Lakhimpur Kheri case: लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य अभियुक्त और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र को हाइकोर्ट से मिली जमानत पर यूपी की चुनावी सियासत और भी ज्यादा गरमा गई है. हालांकि कोर्ट ने तो न्यायिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अपने अधिकारों के तहत ही ये जमानत दी है, लेकिन इसकी टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि लखीमपुर खीरी की 8 विधानसभा सीटों पर 23 फरवरी को चुनाव होने हैं.


एक बड़ा सवाल ये भी उठ रहा है कि चुनाव के बीच आए कोर्ट के इस फैसले से बीजेपी को कोई फायदा होगा या फिर यूपी के किसानों के गुस्से की आग और भी ज्यादा भड़क उठेगी? हालांकि जमानत का फैसला आने के बाद विपक्षी दलों की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई है, लेकिन कानून के जानकार मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट कभी भी इस फैसले को पलट सकता है. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की निगरानी में ही एसआईटी ने इस मामले की जांच की है.


किसान नेता राकेश टिकैत ने उठाए गंभीर सवाल
आशीष मिश्र को जमानत मिलने पर किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ कह दिया है कि हम इस बात को यूपी में बीजेपी के खिलाफ प्रचारित करेंगे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी चुनाव के बाकी छः चरणों में कोर्ट का ये फैसला बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकता है. 


टिकैत ने एक बुनियादी सवाल उठाया है, जिसे कोई भी गलत नहीं ठहरायेगा. उन्होंने कहा कि कोई आम आदमी होता तो क्या इतनी जल्दी जमानत मिलती? राकेश टिकैत ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा कि कोर्ट पर क्या कह सकते हैं, बेल दे दी. हमारा तो यह कहना है कि 302 के इतने गंभीर मामले में दूसरे लोगों को भी बेल मिली हो तो ठीक है, नहीं मिली हो तो देख लो. लिहाज़ा, चुनाव में ये हमारे प्रचार का हिस्सा होगा. टिकैत ने ये भी कहा कि किसानों के पास इतने बड़े वकील तो हैं नहीं, ये बड़े आदमी हैं, इनके साथ सरकार और वकील खड़ी कर सकती है, तो मिल गई होगी, कोर्ट तो तथ्य के आधार पर चलती है, उन्होंने उस तरह की दलील दी होगी.


राकेश टिकैत ने आगे कहा कि "किसानों की कौन पैरवी करेगा. इनके साथ तो शायद 32 वकील थे. ये तो खड़े कर सकते हैं उस तरह के लोग. यह केस हमेशा हमारा रहेगा. यह संयुक्त मोर्चा और देश का रहेगा, जिस तरह हत्या की गई. किसान लड़ाई लड़ रहा है."


किसानों को गाड़ियों से कुचलकर कथित हत्या किए जाने वाले इस मामले के बाद पीड़ित परिवारों से मुलाकात के लिए अड़ने वालीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो इस मामले में सीधे प्रधानमंत्री को ही निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा, "अगर प्रधानमंत्री जी नेक और अच्छे हैं, तो किसानों को कुचलने वाले के मंत्री पिता का इस्तीफा क्यों नहीं मांगा? आज उसको जमानत मिल गई, अब वो खुला घूमेगा."


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विपक्षी दलों ने लगाए आरोप 
प्रियंका गांधी ने कहा, ''इनके मंत्री के पुत्र ने छह किसानों को कुचला, क्या उसने अपना इस्तीफ़ा दिया. हमारे प्रधानमंत्री जी बहुत अच्छे हैं. लेकिन क्या देश के प्रति कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं है उनकी. थोड़े ही दिनों में खुल के घूमेगा फिर से, जिसने आपको कुचल डाला. इस सरकार ने किसको बचाया, किसानों के परिवारों को बचाया? उनकी पुलिस थी, प्रशासन था, कहां थे वे सब जब उनको कुचला गया? मैं बताती हूं कि वे कहां थे. वो सब हम जैसे लोग जो किसानों के परिवारों से मिलने जा रहे थे, उन्हें रोकने में जुटे थे.''


वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने आशीष मिश्र को जमानत मिलने पर कहा कि, "मामला जब सुप्रीम कोर्ट में जाएगा तो किसानों को न्याय मिलेगा, जिन्होंने गलत किया है उनको सजा मिलेगी." जबकि राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी जयंत सिंह ने अपने ट्वीट में देश की न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठाते लिखा - " क्या व्यवस्था है!! चार किसानों को रौंदा, चार महीनों में ज़मानत… "


कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भी ट्वीट कर अपनी राय रखी. उन्होंने लिखा -"कल 'कैमरे' पर सफाई आई थी आज सामने से रिहाई आयी है ! किसानों से 'विश्वासघात' नहीं संयोग है, ये राजा के किये अत्याचारों का 'योग' है ! मग़र जनता भी कर रही प्रयोग है, सही मौके का करना 'उपयोग' है."


महुआ मोइत्रा ने की लोगों से अपील
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लखनऊ आकर अखिलेश यादव के लिए प्रचार किया है, लिहाज़ा उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस भला इस मामले पर चुप कैसे रह सकती थी. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी ट्वीट करके इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने ट्वीट किया - "किसी भी ज़मानत के लिए तीन बुनियादी सिद्धांत होते हैं कि आरोपी इन तीन चीज़ों को कर सकने की ताक़त या क्षमता ना रखता हो.-गवाहों को डराने की, सुबूत को नष्ट करने की और भाग जाने की. आशीष मिश्र ज़मानत की पहली शर्त को किस तरह पूरा करते हैं? "


महुआ मोइत्रा ने इस मामले पर एक अन्य ट्वीट में आशीष मिश्र की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा है, "यह व्यक्ति ज़मानत पर बाहर है. मुझे उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश का हर किसान वोट करते समय इस चेहरे के बारे में ज़रूर सोचेगा." 


कानूनी जानकार भी फैसले से हैरान
राजनीतिक प्रतिक्रिया से अलग हटकर देखें, तो कानूनी हलके में भी जमानत के इस फैसले को हैरानी से देखा जा रहा है. दिल्ली हाइकोर्ट के एडवोकेट रवींद्र कुमार के मुताबिक, "ये मामला रेयरेस्ट ऑफ द रेयर अपराध की श्रेणी में आता है, लिहाज़ा इसमें तो जमानत मिलनी ही नहीं चाहिए थी. यह किसी एक्सीडेंट से हुई मौतों का मामला नहीं बल्कि किसानों से बदला लेने की पूर्व नियोजित साजिश को अंजाम देने का गंभीर अपराध था."


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