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उत्तराखंड UCC कानून: शादी की तरह लिव इन में भी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य... फिर सात फेरों के पवित्र बंधन से क्या होगा अलग?

उत्तराखंड में मंगलवार यानी 6 फरवरी को समान नागरिक संहिता विधानसभा में पारित कर दिया गया. इसके दायरे से हालांकि अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखा गया है और अभी इसके कानून बनने में कुछ कदम और शेष हैं, लेकिन इसे एक तरह का प्रयोग माना जा रहा है. उत्तराखंड में प्रयोग के बाद पूरे देश में इसे आजमाने की कोशिश की जाएगी, ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं. इस कानून को लेकर मुस्लिम पक्ष भी मैदान में आ गया है और इसे उनके धार्मिक अधिकारों पर अतिक्रमण मान रहा है. लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर कराने की अनिवार्यता पर भी खासी बहस छिड़ी हुई है. ऐसे में तमाम मुद्दों को लेकर व्यालोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शशांक शेखर झा से विस्तृत बात की. प्रस्तुत हैं, उसके अंश

प्रश्न- उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी (यूनिफॉर्म सिविल कोड) को विधानसभा में पारित किया गया. कुछ ही दिनों में यह कानून बन जाएगा. इसके ऊपर कई विवाद भी हैं और सवालात भी. पहला सवाल तो यही है कि लिव-इन और विवाह में अंतर क्या होगा, क्योंकि रजिस्ट्रेशन दोनों का कराना है?

उत्तर- अच्छी बात यह है कि अब यूसीसी पर चर्चा हो रही है. अच्छी बात यह है कि उत्तराखंड में सर्वसम्मति से यूसीसी पारित हुआ है. एक चीज जिसकी बात आपने की है, उसको लेकर विवाद भी हो रहा है और आपने उस पर सवाल भी किया है. शादी जब दो वयस्कों के बीच में होती है, जिसे भारत का संविधान मानता है, तो उसमें कई राइट्स यानी अधिकार खुद ब खुद बन जाते हैं. जैसे कि, बच्चे का क्या होगा, संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा, सेपरेशन के बाद अगर मेंटेनेंस की बात आएगी, तो वह कैसे आएगी, बच्चों की कस्टडी कैसे मिलेगी, तलाक होगा तो कैसे होगा, आप कितनी शादियां कर सकते हैं, अगर कभी घरेलू हिंसा होती है तो क्या होगा और इस जैसे कई सारे सवालों के जवाब दिए जाते हैं. 

 

लिव-इन के बारे में यह एक्ट बात कर रहा है कि कई बार विभिन्न राज्यों में कई कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई वयस्क किसी दूसरे के साथ रहना चाह रहा है, तो उसे रहने का अधिकार है. उसे ही निजता का अधिकार कहा गया है. हालांकि, कई बार इसकी वजह से हमारे देश की बच्चियों के साथ हिंसा की घटनाएं हो जाती हैं, क्योंकि मां-बाप को पता नहीं होता कि वे कहां रह रही हैं या किसी के साथ ऱह रही हैं या नहीं. कानून ने वैसे भी कह रखा है कि वयस्क व्यक्ति अपनी मर्जी से रह सकते हैं. ऐसे मामलों में कई बार पैरेंट्स को पता नहीं होता, बेडरूम के अंदर तो सरकार घुस नहीं सकती औऱ स्टेट को घुसना भी नहीं चाहिए, तो आखिरकार जब तक पता चलता है, तब तक कुछ दुर्घटना हो जाती है. चाहे वो श्रद्धा वॉल्कर जैसी घटना हो या वैसी और भी कई तरह की घटनाएं हैं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ही बस सूचना देने की बात कही गयी है. लिव-इन को आप नहीं रोक सकते हैं, क्योंकि वह इच्छा है, वह अधिकार है. इसलिए, सरकार ने कहा है कि आपको लिव-इन में रहना है तो रहिए, बस हमें बता दीजिए. यह बस एक सावधानी है, शादी से इसकी तुलना नहीं कर सकते हैं. 

प्रश्नः अगर लिव-इन में रहने के कुछ महीने या समय के बाद कोई लड़का है या लड़की है, वह छोड़ कर चला जाता या जाती है, तो, उससे कैसे डील करेंगे?

