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छोटी सी चिप की कमी से हिल गई है दुनिया, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और चीन आत्मनिर्भर, भारत क्यों नहीं?

एक लिस्ट है पहले इसे पढ़ जाइए, मोबाइल फोन, टीवी, टीवी का रिमोट, ऐसी, ऐसी का रिमोट, ब्लूटूथ हेडफोन, ब्लूटूथ स्पीकर, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव, मिक्सर ग्राइंडर, कार, मेट्रो कार्ड और स्मार्ट वॉच. ये लिस्ट और भी लंबी हो सकती थी लेकिन इतना बहुत है. आप सोच रहे होंगे कि हम आपको एक जबरदस्त इलेक्ट्रॉनिक शोरूम खोलने की सलाह देने जा रहे हैं, आप गलत हैं. अब इतने भी प्रिडिक्टेबल नहीं हैं हम. इस लिस्ट में कम से कम एक गैजेट तो ऐसा होगा ही जो आपके डे टू डे लाइफ का हिस्सा होगा. मोबाइल फोन समेत रोज इस्तेमाल किये जाने वाले लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट में एक दिल होता है जिसे सेमीकंडक्टर कहा जाता है. सेमीकंडक्टर नहीं तो कुछ नहीं. इनकी शॉर्टेज होना मतलब बड़ी-बड़ी कंपनियों और मैन्युफैक्चरर  के होश उड़ना, बड़े-बड़े लॉन्चिंग इवेंट का टल जाना, सप्लाई और डिमांड में भारी अंतर हो जाना और महंगाई का बढ़ जाना. अब मैं आपसे कहूं ऐसा सच में हो गया है तो? जी हां , इस समय इंडस्ट्री की डिमांड पूरी करने लायक सेमी कंडक्टर या कंप्यूटर चिप बन नहीं पा रहे हैं. इससे कई पापुलर गैजेट्स की डिमांड और सप्लाई में बड़ा गैप आ गया है.

दुनियाभर में PS5 गेम्स कंसोल खरीदना मुश्किल हो रहा है. टोयोटा, फोर्ड और वॉल्वो ने अपने प्रोडक्शन की रफ्तार घटा दी है या रोक दी है. स्मार्टफोन मेकर्स को भी चिप्स की कमी महसूस होने लगी है. रिलायंस जियो ने अपने अल्ट्रा-अफोर्डेबल जियोफोन नेक्स्ट की लॉन्चिंग टाल दी है. ऐपल के आईफोन्स का प्रोडक्शन भी इससे प्रभावित हो रहा है.

यह चिप शॉर्टेज क्या है? ऐसा क्यों हो रहा है? यह शॉर्टेज कब तक रहेगी? अलग-अलग देशों में इस शॉर्टेज को दूर करने के लिए क्या हो रहा है? आइए जानते हैं

क्या होता है सेमीकंडक्टर?

आज हर हाथ को काम मिल चुका है, एक व्यक्ति दिनभर में दसियों गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहा है. फिर चाहे वह कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट कार, वॉशिंग मशीन, ATM, अस्पतालों की मशीन से लेकर हाथ में मौजूद स्मार्टफोन ही क्यों न हों. यह सेमीकंडक्टर के बिना अधूरे हैं. यह चिप्स या सेमीकंडक्टर छोटे-छोटे दिमाग हैं, जो गैजेट्स को संचालित करते हैं. सेमीकंडक्टर चिप्स सिलिकॉन से बने होते हैं. इन्हें माइक्रो सर्किट में फिट किया जाता है, जिसके बिना इलेक्ट्रॉनिक सामान और गैजेट्स चल ही नहीं सकते. सभी एक्टिव कॉम्पोनेंट्स, इंटिग्रेटेड सर्किट्स, माइक्रोचिप्स, ट्रांजिस्टर और इलेक्ट्रॉनिक सेंसर इन्हीं चिप्स से बने होते हैं.

