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कुणाल कामरा, किसान और न्यूज़ चैनल: देश का मसला क्या है ?

कुणाल कामरा,स्टैंडअप कॉमेडियन. ये वो कॉमेडियन है जो अपनी डार्क कॉमेडी से कभी हंसाता है, तो कभी सरकार के पेट में दर्द पैदा कर देता है. हाल ही में उनके नए शो "नया भारत" में कुछ ऐसा बोला कि महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री और शिवसेना के नेता शिंदे के समर्थकों  ने मुंबई के खार इलाके में उस कॉमेडी क्लब को तोड़-फोड़ डाल दिया, जहां शो रिकॉर्ड हुआ था. पुलिस ने भी तुरंत कुणाल कामरा पर एफआईआर ठोक दी—सेक्शन 356(2) में डिफेमेशन का इल्ज़ाम, ऊपर से पब्लिक मिसचीफ का चार्ज. लेकिन कुणाल ने साफ बोल दिया, "मैं माफी नहीं मांगूंगा, ना इस मॉब से डरूंगा, ना बिस्तर के नीचे छुपूंगा." अब कुछ लोग तालियां बजा रहे हैं, तो कुछ दांत पीस रहे हैं.

कुणाल कामरा की कॉमेडी और सियासत

सवाल ये है, क्या कुणाल सच में गलत है, या ये सारा ड्रामा बस सियासत है?अब ज़रा पीछे चलते हैं. एक मैगज़ीन शंकर वीकली में  तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को उस समय के मशहूर कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई ने अपने कार्टून में गधा बनाकर दिखाया था. लेकिन उस समय शंकर के बारे में नेहरू और उनके समर्थकों की इस तरह की कोई प्रतिक्रिया देखने में नहीं आई थी.कोई बवाल नहीं मचा,अलबत्ता तब नेहरु ने शंकर को फोन किया और कहा की “क्या आप एक गधे के साथ चाय पीना पसंद करेंगे? लेकिन यह भूली बिसरी बातें है. वो नेहरू थे! आज कुणाल सिस्टम से भिड़ रहा है, और सिस्टम उससे इतना चिढ़ा हुआ है कि उसके खिलाफ केस दर्ज हो गया, शिंदे के एक मंत्री महोदय कहते हैं कि ठीक है कुणाल मुआफी नहीं मांगे, हम शिव सैनिक उससे अपने ढंग से निपटेंगे, अब ज़रा दूसरी तरफ़ देखते हैं.

महाराष्ट्र सरकार के आंकड़े

"1 जनवरी 2024 से 31 मई 2024" तक 1046 किसानों ने आत्महत्या कर ली. सिर्फ चार महीने में 1046 परिवार बर्बाद, खेत खाली, और सरकार के पास टाइम नहीं कि इनकी हालत सुधारे. वैसे अगर महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की दर को और पीछे जाकर देखे तो हालत और भयावा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले 56 महीनों में औसतन हर दिन 8 किसान जान दे रहे हैं. कर्ज में डूबे किसानों की यह हालत राज्य सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बननी चाहिए, विपक्ष सरकार पर हमलावर है और किसानों की कर्जमाफी की मांग कर रही है, लेकिन सरकार को  मृत किसानों से प्रॉब्लम नहीं कुणाल कामरा की डार्क कॉमेडी से प्रॉब्लम है, किसानों की मौत से कान पर जूं नहीं रेंगती लेकिन कामरा के जोक से तो पूरा सिस्टम हिल गया. पुलिस, पॉलिटिशियन, न्यूज़ चैनल, सब एक्टिव हो गए. ये है आज का भारत! जहाँ किसान मर रहे हैं, नौजवान बेरोज़गार हैं, देश पर क़र्ज़ चढ़ता जा रहा है, क्राइम बढ़ रहा है, लेकिन न्यूज़ चैनलों के पास टॉपिक है, मंदिर, मस्जिद, और कुणाल कामरा.

