विजेता बनने की होड़ में तीखे निजी हमलों का दौर
लोकसभा चुनाव की जंग अपने आखिरी दौर में पहुंच चुकी है। इस दौर के लिए राजनीतिक दल किसी भी सीमा को लांघने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। पूर्वांचल के इस रण का केंद्र वाराणसी बन चुका है।
2014 में इसी वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद मोदी लहर ने तेजी पकड़ी जो भाजपा की भाषा में सुनामी तब्दील हो गई। पार्टी को ना सिर्फ यूपी में बल्कि देशभर में ऐतिहासिक जीत मिली थी लेकिन आज बात सियासत की अदावत में हो रहे निजी हमलों पर होगी। क्योंकि चुनाव जीतने के लिए अब राजनीतिक दल निजी टिप्पणियों तक पहुंच चुके हैं।
2019 की जंग खत्म होने को है लेकिन नेताओं की बदजुबानी की रफ्तार वैसे ही बरकरार है जैसे चुनाव की शुरुआत में थी। इन दिनों रोजाना प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रधानमंत्री के खिलाफ बयान देते-देते बसपा अध्यक्ष मायावती ने उनपर निजी हमला कर दिया।
मायावती ने पीएम पर बड़ा निजी हमला करते हुए कहा था कि 'मुझे तो यह भी मालूम है कि बीजेपी में खासकर विवाहित महिलाएं अपने आदमियों को श्री मोदी के नजदीक जाते देखकर, ये सोचकर भी ज्यादा घबराती हैं कि कहीं ये मोदी अपनी पत्नी की तरह हमें भी अपने पति से अलग न करवा दें'।
पीएम मोदी के निजी जीवन को चुनाव में घसीटने वाली मायावती खुद सार्वजनिक जीवन में निजी जिंदगी के ज़िक्र की मुखालफत करती रही हैं। यही वजह है कि अपने जीवन पर फिल्म की योजना तक बनने पर मायावती ने कड़ा ऐतराज़ जताया था। दरअसल 2014 में लोकसभा में खाता ही नहीं खुलने और 2017 में 19 सीटों पर सिमटने वाली मायावती इस बार वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसे में उनकी कोशिश है कि प्रधानमंत्री पर सीधा हमला बोलकर खुद को भाजपा खासतौर पर मोदी के खिलाफ सबसे बड़े चेहरे के तौर पर स्थापित किया जाए। जिसे भाजपा के करीबी रहे ओमप्रकाश राजभर का भी समर्थन मिल गया है। उन्होंने कहा कि इस बार दलित प्रधानमंत्री बनेगा,मायावती बन सकती हैं प्रधानमंत्री। लेकिन खुद पर हो रहे इन हमलों और गोलबंदी को प्रधानमंत्री मोदी मायावती और गठबंधन की हार की हताशा बता रहे हैं।
मोदी ने रैली में कहा कि गठबंधन की पार्टियां हर रैली में चुन-चुनकर मुझे गाली दे रहे हैं, लेकिन उनकी ये गाली-गाली नहीं मेरे लिए उपहार है, क्योंकि वो हार की हताशा में ये सब बोल रहे हैं।
आखिरी चरण में यूपी की 13 सीटों पर चुनाव होना है, जहां पूरा चुनाव जातिगत गोलबंदी के इर्द-गिर्द सिमट गया है। संकल्प पत्र और घोषणा पत्रों में गरीबों, किसानों और लोकहित के वादों के साथ शुरु हुआ लोकसभा चुनाव अंतिम चरण आते-आते नेताओं के एक दूसरे पर निजी हमलों पर जा पहुंचा है। वोट बैंक साधने की जुगत में नेता कोई भी सीमा लांघने से गुरेज नहीं कर रहे। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या..
-क्या वजूद की जंग लड़ रही मायावती ने पीएम पर हमले को लेकर लांघी सीमा -पूर्वांचल में आखिरी दौर की जंग का फैसला करेंगे दलित? -क्या पीएम को सीधी चुनौती देकर अपनी दावेदारी पुख्ता करना चाहती हैं मायावती?राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ जीत ही अब एकमात्र लक्ष्य बन चुका है और इस विजय संकल्प को पूरा करने के लिए पार्टियां और नेता किसी भी स्तर पर जाने में नहीं हिचकिचा रहे हैं। मौजूदा राजनीतिक दौर में नैतिकता की उम्मीद करना बेमानी है, क्योंकि चुनाव के बाद सभी दल और नेता जनभावनाओं को दरकिनार कर सत्ता के लिए अपने सभी विकल्प खोल देते हैं।