यह सेमीकंडक्टर ही हाई-एंड कंप्यूटिंग, ऑपरेशन कंट्रोल, डेटा प्रोसेसिंग, स्टोरेज, इनपुट और आउटपुट मैनेजमेंट, सेंसिंग, वायरलेस कनेक्टिविटी और कई अन्य कामों में मदद करते हैं. ऐसे में ये चिप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, एडवांस्ड वायरलेस नेटवर्क्स, ब्लॉकचेन एप्लिकेशन, 5G, IoT, ड्रोन, रोबोटिक्स, गेमिंग और वियरेबल्स का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.

सेमीकंडक्टर की शॉर्टेज कैसे और क्यों?

यह शॉर्टेज कोविड-19 महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन का एक साइड इफेक्ट है. इसकी शुरुआत 2020 में ही हो गई थी. शुरू में प्रोडक्ट्स की डिमांड कम थी, इस वजह से चिप्स की कमी महसूस नहीं हुई.

जैसे-जैसे दुनियाभर में गैजेट्स की डिमांड बढ़ी, कंपनियों के सामने चिप्स अरेंज करना मुश्किल होता गया. महामारी की वजह से सप्लाई चेन ही गड़बड़ा गई, और इस तरह एकाएक इलेक्ट्रॉनिक सामान की डिमांड बढ़ गई.

कब तक बनी रहेगी सेमीकंडक्टर की कमी?

अलग-अलग रिपोर्ट्स कह रही हैं कि चिप शॉर्टेज 2022 के अंत तक कायम रहेगी. कुछ का दावा है कि 2023 तक भी चिप शॉर्टेज बनी रह सकती है. कई देशों में अब भी कोविड-19 की वजह से प्रतिबंध लगे हैं, जो साल के अंत तक कायम रह सकते हैं. इसे देखते हुए इस साल तो चिप्स शॉर्टेज खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे.

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि 2023 तक शॉर्टेज जारी रह सकती है. इससे कई देशों में आर्थिक रिकवरी की उम्मीदों को झटका लग सकता है. प्रमुख देशों में क्लाउड कंप्यूटिंग से जुड़े एडवांसमेंट और 5G सर्विसेस का लॉन्च टल सकता है.

प्लूरिमी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के CIO पैट्रिक आर्मस्ट्रॉन्ग ने CNBC को दिए इंटरव्यू में कहा कि डिमांड-सप्लाई में संतुलन आने में 18 महीने तक का समय लग सकता है. विशेषज्ञों को लग रहा है कि देशों को चिप बनाने की क्षमताओं में निवेश बढ़ाना होगा, तभी मौजूदा संकट दूर हो सकेगा.

किन-किन कंपनियों पर पड़ रही क्राइसिस की मार?

इसकी तो गिनती करना ही मुश्किल है. रिसर्च फर्म IDC के मुताबिक कंप्यूटिंग और वायरलेस इंडस्ट्रीज में ग्लोबल चिप डिमांड की 50% खपत होती है. ऑटो इंडस्ट्री की तो सिर्फ 9% है. दुनियाभर में ऑटोमोबाइल कंपनियों को तगड़ा झटका लगा है. फोक्सवैगन, फोर्ड, रेनॉ, निसान और जगुआर लैंड रोवर तक चिप शॉर्टेज से प्रभावित हुए हैं.

इन सभी कंपनियों को चिप शॉर्टेज की वजह से करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है. कई कार कॉम्पोनेंट्स, जैसे- डिजिटल स्पीडोमीटर, इंफोटेनमेंट सिस्टम्स, इंजिनों का कंप्यूटराइज्ड मैनेजमेंट और ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम में चिप्स का इस्तेमाल होता है और यह प्रभावित हो रहा है.

बॉश के MD सौमित्र भट्टाचार्य ने हाल ही में कहा था कि चिप्स के शॉर्टेज का असर कार मार्केट पर 2022 तक दिखेगा. इस कमी से निपटने के लिए कंपनियां हाई-एंड फीचर पर काम करने से बच रही हैं, क्योंकि उसमें चिप्स जरूरी होती है.

