BLOG: मेहनत करना कोई सीखे शिवराज और दिग्विजय से...
ये तो सच है कि जब 2018 के चुनाव में बीजेपी सरकार नहीं बना पायी तो सबकी नजरें मुख्यमंत्री पद से हटे शिवराज सिंह चौहान को लेकर थी वो अब क्या करेंगे. उनका नया रोल अब क्या होगा कैसे वो अपने आपको व्यस्त रखेंगे.
पांच मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बासठवां जन्मदिन था और वो देर रात दिल्ली से लौट कर सुबह से ही अपने जन्मदिवसपर पौधा लगाने के कार्यक्रम में जुटे हुये थे. मुख्यमंत्री निवास में भी उस दिन बदला हुआ माहौल था. माला और फूलों के गुच्छों की जगहलोग छोटे छोटे पौधे लेकर आ रहे थे और मुख्यमंत्री को भेंट कर रहे थे. उधर शिवराज थे कि समझ नहीं पा रहे थे कि एक दिन पहले मैंने अपने जन्मदिन पर तो लोगों से पौधा लगाने की अपील की है और ये सब मुझे क्यों पौधे दिये जा रहे हैं. वो पौधे लेने के बाद उनको विनम्रता से लौटा भी रहे थे कि भाई ये पौधा आपको ही लगाना होगा मैं तो अपने हिस्से के पौधे लगा ही रहा हूं. सच में वो अमरकंटक में19 फरवरी से रोज एक पौधा लगा ही रहे हैं फिर चाहे वो भोपाल के अटल पथ पर तय जगह पर लगे या फिर हावडा दौरे मेंजगतवल्लभपुर जगह या फिर शनिवार की सुबह जबलपुर में हवाईअड्डे के पास पौधा रोपण जारी है. मगर वो ये पौधे लगा क्यों रहे हैं जब इसके लिये उनके पास लंबा चौडा विभाग भी है तो इसका जबाव शिवराज ने अपने जन्मदिवस के दिन मंत्रालय में मिलने गये पत्रकारों को दिया कि अब मैं प्रदेश का चौथी बार का मुख्यमंत्री हूँ अब मेरा मन वो सारे काम करने का होता है जिससे समाज में सकारात्मक संदेश जाये.
पत्रकारों से बात करते करते वो अचानक फिर चौंके बोले अरे आपको मिठाई मिली कि नहीं आज मेरा जन्मदिन है इसलिये ज्यादा मिठाई खाइये. जब हमने कहा कि आपके पिछले जन्मदिन की मिठाई भी बाकी है तो वो ठठाकर हंस पडे अरे हां पिछला जन्मदिन तो हमारा रहस्य में बीता था यहां सब कुछ उलटा पुलटा चल रहा था. हम दिल्ली भोपाल कर रहे थे और जन्मदिन कब आया कब गया पता नहीं चला. मगर जो हुआ अच्छा हुआ हमने सोचा नहीं था कि इतनी जल्दी वापसी करेंगे. हमने तो पांच साल विपक्ष में रहने का मन बना लिया था. रोज दौरे करते थे कभी रेल से विदिशा तो कार से मंदसौर और पार्टी के लिये सदस्यता अभियान में बाइस राज्य नाप दिये.मगर प्रदेश की हालत देखी नहीं गयी और जो हुआ आपके सामने हैं.
