बीफ, आक्रोश और मॉब लिंचिंग!... बोलेरो में कंकाल, मांग रहा इंसाफ
मॉब लिंचिंग एक आइसोलेटेड केस है, लेकिन ये जारी है. कहीं न कहीं इसके पीछे कि वजह मॉब लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ कड़े कदमों का न उठाया जाना है. बल्कि ये देखा गया है कि अगर अपराधी जेल से बाहर आए हैं तो नेतागण पब्लिक मंच से उनको हार पहना रहे हैं, उनका स्वागत कर रहे हैं. इस तरह की घटना चिंतनीय है. अगर इस तरह की घटना होती रही और सरकार ने कुछ कदम नहीं उठाया तो ये घटनाएं देश को अंदर से कमजोर ही करेंगे. क्योंकि अगर समाज टूटता है तो समाज से ही तो देश का निर्माण होता है तो इस तरह के लोग समाज विरोधी तत्व हैं और समाज के दुश्मन भी है.
चाहे ये गुरुग्राम हरियाणा की घटना हो या फिर कानपुर देहात का, जहां पर एक दीक्षित परिवार में मां-बेटी पर बुलडोजर चल गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लोग बुलडोजर बाबा कहते हैं. तो ये बुलडोजर बाबा का संबोधन योगी जी के कद को कम करता है, जब दीक्षित परिवार जैसी घटना घटती है. समाज में इस तरह की घटनाएं चाहे वो मॉब लिंचिंग के नाम पर हो चाहे वो बुलडोजर चलाने के नाम पर हो, चाहे लिव-इन रिलेशन के नाम पर हो. तो मुझे राहत इंदौरी का एक शेर याद आता है जो काफी मशहूर हुआ:
लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में,
यहां पर सिर्फ मेरा मकान थोड़ी न है...
तो ये जो समाज में हिंसा का मामला बढ़ा है ये अलग-अलग रूप में आपके सामने आएगी. सिर्फ ममाला ये नहीं है कि दो मुस्लिम लड़के को कथित तौर पर मार दिया गया है और ये तो अदालत फैसला करेगी की दोषी कौन है? कथित तौर पर उनके परिवार वाले कह रहे हैं कि काऊ लिंचिंग का मामला है. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उन लड़कों को जिंदा जलाकर मारा है. मामला सिर्फ ये नहीं है कि दो मुसलमान लड़कों को मार दिया गया है. संसद में राजद के नेता मनोज झा ने ये मामला उठाया है कि मोदी जी के शासनकाल में अल्पसंख्यकों के अंदर असुरक्षा की भावना पैदा हुई है.
मैं आपको अपना उदाहरण देता हूं. जब मैं बिहार से दिल्ली आता था तो मैं डिनर के लिए चिकेन भी रख लेता था ट्रेन में खाने के लिए. लेकिन अभी हमारी मिसेज ही ने नहीं रखी, वे वेजिटेरियन हैं. मैंने कहा कि ट्रेन के मेन्यू में भी चिकन होता है, दिल्ली व बिहार के बीच चलने वाली ट्रेनों में तो वो बोलीं कि नहीं-नहीं रहने दीजिए हम सब्जी बनाकर ले चलेंगे. तो मुझे यह एहसास हुआ कि वियर्ड लगा कि क्योंकि इस तरह से तो कभी सोचा भी नहीं की नहीं ले जाना चाहिए कि कोई देखेगा चिकेन को तो सीधे बीफ ही न बता दे और हंगामा खड़ा कर दे.
सरकार चाहिए से नहीं चलता है...सरकार का काम है करना. और अगर सरकार चाहती है कि देश में धार्मिक या जातीय आधार पर बंटवारा नहीं हो तो उन्हें सख्त कदम उठाना ही पड़ेगा. और बजरंग दल के जो कार्यकर्ता हैं या संत परिवार से जो जुड़े हुए लोग हैं या धार्मिक उन्मादी लोग हैं जो सड़कों पर उतर आते है, किसी की दाढ़ी या टोपी देख करके, तो उनको भी देखना होगा कि आप कब तक किसी को बीफ खाने के नाम पर इस तरह से मारेंगे.
अगर ईमानदारी से देखिये, गोवा सहित नॉर्थ ईस्ट के राज्य जैसे अरुणाचल प्रदेश में बीफ खाना अलाउड है, तो कहीं पर मुस्लिम आबादी अधिक नहीं है खाने वाली. केरल में 21 हिंदू ट्राइबल ऐसे हैं जो बीफ खाते हैं. ये तो कोई असत्य बात नहीं है कि साउथ के कई राज्यों में हिंदू आबादी जिन्हें संघ के लोग वनवासी कहते हैं वो भी बीफ खाते हैं. तो वहां इस तरह का आंदोलन खड़ा नहीं होता है क्योंकि वहां मुस्लिम नहीं हैं. मुस्लिम अगर होते तो कहीं न कहीं वोट की जो राजनीति है वो फायदा पहुंचाने वाली होती है. क्योंकि वो मुसलमान से जुड़ा हुआ मामला होता है और उसको फिर मीडिया भी हाईलाइट कर देती है. तो ये चीज सरकार को तय करना होगा न कि गोवा जैसे राज्य जहां आपकी हुकूमत है वहां चूंकि मुस्लिम आबादी कम है. वहां पर क्रिश्चन आबादी या फिर शेड्यूल कास्ट जो हिंदू आबादी है अगर वो बीफ खाते हैं तो आपने उसको इजाजत दे रखा है और वहीं, दूसरी जगहों पर आपकी विचारधारा से जुड़े हुए लोग मॉब लिंचिंग कर दे रहें हैं.
