भारत समेत दुनिया के चार दर्जन से भी ज्यादा देशों में एक खलनायक करार दिए गए दार्शनिक ओशो रजनीश ने बरसों पहले कहा था कि,"युवाओं के पास क्रोध तो बहुत है, शांति बिलकुल नहीं है, इसलिए सारा उपद्रव हो रहा है. लेकिन ये उपद्रव बढ़ेगा, उपद्रव और गहरा होगा. अभी वे मकान तोड़ रहे हैं, कल वह मकान जलाएंगे. अभी वह बसें जला रहे हैं कल वह आदमियों को जलाएंगे. अगले पचास साल के भीतर आदमी जलाए जाएंगे. अगर युवक का क्रोध इसी तरह गति करता रहा और उसे शांति की दिशा में ले जाने का कोई उपाय नहीं मिल सका तो आने वाले समय में यही भारत को देखने को मिलेगा."
हम नहीं जानते कि ओशो रजनीश की कही वो बातें मौजूदा दौर में किस हद तक सच साबित होती दिख रही हैं लेकिन इस सच्चाई से भी अपनी आंखें नहीं मूंद सकते कि जहां देश में शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी होती जा रही है तो वहीं केंद्र सरकार में करीब पौने 10 लाख पद खाली पड़े हुए हैं. सरकार का ये आंकड़ा भी पिछले साल 31 मार्च तक का है. जाहिर है कि अब तक इस संख्या में इज़ाफ़ा ही हुआ होगा. इसलिए, सवाल ये उठता है कि जो सरकार पिछले साढ़े आठ साल से हर नामुमकिन समस्या को सुलझाने में कामयाब साबित होती दिख रही है वो इतने लाखों पदों को भरने में आखिर नाकामयाब साबित क्यों हो रही है? इसे सरकार की उदासीनता कहें या फिर खर्चों में कटौती करने का रास्ता समझा जाए लेकिन ये स्थिति देश के लिए कोई शुभ संकेत नहीं देती है.
किसी भी देश के हुक्मरान को वो इतिहास कभी नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया के किसी भी मुल्क में क्रांति का आगाज़ करने में पढ़े-लिखे लेकिन बेराजगार युवाओं का ही सबसे अहम योगदान रहा है और उनकी ताकत के दम पर ही वहां के विरोधी दलों ने सत्तापलट की है. पिछली दो सदियों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हुई राजनीतिक उथलपुथल के घटनाक्रम पर गहराई से विश्लेषण करने वाले मनोवैज्ञानिक भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जिस देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में जितनी तेजी से बढ़ोतरी होती है वहां की सत्ता एक ऐसे ज्वालामुखी के ढेर पर बैठी होती है जो किसी भी वक्त एक भयावह विस्फ़ोट का रूप ले सकती है.
दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार से ये पूछा गया था कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में कितने पद खाली हैं और उसे भरने के लिए सरकार बे क्या कदम उठाए हैं. शायद आप भी ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि सरकारी अमले में कामकाज किस तरह से होता है कि सरकार के मंत्रियों को भी ये पता नहीं लगता कि नौकरशाही ने कितनी चतुराई से उन्हें चकमा दिया है या फिर जनता के सामने उनकी पोल खोलकर रख दी है. इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि सरकार ने इस बारे में जो जवाब बीती 3 अगस्त को लोकसभा में दिया था उसी जवाब को 14 दिसंबर को हूबहू दोहरा दिया गया. न तो जवाब तैयार करने वाले नौकरशाहों ने इस पर ध्यान दिया कि इसमें अपडेट करने वाले कुछ आंकड़े पेश किए जाएं और न ही मंत्री जी ने ये जानने की जहमत उठाई कि वे चार महीने पुराने आंकड़ों को दोहराकर संसद और जनता को गुमराह करने की गलती तो नहीं कर रहे हैं.
दरअसल, केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसंभा में बताया है कि विभिन्न विभागों में करीब 9.79 लाख पद खाली हैं. इनकी भर्ती को लेकर पूछे गए सवाल पर सरकार को तरफ से दलील दी गई है कि इन 9,79,327 पदों को भरने के लिए आवश्यक निर्देश दे दिए गए हैं. केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक लिखित प्रश्न के उत्तर में यह भी बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 1,472 भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के 864 और भारतीय वन सेवा (IFS) के 1,057 अधिकारियों के पद फिलहाल खाली हैं. बता दें कि संसद के मानसून सत्र में 3 अगस्त को इसी मुद्दे पर ठीक यही सवाल ममता बनर्जी की पार्टी TMC के सांसद सौगत राय ने पूछा था. तब भी सरकार की तरफ से केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेन्शन मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सदन को बताया था कि केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में ग्रुप A, ग्रुप B और ग्रुप C के कुल 9 लाख 79 हजार 327 खाली हैं.
यानी अगस्त से लेकर दिसम्बर तक या तो कोई बदलाव नहीं आया है या फिर नौकरशाही ने उसी पुराने जवाब को मंत्री जी के सामने पेश करके उनकी भी आंखों में धूल झोंक दी है. इसके पीछे का सच क्या है, ये हम भी नहीं जानते लेकिन सरकारी अमले में कहीं, किसी स्तर पर कोई गड़बड़झाला तो जरुर है जिसकी सुध लेना उस विभाग के मंत्री की ही जिम्मेदारी है. खाली पदों को भरने को लेकक़र भी मंत्री ने अपने उसी पुराने जवाब को ही दोहराया है. केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री ने दलील दी है कि खाली पदों को भरना एक सतत प्रक्रिया है जिन्हें केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों या संगठनों की जरूरत के आधार पर भरा जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने खाली पदों को समय पर भरने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं.
सरकार की सफाई अपनी जगह है लेकिन इस हालात में ओशो रजनीश की कही ये बात भी याद आ जाती है कि, "शुतुरमुर्ग को क्षमा किया जा सकता है पर आदमी को क्षमा नहीं किया जा सकता. लेकिन भारत शुतुरमुर्ग के तर्क का उपयोग कर रहा है आज तक. वह कहता है, जो चीज नहीं दिखाई पड़ती है, वह नहीं है, इसलिए विश्वास का अंधापन ओढ़ लेता है और जीवन के सच को देखना और उसे स्वीकारना बंद कर देता है."
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