंदगी से सीखा है. आम तौर पर माना जाता है कि एक औरत अपने अकेलेपन में इस कदर कसी, ठुंसी और भरी होती हैं कि उसके अकेलेपन में किसी दूसरी चीज के लिए कोई जगह नहीं बचती. लेकिन ऐसा नहीं है. आप रुपहले परदे पर भी अकेली औरतों का उल्लास देख सकते हैं. ‘रनअवे ब्राइड’ में जूलिया रॉबर्ट्स, ‘सेक्स एंड द सिटी’ में सराह जेसिका पार्कर, ‘क्वीन’ में कंगना रानौत, सभी हैप्पी गर्ल्स हैं. इन्हें हैप्पी रहने के लिए किसी पुरुष पार्टनर की जरूरत नहीं. ये चेहरे बदलती औरतों के चेहरे हैं. इन चेहरों पर हमेशा हंसी की बिजलियां कौंधती हैं. चमकदार और नूरानी. दुनिया को ऐसे ही तरल चेहरों की जरूरत है.

ऐसे चेहरों को स्वीकृतियां भी मिल रही हैं. 2016 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं पर केंद्रित मसौदा राष्ट्रीय नीति में सिंगल औरतों को स्वतंत्र एंटिटी माना था. साथ ही कहा था कि उन्हें व्यापक सामाजिक संरक्षण की जरूरत है. कुछ निजी संगठन भी हैं जो सिंगल औरतों के लिए काम रहे हैं. नेशनल फोरम फॉर सिंगल विमेन्स राइट्स एक राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म है जो कि सिंगल विमेन लीडर्स के लिए काम करता है. इसके अलावा 2000 में स्थापित एकल नारी शक्ति संगठन सिंगल औरतों को वैकल्पिक परिवार देता है. सिंगल औरतो पर किताबें लिखी जा रही हैं, फिल्में, वेब सीरिज बन रही हैं. चूंकि उनमें अपनी कहानियां कहने का आत्मविश्वास आया है. जैसा कि अमेजन प्राइम के लिए ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज’ नामक वेब सीरिज बनाने वाली प्रोड्यूसर रंगीता प्रीतिश नंदी बताती हैं. उनके अनुसार दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में सिंगलडम एक रिएलिटी है. यह लोगों का कॉन्शियस फैसला होता है. दिलचस्प बात यह है कि इस वेब सीरिज को बनाने वाली रंगीता और उनकी बहन इशिता, दोनों सिंगल हैं और इस वेब सीरिज पर अमेजन प्राइम की तरफ से काम करने वाली अपर्णा पुरोहित भी.

यह भी कम दिलचस्प नहीं कि भारत में पावरफुल सिंगल महिला राजनेताओं की भी कमी नहीं. चाहे वह पूर्व सीएम मायावती, सीएम ममता बैनर्जी, पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती या फिर शैलजा कुमारी. दिवंगत जे. जयललिता छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. बहन मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. दीदी यानी ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं. ये सभी सिंगल हैं. भले ही समाज में उन्हें किसी की बहन या मां के रूप में ही देखा गया लेकिन उनके सिंगलडम को मान्यता दी गई. उनके नेवर मैरीड का स्टेटस सामान्य तौर से स्वीकार किया गया. जैसा कि अमेरिकी लेखिका रेबेका ट्रेस्टर ने अपनी 2016 की किताब ‘ऑल द सिंगल लेडीज़: अनमैरीड विमेन एंड द राइज़ ऑफ एन इंडिपेंडेंट नेशन’ में लिखा है- सिंगल औरतों की संख्या बढ़ रही है, पर सिर्फ इसी बात पर तालियां बजाने की जरूरत नहीं. ऐसा नहीं है कि सिंगलडम, कपलडम से बेहतर है. अच्छी बात यह है कि अब हमारे पास ज्यादा विकल्प हैं. हमारे लिए सिर्फ शादीशुदा रहना जरूरी नहीं. फिर अगर ज्यादा से ज्यादा औरतें शादियों को डिले करती हैं या सिंगल रहना चाहती हैं तो पुरुषों का भी भला होता है. उन्हें कुछ नया सीखने का मौका मिलता है. वे खाना पकाना, कपड़े साफ करना, अपने सूटकेस पैक करना सीखते हैं. लेकिन सिर्फ आदमियों को कुछ नया सिखाने के लिए औरतें सिंगल रहना नहीं चाहतीं. वे अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं. एमा को थैंक यू कि उन्होंने एक नए टर्म से एक नए विकल्प को तलाशने का साहस किया है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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