न केवल ऑटो इंडस्ट्री, बल्कि कंज्यूमर गुड्स और स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरर्स भी दबाव में है. उन पर भी प्रोडक्ट्स की डिमांड पूरी करने का दबाव है, पर चिप्स शॉर्टेज उन्हें परेशान किए हुए हैं.

सैमसंग ने हाल ही में कहा था कि चिप शॉर्टेज की वजह से उसका टीवी और अप्लायंसेस प्रोडक्शन प्रभावित हुआ है. ऐपल, LG और अन्य चीनी इलेक्ट्रॉनिक और स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों पर भी चिप शॉर्टेज का कहर बरपा है.

शॉर्टेज का सीधा असर आप पर मारुति सुजुकी ने बड़ाई कारों की कीमत?

चिप शॉर्टेज की वजह से रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले अप्लायंसेस और टीवी से स्मार्टफोन तक- इलेक्ट्रॉनिक सामान की कीमतें बढ़ी हैं. पूरी दुनिया में सप्लाई चेन गड़बड़ाई है, जिससे सामान मिल भी नहीं पा रहा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आईपैड की डिलीवरी में दो-तीन हफ्ते से महीनेभर तक का समय लग रहा है.

मारुति सुजुकी ने हाल ही में प्रोडक्शन लागत बढ़ने की बात कहकर कारों की कीमतें बढ़ा दी हैं. अन्य कार निर्माता भी कीमतें बढ़ा सकते हैं. गोल्डमैन साक्स के मुताबिक ग्लोबल चिप संकट की वजह से इलेक्ट्रॉनिक गुड्स और कम्पोनेंट्स की कीमतों में 3% से 5% की बढ़ोतरी हो सकती है.

भारत में पैसेंजर कार की बिक्री अगस्त में 13.8% घट गई है. इसकी वजह सेमीकंडक्टर्स की कमी की वजह से प्रोडक्शन की रफ्तार में आई कमी है. मारुति सुजुकी, टाटा और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने प्रोडक्शन रोक दिया या शिफ्ट में कमी कर दी है. टोयोटा ने सालाना प्रोडक्शन टारगेट 3 लाख वाहन घटा दिया है. अमेरिकी कंपनियों- फोर्ड और जनरल मोटर्स के साथ ही जर्मनी की लक्जरी कार निर्माता कंपनी डेमलर ने भी प्रोडक्शन कट किए हैं.

बाकी देश इस कमी से निपट रहे, “डिजिटल इंडिया” दूसरों पर निर्भर

दक्षिण कोरिया ने 10 साल के लिए 450 बिलियन डॉलर (33 लाख करोड़ रुपए)) खर्च करने का प्लान बनाया है. इसके जरिए चिप निर्माताओं को बढ़ावा दिया जाएगा. दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर फर्म सैमसंग के वाइस चेयरमैन ली जे-यंग को भी जेल से रिहा कर दिया गया है.

अमेरिका ने 52 बिलियन डॉलर (3.83 लाख करोड़ रुपए) की सब्सिडी की घोषणा की है. ताकि देश में चिप इंडस्ट्री को मजबूती दी जा सके.

चीन सेमीकंडक्टर्स को लेकर आत्मनिर्भर बनने की राह पर है. पिछले महीने चीन के SMIC ने 8.87 बिलियन डॉलर (65 हजार करोड़ रुपए) के निवेश की घोषणा की. शंघाई में नई चिप फैक्ट्री लगाई जा रही है.

भारत ने भी कंपनियों को चिप डेवलपमेंट के लिए आग्रह किया है. उम्मीदें बहुत कम है. CII के मुताबिक भारत इस समय अपने सेमीकंडक्टर्स का इम्पोर्ट कर रहा है और यह करीब 24 बिलियन डॉलर (1.76 लाख करोड़ रुपए) का है. 2025 में यह डिमांड बढ़कर 100 बिलियन डॉलर (7.5 लाख करोड़ रुपए) की हो सकती है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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