हृदय के वाल्व की बीमारी के बारे में जानें सभी जानकारियां
हृदय शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. हमारे हार्ट में थोड़ी सी भी समस्या आने पर इसका हमारे शरीर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है. हार्ट से संबंधित कई बीमारियां हो सकती है जिनमें एक हार्ट के वाल्व की बीमारियां भी होती है जिनके बारे में समझना बेहद जरुरी है, ताकि समय पर इलाज कराया जा सके. इस बारे में खास जानकारी दे रहे हैं, कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी अस्पताल, इंदौर के डॉ. प्रदीप पोखरना, कन्सल्टेन्ट, कार्डियोवेस्कुलर एवं थोरेसिक सर्जरी, तो आइए जानते हैं हार्ट वॉल्व की बीमारियों, लक्षणों और इलाज के बारे में
हार्ट वाल्व के प्रकार
हमारे हृदय में चेम्बर्स के बीच वाल्व होते हैं और रक्त का प्रवाह इन वाल्वों की वजह से ही संभव होता है. हृदय में अलग-अलग स्थानों पर 4 वाल्व होते हैं.
- ट्राइकस्पिड वाल्व: दाएं एट्रियम और दाएं वेंट्रिकल (हृदय के दाईं ओर के चेम्बर) के बीच होता है.
- पल्मोनरी वाल्व: दाएं वेंट्रिकल और फुफ्फुसीय धमनी (जो हृदय से फेफड़ों तक रक्त ले जाती है) के बीच होता है.
- मिट्रल वाल्व: बाएं एट्रियम और बाएं वेंट्रिकल (हृदय के बाईं ओर के चेम्बर) के बीच होता है.
- एओर्टिक वाल्व: बाएं वेंट्रिकल और एओर्टा के बीच होता है. (जो हृदय से पूरे शरीर में रक्त ले जाती है)
हार्ट वॉल्व की बीमारियां
हृदय के सभी वाल्वों में दो प्रकार की बीमारियां पैदा हो सकती हैं-
- स्टेनोसिस: जब वाल्व छिद्र सामान्य से सिकुड़ हो जाता है तो यह इन वाल्वों के ज़रिए होने वाले रक्त के प्रवाह में बाधाएं आती हैं, जिससे हृदय द्वारा रक्त की पंपिंग अपर्याप्त होती है.
- रेगर्गिटेशन: जब ये वाल्व कमजोर हो जाते हैं, तो वे हृदय और रक्त के संकुचन के दौरान रक्त को पकड़ कर रखने में सक्षम नहीं होते हैं. इससे इन वाल्वों से रक्त रिसाव शुरू हो जाता है. रक्त का अपर्याप्त पंपिंग होता है.
कारण
- रूमेटिक (आमवाती) हृदय रोग: आमतौर पर बच्चों और युवा व्यक्तियों में होता है. दांत या टॉन्सिल के संक्रमण के कारण होता है जो हृदय तक पहुँचता है और वाल्व को नुकसान पहुँचाता है.
- जन्मजात: ह्रदय ठीक से विकसित न हो पाने से, जन्मजात दोष पैदा होते हैं.
- डिजनरेटिव: आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ, वाल्वों में खराबी आने लगती है जो वृद्ध रोगियों में होता है.
- इस्केमिक: कोरोनरी आर्टरी में रुकावट के कारण दिल का दौरा आ सकता है.
- इन्फेक्टिव एंडोकार्डिटिस: हृदय के वाल्वों में संक्रमण के कारण होता है.
हृदय की इन बीमारियों के प्रभाव
- हृदय के चेम्बर का फैलाव
- हृदय की लय में अनियमितता
- फेफड़ों और लाइनर पर भार.