किसानों की हालत और सरकार का ढोंग

चीज़ों को थोड़ा और गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि फसल का दाम नहीं मिलता, क़र्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा है, और बारिश भी टाइम पर नहीं आती. सरकार हर बार वादे करती है, क़र्ज़ माफी, एमएसपी बढ़ाएँगे, स्मार्ट खेती को बढ़ावा देंगे. लेकिन हक़ीक़त में? ज़ीरो. 1046 किसानों की मौत सिर्फ़ पांच महीनों में, ये कोई छोटा नंबर नहीं है. हर दिन औसतन 6-7 किसान अपनी जान दे रहे हैं. फिर भी बजट में इनके लिए कुछ ख़ास नहीं. उल्टा, बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स को टैक्स में छूट, और किसानों को लाठी. ये है आज के सिस्टम का पूरा चेहरा.अब शिंदे सरकार, जो बीजेपी के साथ है, वो क्या कर रही है? किसानों के लिए टाइम नहीं, लेकिन कुणाल कामरा को सबक सिखाने के लिए पूरा तामझाम तैयार. ये वही शिवसेना है जो कभी उद्धव ठाकरे के साथ "मराठी मानुस" और "किसानों की आवाज़" की बात करती थी. अब बीजेपी से हाथ मिलाकर वही पुराने ढर्रे पर, सेंटिमेंट भड़काओ, असली मुद्दों से ध्यान हटाओ.न्यूज़ चैनल और अंधविश्वास का धंधाअब न्यूज़ चैनल्स की बात करते हैं. ज़ाहिर है, इनके पास टाइम है बाबाओं को बुलाकर सवाल पूछने का "क्या कुणाल कामरा ने बोलने की आज़ादी की सीमा पार की है?" "क्या कॉमेडी में भारतीए संस्कृति का, महान "नेताओं " का मज़ाक बनाना चाहिए?" लेकिन किसानों की आत्महत्या, बेरोज़गारी, या देश का बढ़ता क़र्ज़? वो तो इनके एजेंडे में है ही नहीं.

मीडिया का तमाशा

ऊपर से ये सास-बहू वाले शोज़...सच्चाई ये है कि नौकरी इसलिए नहीं मिल रही क्योंकि सरकार ने पिछले 10 साल में नई जॉब्स क्रिएट ही नहीं कीं. युवा बेरोज़गार हैं, ग्रेजुएट्स ऑटो चला रहे हैं, और इंजीनियरिंग वाले सब्ज़ी बेच रहे हैं.  NSSO के डेटा के मुताबिक़, 2024 में बेरोज़गारी रेट 8.1% तक पहुच गयी, लेकिन न्यूज़ चैनल्स को टेंशन कुणाल कामरा से है, जो अपने शो में सच्चाई को मज़ाक के लहजे में बोल देता है. ये डार्क कॉमेडी नहीं, बल्कि समाज का आईना है. कुणाल ने साफ कर दिया कि वो माफी नहीं मांगेंगे. उनका कहना है, "अगर कॉमेडी से डर लगता है, तो अपनी नाकामियां छुपाने के लिए कुछ करो." सही भी है. कॉमेडी तो बस एक बहाना है. असली मसला ये है कि कुणाल जैसे लोग सवाल उठाते हैं—जो सरकार को पसंद नहीं. बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियाँ पिछले 10 साल से सत्ता में हैं. विपक्ष इनपर आरोप लगाता है कि इन्हें फ़ायदा होता है सेंटिमेंट भड़काने से, चाहे वो मंदिर-मस्जिद का मुद्दा हो, या कुणाल कामरा का. जनता को असली मुद्दों से भटकाओ, और वोट बैंक बनाओ.शिंदे सरकार को भी यही फ़ायदा है. महाराष्ट्र में एमवीए (शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस) की सरकार गिरने के बाद से बीजेपी और शिंदे गुट का गठजोड़ चल रहा है. लेकिन जनता में गुस्सा है, किसानों की हालत, बेरोज़गारी, और बढ़ती महँगाई को लेकर. ऐसे में कुणाल कामरा जैसा टारगेट मिल जाए, तो सारा गुस्सा उस पर निकाल दो. ये पुराना फॉर्मूला है, डिवाइड एंड रूल का नया वर्ज़न.

देश का हाल सच में अच्छा नहीं है, हम और आप तय करें कि हमारी ज़िम्मेदारी क्या है ? आरबीआई के मुताबिक़, 2025 में भारत का क़र्ज़ 285 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. क्राइम रेट बढ़ रहा है. एनसीआरबी की 2024 रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध में 12% का इज़ाफ़ा हुआ. ऊपर से किसान और बेरोज़गार आत्महत्या कर रहे हैं. लेकिन सरकार और मीडिया का फोकस? कुणाल कामरा की कॉमेडी. ये शर्मिंदगी की बात है.हमें सोचना चाहिए—क्या कुणाल कामरा सच में विलेन है, या वो बस एक बहाना है? असली विलेन तो वो सिस्टम है जो किसानों को मरने दे रहा है, नौजवानों को बेरोज़गार छोड़ रहा है, और जनता को अंधविश्वास में धकेल रहा है. कुणाल तो बस माइक लेकर सच बोल रहा है—हंसाते-हंसाते. सवाल हमसे है, कब तक हम मंदिर-मस्जिद और कॉमेडियंस के पीछे भागते रहेंगे? कब असली मुद्दों पर आवाज़ उठाएंगे?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.

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