(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
पिछले 3 महीने पहले से ही JDU का सारा काम संभाल रहे थे नीतीश, जेडीयू अध्यक्ष से ललन सिंह के इस्तीफे के पीछे छिपा है सियासी खेल
लोकसभा चुनाव से करीब चार-पांच महीने पहले पहले बिहार की सियासत में बदलाव हुआ है. जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दिल्ली बैठक के दौरान ललन सिंह ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उनके पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए जाने के फैसले पर खुद ललन सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मुंगेर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाने की वजह से उन्होंने ये कदम उठाया है. हालांकि, उनके इस्तीफे कि अटकलें पिछले कुछ दिनों से लगातार लगाई जा रही थी. जेडीयू अध्यक्ष पद से ललन सिंह के इस्तीफे के बाद अब सवाल उठ रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार की क्या कुछ रणनीति होगी? क्या नीतीश अब लालू यादव का साथ छोड़ देंगे या फिर इंडिया गठबंधन के साथ बने रहेंगे?
दरअसल, पिछले एक पखवाड़े से बिहार के सियासी गलियारों में सरगर्मी की ये बड़ी वजह रही कि राज्य की सत्तारुढ़ दल जेडीयू में टूट की खबर आ रही थी. लोकसभा चुनाव ठीक चार महीने के बाद होना है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. पिछली बार के चुनाव में नरेन्द्र मोदी का नाम और चेहरा था. साथ ही, नीतीश कुमार के काम पर बड़ी कामयाबी मिली थी. उस दौरान नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा होकर चुनाव लड़े थे. 40 लोकसभा सीट में से बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में 39 सीटें मिली थी. एक सीट कांग्रेस को मिली थी. जबकि राष्ट्रीय जनता दल का बिहार में खाता भी नहीं खुल पाया था.
ललन सिंह ने क्यों दिया इस्तीफा?
उसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी को झटका दिया और इस साल अगस्त के महीने में बीजेपी को अलग छोड़कर आरजेडी के साथ नई दोस्ती की. कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया. पूरा विपक्ष एकजुट हो गया और इस वक्त बिहार में महागठबंधन की सरकार चल रही है.
अब जबकि लोकसभा चुनाव बिल्कुल सिर पर है और जेडीयू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले ललन सिंह, उनकी कार्यशैली, बॉडी लैंग्वेज और कार्यकर्ताओं के साथ उनका बेरुखा व्यवहार... ये सब ध्यान में रखकर नीतीश कुमार ने संगठन में बड़ा बदलाव करने की ठानी. इसी के तहत ललन सिंह से उनका पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा लिया गया है. इससे पहले कई तरह की चर्चा थी कि ललन सिंह के साथ नीतीश कुमार का मनमुटाव हो गया है.
जब नीतीश कुमार जेडीयू राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बिहार से नीतीश कुमार दिल्ली निकल रहे थे, उस वक्त गुरुवार को मीडिया की तरफ से उनसे सवाल किया. पिछले करीब एक पखवाड़े से नीतीश कुमार लगातार मीडिया के साथ बात करने से परहेज कर रहे थे.
नीतीश क्यों कर रहे थे मीडिया से परहेज?
जब नीतीश कुमार से ये बात पूछा गई कि क्या आप जेडीयू के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं तो उन्होंने ना में नहीं जवाब दिया. उन्होंने कहा था कि सबकुछ नॉर्मल है, आप चिंता मत कीजिए. जिस तरह से उनका गोलमटोल जवाब था, साथ ही उनके दो तीन-मंत्रिमंडलीय विश्वस्त सहयोगी अशोक चौधरी, विजय चौधरी और संजय झा... उनके साथ वे दिल्ली पहुंचे थे.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी से ठीक पहले लगे पोस्टर में ललन सिंह की तस्वीर जब नहीं दिखी, तब ये बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि जेडीयू की कमान नीतीश कुमार लेने जा रहे हैं. ये इस बात का संकेत भी है कि जेडीयू अध्यक्ष पद से ललन सिंह को हटाने के पार्टी ने मन बना लिया था और सिर्फ औपचारिक घोषणा ही बाकी रह गई थी. सच्चाई ये है कि नीतीश के हाथ एक बार फिर से पार्टी की बागडोर आ गई है. पहले भी वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं.
हालांकि, एक बात गौर करने वाली है और वो ये कि तीन महीने पहले से ही नीतीश कुमार पार्टी संगठन का सारा काम खुद संभाल रहे थे. जेडीयू के अभी 16 लोकसभा सदस्य हैं, नीतीश ने सभी लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों के साथ वन-टू-वन बातचीत की. इनमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश भी शामिल थे.
हरिवंश के बारे में कहा जा रहा था कि उनकी बीजेपी ने नजदीकी हो गई है, लेकिन वे पार्टी के बुलावे पर आए और नीतीश कुमार के साथ मुलाकात की. उसके बाद, जिला अध्यक्ष, प्रखंड अध्यक्ष और विधायकों के साथ नीतीश कुमार ने बैठक की. किसी भी इन बैठकों में ललन सिंह मौजूद नहीं रहे.
इससे पहले, एक बार नीतीश कुमार के आवास पर बैठक के दौरान ललन सिंह और अशोक चौधरी दर्जनों पार्टी नेताओं के साथ जिला अध्यक्षों के सामने आपस में भिड़ गए. उसके बाद नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी को ज्यादा वेट दिया. कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि ललन सिंह को लगातार पार्टी से किनारे करने की कोशिश हो रही थी. उसकी का ये परिणाम था कि अध्यक्ष बदला गया और नीतीश ने खुद जेडीयू की कमान अपने हाथों में ले ली.
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