लक्षण
खासतौर पर कोई परिश्रम करने पर ये लक्षण महसूस हो सकते हैं. इनकी तीव्रता धीरे-धीरे बढ़ती है जो निम्न प्रकार से हो सकते हैं-
- परिश्रम करने पर सांस लेने में तकलीफ
- हृदय गति अनियमित होने से घबराहट
- मस्तिष्क में रक्त के खराब प्रवाह के कारण बेहोशी
- सामान्य कमजोरी.
- पैरों में सूजन.
जांच
ईसीजी, चेस्ट एक्स-रे, इकोकार्डियोग्राफी यह सबसे महत्वपूर्ण जांच करके हार्ट वाल्व की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है.
इलाज
बीमारी किस चरण पर है उसके मुताबिक इलाज किए जाते हैं. अगर बीमारी हल्के से मध्यम है तो आमतौर पर केवल दवाओं के साथ उपचार की सलाह दी जाती है. जबकि गंभीर मामलों में सर्जिकल उपचार की आवश्यकता होती है. इसमें वाल्व की मरम्मत की जाती है या कृत्रिम हृदय वाल्व बिठाया जाता है. बीमारी के सही निदान और समय पर इलाज से, मरीज़ एक स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकता है.
कार्डियक सर्जरी एक सबसे जटिल सर्जरी है. आमतौर पर ऐसी प्रक्रियाओं से गुज़रने वाले मरीज़ शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत तनाव में रहते हैं. रिकवरी के बारे में लोगों में कई गलतफहमियां हैं. ये कुछ टिप्स हैं जो मरीज़ों को अच्छी रिकवरी में मदद कर सकते हैं-
- आमतौर पर सर्जरी के बाद बीमारी का ज़्यादातर बोझ हट जाता है, इसलिए मरीज़ को बीमार व्यक्ति की तरह नहीं बल्कि स्वस्थ महसूस करना चाहिए.
- शारीरिक गतिविधियां धीरे-धीरे फिर से शुरू करना सबसे ज़रूरी है. कौन सी शारीरिक गतिविधियां कर सकते हैं इसके बारे में अपने डॉक्टर से जानकारी लें. आमतौर पर सर्जरी के बाद पहले 15 दिनों में नियमित हल्की शारीरिक गतिविधियां जैसे कि, तेज़ चलना, श्वास संबंधित व्यायाम, हल्की स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़, सीढ़ियां चढ़ना आदि करने की सलाह दी जाती है. सर्जरी के 6 सप्ताह बाद ड्राइविंग, तैराकी और दौड़ना शुरू कर सकते हैं. सर्जरी के 3 महीने बाद मरीज़ अपनी पसंद की सभी तरह की गतिविधियां कर सकते हैं.
- स्वस्थ और नियमित आहार बहुत महत्वपूर्ण है और मरीज़ और उसके परिवार को यही चिंता सबसे बड़ी होती है. आहार संबंधी आदतें नियमित और व्यवस्थित होनी चाहिए. नियमित समय के बाद, दिन में कम से कम 3 बार भोजन करना चाहिए. भोजन के बीच में नट्स, फल, दूध और दूध से बने पदार्थ शामिल किया जाना चाहिए. हर भोजन में दालें, हरी सब्जियाँ और फाइबर युक्त आहार होना चाहिए.
- सर्जरी के बाद दवा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. दवाएं दो प्रकार की होती हैं –
- रिकवरी सपोर्ट एंटीबायोटिक्स, पेन किलर, एंटासिड जैसी दवाएं मरीज़ को ठीक होने में मदद करेंगी. इन्हें कम अवधि के लिए, आमतौर पर एक सप्ताह तक ही लेने सलाह दी जाती है.
- बीमारी फिर से न हो इसके लिए सेकंडरी प्रिवेन्शन दवाओं की सलाह दी जाती है. इनमें रक्त पतला करने वाली और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण दवाएं होती हैं. इन्हें जीवन भर लेना है.
मरीज़ों को उपचार के तौर-तरीकों का सख्ती से पालन करना चाहिए और अपने डॉक्टरों से नियमित रूप से संपर्क करना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]