उत्तर-केरल हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले अपने एक फैसले में यह कहा था कि अगर कोई लड़का-लड़की पांच साल तक लिव-इन में रहते हैं, तो उसको शादी मान लिया जाएगा. अन्य उच्च न्यायालय ने भी ये बात कही है. अगर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के दौरान किसी बच्चे का जन्म हो जाता है, तो उसको भी वही सारे अधिकार दिए गए हैं, जो शादी से पैदा हुए बच्चे को हैं. तो, समाज में बहुत अधिक फर्क रहा नहीं है. भारतीय समाज में अब इस पर रोक लगाना संभव नहीं है. ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह प्रोटेक्ट करे, तो महिलाओं को यह सुरक्षा देना बहुत जरूरी है. उत्तराखंड में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जहां शोषण के बाद लड़के छोड़ कर चले गए हैं. तो, लड़कियों को सुरक्षा कैसे देंगे, इसीलिए सरकार कह रही है कि आप सोच-समझकर लिव-इन में आओ और उसके बाद ही रहो. हां, जहां तक मेंटेनेंस की बात है तो वह दोनों पर बराबर होनी चाहिए, केवल लड़कों पर नहीं. हालांकि, यह मेरी व्यक्तिगत सोच है. 

प्रश्नः मान लीजिए कि बिहार का या दक्षिण भारत का लड़का या लड़की है, जिसने उत्तराखंड के निवासी लड़के या लड़की से शादी कर ली, तो कौन सा कानून लागू होगा?

उत्तर-यह अहम सवाल है, लेकिन जवाब आसान है. अगर कोई बाहर का लड़का या लड़की उत्तराखंड जाकर वहां शादी करता है, तो उसे वहीं का कानून मानना होगा. इसको ऐसे समझिए कि भारत में शादी कर लेने के बाद अगर कोई अमेरिका जाता है, उसकी शादी भले ही भारत में रजिस्टर्ड है, तो उसे अमेरिका के ही कानून मानने होंगे. चाहे वो शादी के हों, सिविल लॉ हों या क्रिमिनल लॉ हो. यह काम इस तरह करता है कि 'लॉ ऑफ द लैंड' का सम्मान हमेशा होता है. अब मान लीजिए कोई गोआ का व्यक्ति शादी कर उत्तराखंड गया हो, लेकिन उसको उत्तराखंड का ही कानून मानना होगा. हालांकि, समस्या होगी कुछ. जैसे, यूसीसी में पॉलीगैमी यानी बहुविवाह की इजाजत नहीं है, जबकि मुसलमानों में कई राज्यों में चार शादियां मान्य हैं. तो, अगर तीन शादियां किया हुआ मुसलमान अगर उत्तराखंड जाता है, तो क्या होगा? अभी की हालत में उत्तराखंड कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन अगर यूसीसी पूरे देश में लागू होगा तो फिर हालात कुछ और होंगे. इसका एक और पहलू है. गोआ में जैसे यूसीसी पहले से ही लागू है. तो, अगर किसी अन्य राज्य का निवासी वहां शादी करना चाहता है, या कुछ भी तो वहीं के कानून के हिसाब से करेगा. अगर वह किसी और राज्य का है, लेकिन वहां शादी करना चाहता है, तो भी उसे गोआ का ही कानून मानना पड़ेगा. ऐसे उदाहरण बहुत हैं. थोड़ी स्थिति स्पष्ट तब होगी, जब यह कानून बनेगा. देखना होगा कि यह राष्ट्रीय स्तर पर फॉलो हो पाता है या नहीं. 

प्रश्न- एक आखिरी सवाल, उत्तराखंड का मूल निवासी अगर दूसरे राज्य गया, तो उस पर कौन से कानून लागू होंगे?

उत्तर-कोई भी उत्तराखंड का मूल निवासी, चाहे लड़का हो या लड़की अगर वह दूसरे राज्य गया है, तो उस पर वहीं के कानून लागू होंगे. जैसे, आजकल डेस्टिनेशन वेडिंग का कॉन्सेप्ट चला है और लोग बाहर भी रहते हैं. मान लीजिए कि उत्तराखंड का कोई लड़का या लड़की बेंगलुरू में जॉब करते हैं और उन्होंने वहीं शादी कर ली, वे बेंगलुरू में ही रहने लगे. आजकल शादी को रजिस्टर करवाना होता है, तो वे जैसे ही अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करवाने जाएंगे, तो वहां कर्नाटक का नियम लागू होगा. तो, शादी की जो वैधानिकता होगी, वह भी बेंगलुरू यानी कर्नाटक का ही होगा. तो, आधार कार्ड हो या पैन कार्ड या वोटर कार्ड, तो आप उसे भी बदल सकते हैं. तो, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है. 

(यह बातचीत का संक्षिप्त संस्करण है.)

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