संत समाज या जो पीर होते हैं इनका भी समाज में बड़ा असर होता है. ये लोग भी समाज को जोड़ने-तोड़ने और बनाने का काम करते हैं और कई बार मैनें देखा है हिंदू समाज के संतों को कि मांस को लेकर इतना उनकी विचारधारा गलत है, मैं तो गलत ही कहूंगा न क्योंकि मैं तो खाता हूं. वे खाने वालों को राक्षस की श्रेणी में खड़ा कर देते हैं. वे मांस खाने वालों को हीन भावना से देखते हैं क्या जो लोग खाते हैं वे अधार्मिक लोग हैं, आप बिहार में देखिए वहां 90 प्रतिशत लोग मांस खाते हैं तो क्या पूरे बिहार के लोग अधार्मिक हो गए. पूर्वी चंपारण का जो मोतिहारी है वहां एक बड़ा ही मशहूर मांस आइटम होता है जिसे तास कहा जाता है. वो चंपारण से लेकर काठमांडू तक दुकानों में बिकता है चिकन या मटन का बना होता है. ये जो ताश की दुकानें हैं वो पूरा का पूरा हिंदुओं का है. और वहां पर सभी खाते हैं चाहे हिंदू हो या मुसलमान.
एक मामला ये भी है कि यहां पर हलाल और झटका का मुद्दा नहीं है. अपनी तरफ तो मुसलमान भी वहां विधिवत खाते हैं. मैं खुद वहां जाकर खाता रहा हूं चाहे जो पसंद आ जाए. बाहरी राज्यों के जो लोग आते हैं उन्हें भी खिलाता हूं वो भी खाकर उसके टेस्ट के दिवाने हो जाते हैं. एक बार मैं राजधानी से पटना आ रहा था तो एक नौजवान ने कहा कि मैं पटना में एक रेस्टोरेंट खोल रहा हूं. तो मैंने पूछा कैसा रेस्टोरेंट खोलेंगे तो उसने कहा कि नॉनवेज का खोलूंगा. मैंने कहा कि वेज क्यों नहीं? तो उसने कहा कि बंद हो जाएगा बिहार में कौन वेज खाएगा. फूड हैबिट देखिए न आप. हमें इस चीज को समझना होगा कि खाने की जो आदते हैं वो फूट हैबिट हैं, वो भौगोलिक वातावरण व लैंडस्केप पर डिपेंड करता है.
कई मुल्क ऐसे हैं जहां खेती नहीं होती है जैसे साइबेरिया है वहां के लोग मांस पर आश्रित रहते हैं. बिहार का पूरा मिथिलांचल को देखिये वहां भी मांस खूब लोग खाते हैं तो इसे क्रिमीनलाइज नहीं करना चाहिए. जहां तक गाय की बात है तो ये धार्मिक मुद्दा है. अगर ये धार्मिक मुद्दा नहीं होता तो मुगलो ने क्यों इसको बैन कर दिया था. इसलिए कि हिंदुओं की एक बड़ी आबादी इसे पूज्य मानती है. बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को एक पत्र लिखा था कि जिसमें ये कहा था कि अगर तुम्हें हिंदुस्तान में हुकूमत करना है तो गाय के कत्ल को जो निषेध है उसे लागू रखनी होगी. ये तो जब मेरठ कंटेनमेंट में अंग्रेज आए तो वो अपने सैनिकों के लिए गाय का स्लॉटर हाउस कायम किया और उसमें मुसलमान को कसाई रखा. उसी के बाद 1857 सें सूअर और गाय की चर्बी का जो कारतूस बना उसको लेकर विद्रोह भड़क गया था.
मुस्लिम कम्यूनिटी के जो लोग हैं उन्हें भी समझना हो कि जिन राज्यों में काउ स्काउटिंग बैन है वहां अपनी जुबान बंद रखिये. गाय खाए बिना आप मर तो नहीं जाएंगे. मुस्लिम समाज में दिक्कत ये है कि यहां अशिक्षा बहुत है और जहां अशिक्षा होगा वहां गरीबी भी होती है. जब गरीबी रहेगी तो लोग चाहता है कि हम सस्ते से सस्ते सामान खरीदें चाहे वो खाने-पीने व घर का सामान हो.
इसी तरह से उनको बीफ मटन चिकन के मुकाबले सस्ता लगता है तो वो उसको खरीद लेते हैं. तो ये बीफ का जो मामला है ये बहुत से संवेदनशील है. इस पर सरकार को देखना होगा. एक मुद्दा ये भी है कि सड़क पर जो पशुधन को छोड़ दिया जाता है खुला तो ये लोग उसको उठा लेते हैं और फिर उसके बाद बजरंग दल जैसे संगठन के लोग उन्हें पकड़ कर मार देते हैं. तो समाज में इस तरह से इनटोलरेंस बढ़ रहा जो एक गंभीर बात है. इस पर सरकार को कड़ा कानून या लोगों को संदेश देने की जरूरत है..एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि ऊपर वाले ने इंसान को सुप्रीम जीव बनाया है किसी और जीव की तुलना में तो ये कहीं से भी जायज नहीं है कि किसी को इसके लिए मार दिया जाए....
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)