ये तो सच है कि जब 2018 के चुनाव में बीजेपी सरकार नहीं बना पायी तो सबकी नजरें मुख्यमंत्री पद से हटे शिवराज सिंह चौहान को लेकर थी वो अब क्या करेंगे. उनका नया रोल अब क्या होगा कैसे वो अपने आपको व्यस्त रखेंगे. क्योंकि वो ना तो विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष बने और ना ही प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष और ना ही उनको केंद्र सरकार में या फिर बीजेपी के संगठन में कोई बडी जिम्मेदारी दी गयी थी. मगर इसके बाद भी शिवराज सिंह की सक्रियता में कोई कमी नहीं आयी. वो सुबह से अपने लिंक रोड एक पर बने बंगले परहम टीवी के पत्रकारों के लिये सरकार के खिलाफ उठ रहे मुददों पर बयान देते फिर दौरे पर निकल जाते लंबा दौरा कर लौटते फिरपत्रकार वार्ता करते और मसला भोपाल का हो या फिर प्रदेश के दूर जिले का वो वहां जाने को हरदम उतावले होते. इस बीच में एक परिवर्तन और आया था कि वो अब हम पत्रकारों से थोडे खुलने लगे थे अनौपचारिक होकर बातें करते और थोडा वक्त बिताते. मगर पिछले साल मार्च में इन्हीं तारीखों में हुये घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति ओर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के दिन फिर बदल दिये. अबशिवराज फिर चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन कर मंत्रालय वल्लभ भवन के अपने कक्ष में जन्मदिन के रोज सबसे सहजता से मिल रहे हैं मिठाई खिला रहे हैं चर्चा कर रहे हैं बडे छोटे का भेद उनके सामने नजर नहीं आता. तभी उनको देखकर लगता है कि मध्यप्रदेश कीराजनीति गहराई से किसी नेता ने समझा है तो वो शिवराज ही हैं तभी वो इतने लंबे समय तक इस पद पर हैं जहां पहुँचना कठिन है तोबने रहना और मुश्किल काम होता है.
उधर शिवराज सिहं की टक्कर और मेहनत का कोई नेता प्रदेश में है तो वो हैं दिग्विजय सिंह जो हर हाल में अपनी सक्रियता नहीं छोडते जुटे रहते हैं नये नये दौरे कर पार्टी के कार्यक्रमों से लेकर कार्यकर्ताओं के पारिवारिक आयोजनों में जाने में को भी. वो कांग्रेस की सरकारमें दस साल तक मुख्यमंत्री रहे. अब सांसद हैं और उनको करीब से जानने वाले दावा करते हैं कि राजा ने पिछली सरकार अपने दम परबनवाई अपने तरीके से चलाई और सरकार के गिरते ही फिर निकल पड़े अपनी नयी व्यस्तता तलाशने. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इनदिनों मालवा के जिलों में लगातार सुबह शाम गैर राजनीतिक किसान पंचायत कर रहे हैं जिसमें वो मंच पर नहीं बल्कि किसानों के बीच भीड़ में बैठते हैं जो लोग आते हैं उनको घंटों सुनते हैं कोई राजनीतिक बात नहीं करते. सर पर गमछा से धूप और सामने रखी पानी कीबाटल से प्यास बुझाते रहने वाले दिग्विजय सिहं को देखकर कहना कठिन होता है कि ये प्रदेश के दस साल तक मुख्यमंत्री रहे. वैसे दिग्विजय के करीबियों का दावा है कि राजा ने फिर कसम खाई कांग्रेस की प्रदेश में फिर सरकार बनाने की. पिछली सरकार में वापसी के पहले भी उन्होंने सैकडों किलोमीटर की गैर राजनीतिक नर्मदा पदयात्रा की थी.
वैसे शिवराज सिंह और दिग्विजय सिंह दोनों प्रदेश के मेहनती ओर लोकप्रिय नेता है. दोनों के जन्मदिन पास पास आते हैं. दोनों कीअपनी खूबी और कमजोरियां हैं मगर फिलहाल दोनों के सामने अब अपने आपको प्रदेश के बाद केंद्र की राजनीति में जमने की चुनौती है.
वैसे नरेद्र मोदी ने अहमदाबाद से दिल्ली आकर झंडा गाडकर बता दिया कि किसी राज्य का जनप्रिय नेता भी देश का लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन सकता है. भोपाल से भी कोई दिल्ली में झंडा फहराने की ख्वाहिश रखता है या नहीं...हम देखेंगे..
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस किताब समीक्षा से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.