Aadhar and Voter ID Linking: फर्जी मतदान और एक से अधिक जगह से वोटर बनने के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए वोटर कार्ड (Voter ID Card) को आधार कार्ड (Aadhar Card) से जोड़ने वाले बिल को आज विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद लोकसभा (Lok Sabha) ने पास कर दिया है. विपक्ष की दलील है कि ये सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक फैसले के खिलाफ है. साथ ही मतदाता सूची को आधार से जोड़ने से संविधान के अनुच्छेद 21 का और निजता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है.


हालांकि सरकार ने चुनाव सुधार की दिशा में ऐसा करने के फायदे गिनाते हुए विपक्ष की ये दलील ठुकरा दी है कि विधेयक पर विचार के लिए इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाए. कानून के कुछ जानकर मानते हैं कि इसे लागू करना सरकार के लिए इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि इसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करने का जो प्रस्ताव है, उसे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष चुनौती दी जा सकती है. लिहाज़ा विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए शक-सवालों को एकदम से दरकिनार नहीं किया जा सकता.


दरअसल, सितंबर 2018 में पूर्व जस्टिस के एस पुट्टास्वामी की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आधार नंबर (Aadhar Number) की अनिवार्यता और इससे जुड़े  निजता के उल्लंघन पर अहम फ़ैसला सुनाया था. पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच ने बहुमत से कहा था कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है और सरकारी योजनाओं में उसका इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन उस फैसले में इसका जिक्र कहीं नहीं है कि वोटर कार्ड को भी आधार कार्ड से जोड़ा जा सकता है, क्योंकि तब सरकार की तरफ से कोर्ट को ये नहीं बताया गया था कि भविष्य में उसकी योजना वोटर लिस्ट से भी आधार को जोड़ने की है.


इस फैसले से एक साल पहले 24 अगस्त 2017 को जस्टिस पुट्टास्वामी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसला ये भी सुनाया था कि राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy) यानी निजता का अधिकार, एक मौलिक अधिकार है. यानी उस फैसले के बाद अब लोगों की मर्जी के बगैर उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और ये संविधान के आर्टिकल 21 के तहत आता है.


दरअसल, निजता का ये मुद्दा भी तब आधार कार्ड को अनिवार्य करने वाले सरकार के कदम के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था. इस फैसले से केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा था, क्योंकि तब केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता, मौलिक अधिकार नहीं है. वह फैसला आने के बाद ही पांच जजों की संविधान पीठ ने आधार योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी.


यही वजह थी कि आज लोकसभा में विपक्षी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के उसी फैसले से जोड़ते हुए इस बिल का विरोध किया. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पुत्तुस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए इस विधेयक को उसके खिलाफ बताया. उन्होंने ये भी कहा, ‘‘हमारे यहां डाटा सुरक्षा कानून नहीं है और अतीत में डाटा के दुपयोग किये जाने के मामले भी सामने आए हैं .’’


वैसे ये भी सच है कि लोगों की निजी जानकारी का दुरुपयोग होने की आशंका से इसलिए भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वोटर कार्ड के आधार से जुड़ते ही चुनाव आयोग के पास करोड़ों वोटरों की पर्सनल लाइफ का पूरा डाटा होगा और इसकी क्या गारंटी है कि कोई उसका दुरुपयोग नहीं कर सकता. कुछ सांसदों ने इस आधार पर भी इसका विरोध किया कि इस तरह का विधेयक लाना सरकार की विधायी क्षमता से परे है. इसके अलावा आधार कानून में भी कहा गया है कि इस प्रकार से आधार को नहीं जोड़ा जा सकता है.


वहीं तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय की दलील थी कि इस विधेयक में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन किया गया है और साथ ही ये मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है. AIMIM के मुखिया असदुद्दीन औवैसी (Owaisi) ने इसे संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों एवं निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए ये भी कहा कि यह विधेयक गुप्त मतदान के प्रावधान के भी खिलाफ है.


दरअसल, इस विधेयक में सैन्यकर्मियों के लिए जो प्रावधान किया गया है, उससे मतदान की गोपनीयता पर भी असर पड़ेगा. विधेयक के मुताबिक चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा. वर्तमान चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है, लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका पात्र नहीं है. अब विधेयक को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने और इसके कानूनी शक्ल लेने के बाद स्थितियां बदल जाएंगी.


हालांकि लोकसभा में विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने ये विधेयक पेश करते वक़्त विपक्षी सदस्यों की आशंकाओं को निराधार बताते हुए यही कहा कि सदस्यों ने इसका विरोध करने को लेकर जो तर्क दिये हैं, वे उच्चतम न्यायालय के फैसले को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास है. जबकि यह शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप है. लेकिन खतरा यही है कि चुनाव सुधार को लेकर की गई सरकार की ये कोशिश कहीं कानूनी पेचीदगियों में ही उलझकर न रह जाए?


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