नई दिल्लीः पीएम रहते हुए नरेन्द्र मोदी का ये पहला चुनाव था. तो तैयारी भी उन्होंने उसी हिसाब से की. चुनाव की तारीखों के एलान से पहले ही बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक हो चुका था. पीएम मोदी ने देश के अलग अलग इलाक़ों के लिए कुछ ख़ास चुनावी एजेंडे तय किए.. कहीं उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा पर दांव आज़माया तो कहीं राजीव गांधी के बहाने कांग्रेस को घेरा. यूपी आते आते मोदी को मायावती और अखिलेश का गठबंधन महामिलावटी लगने लगा. बंगाल जाकर वे ममता बनर्जी से थप्पड़ खाने को भी तैयार हो गए.


दस मार्च को आम चुनाव की तारीख़ों का एलान हो गया. उससे पहले पुलवामा में आतंकी हमला हो चुका था. जवाबी कार्रवाई में बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की घटना हो चुकी थी. पीएम नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के लिये ये मौका सोने पे सुहागा जैसा था. वैसे पार्टी की तैयारी तो किसानों को छह हज़ार रूपये और ग़रीब सवर्णों को दस फ़ीसदी आरक्षण देने के बहाने चुनावी अखाड़े में उतरने की थी. लेकिन माहौल देख कर राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे को धार देने का फ़ैसला हुआ.


पीएम मोदी ने जब खुद को कहा चौकीदार


राफ़ेल के बहाने राहुल गांधी देश भर में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ज़मीन तैयार कर रहे थे. गांव गलियों से लेकर शहरों में 'चौकीदार चोर' है के नारे लगने लगे थे. पीएम नरेन्द्र मोदी ने ही कभी ख़ुद को देश का चौकीदार कहा था. लेकिन राहुल के हमलों से वही चौकीदार शब्द मोदी के गले की फांस बनने लगा था.


अचानक एक दिन मोदी ने अपनी पहचान बदल ली. ट्विटर की दुनिया में वे चौकीदार नरेन्द्र मोदी बन गए. फिर तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता चौकीदार हो गया. ऑफेंस इज द बेस्ट डिफ़ेंस. ये फ़ार्मूला मोदी के काम आया. उन्होंने राहुल गांधी के राफ़ेल की हवा निकाल दी.


पीएम नरेन्द्र मोदी की पहली रैली यूपी के मेरठ में हुई. ये बात 28 मार्च की है. पिछले चुनाव में मोदी लहर में यूपी पर बीजेपी का क़ब्ज़ा था. लेकिन इस बार हालात बदल गए हैं. पच्चीस सालों बाद बीएसपी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन हुआ. अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी भी इनके साथ हो गई थी. पिछली बार तो यूपी में बीजेपी को 71 सीटें मिल गई थीं. लेकिन बदले हुए राजनैतिक हालात में गठबंधन को पार पाना मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.


जब पीएम ने कहा था सराब से रहें दूर


रैली में उन्होंने सराब के नशे से लोगों को दूर रहने को कहा. उनके सराब का मतलब समाजवादी पार्टी, आरएलडी और बीएसपी था. मेरठ की रैली में ही मोदी ने दमदार पीएम बनाम दाग़दार विपक्ष का मुद्दा छेड़ा. अखिलेश यादव और मायावती को भ्रष्टाचारी बताते हुए मोदी ने बीजेपी के लिए वोट मांगे. चुनावी अखाड़े में वे अपनी एक छवि गढ़ रहे थे. ईमानदार, दमदार और कड़े फ़ैसले लेने वाले नेता की. माहौल बनाया गया कि मोदी से बेहतर कोई प्रधान मंत्री हो ही नहीं सकता है.


यूपी से बाहर अपनाई अलग रणनीति


यूपी के बाहर के राज्यों के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी की रणनीति अलग थी. एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जाते ही उनके मुद्दे और नारे सब बदल गए. तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव हारने के बाद से बीजेपी यहाँ पुरानी ग़लतियॉं दुहराने के मूड में नहीं थी. इसीलिये तो मोदी चुनावी मंचों से गाँव, खेत, खलिहान और किसानों की बातें करते रहे.


उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकारों पर क़र्ज़माफ़ी को लेकर वादाखिलाफी का आरोप लगाया. उनकी कोशिश रही ख़ुद को किसानों और नौजवानों का असली हमदर्द साबित करने की. पाकिस्तान से सटे इलाक़ों में मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा की बात छेड़ी.


महाराष्ट्र में बीजेपी फिर शिव सेना के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है. मुक़ाबला कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन से है. यहां पीएम मोदी फिर से देश की सुरक्षा के एजेंडे पर लौट आए. महाराष्ट्र के मंच से ही उन्होंने शहीदों के नाम पर नौजवानों से वोट की अपील की. कांग्रेस ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की. जिसे आयोग ने ख़ारिज कर दिया.


पीएम मोदी ने पुरानी घटनाओं को खींचा चुनावी अखाड़े में


पंजाब, दिल्ली हरियाणा का चुनाव आते आते पीएम मोदी ने अपनी चुनावी रणनीति बदल दी. सालों पुरानी घटनाओं को वे चुनावी अखाड़े में ले आए. मामला सिख वोट का था. इसीलिए मोदी ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों की याद दिलाने लगे. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने उनकी चौतरफ़ा निंदा की. लेकिन मोदी तो मोदी हैं. भला वे कहां इन बातों की परवाह करने वाले.


आपको याद होगा गुजरात के विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने इसी तरह के कई सनसनीख़ेज़ आरोप लगाए थे.मोदी यहीं नहीं रूके. वैसे भी कहते हैं कि लक्ष्मण रेखा जैसी कोई शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं है. मोदी ने आईएनएस विराट जहाज़ पर राजीव गांधी के छुट्टियॉं मनाने को भी चुनावी मुद्दा बना दिया.


पश्चिमी यूपी से मिल रहे फ़ीडबैक बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं थे. ग्राउंड पर एसपी बीएसपी का गठबंधन काम कर रहा था. पीएम मोदी के लिए ये चिंता की बात थी. यूपी में अब चुनाव अवध की तरफ़ बढ़ रहा था. यहां से मोदी ने चुनावी चाल बदलने का फ़ैसला किया. फूट डालो और राज करो का फ़ार्मूला आज़माने पर सहमति बनी. मोदी मायावती को लेकर मुलायम होने लगे.


मायावती ने पीएम मोदी को बताया था फर्जी पिछड़ा


चुनावी मंचों से वे कहने लगे कि अखिलेश यादव उनके ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं. फ़ैज़ाबाद जाकर भी मोदी ने अयोध्या के राम मंदिर का ज़िक्र तक नहीं किया. वे अखिलेश और मायावती के गठबंधन को लगातार महामिलावटी बताते रहे. वे ये समझाने की कोशिश करते रहे कि ये बेमेल दोस्ती है जो सिर्फ़ मोदी को रोकने के लिए बनी है. एसपी बीएसपी के सामाजिक समीकरण को तोड़ने के लिए मोदी बैकवर्ड जाति के बने. मायावती ने उन्हें फ़र्ज़ी पिछड़ा बताया तो मोदी ग़रीब बन गए.


कांग्रेस की काट भी पीएम नरेन्द्र मोदी लगातार ढूंढते रहे. उन्हें मौक़ा ख़ुद प्रियंका गांधी ने ही दे दिया. कांग्रेस के उम्मीदवार बीजेपी के वोट काट रहे हैं. प्रियंका के इस बयान से मोदी को संजीवनी मिल गया. फिर तो वे ये कहने लगे कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस सब मिले हुए हैं.


वाराणसी में रोड शो के बहाने बीजेपी ने दिखाई ताकत


अब चुनाव धीरे धीरे यूपी के पूर्वांचल की तरफ़ बढ़ रहा था. लोकसभा की 27 सीटों पर दो चरणों में चुनाव होने थे. खुद पीएम नरेन्द्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड रहे हैं. नामांकन से पहले उन्होंने वाराणसी में रोड शो किया. तय हुआ इस रोड शो के बहाने बीजेपी अपनी ताक़त दिखाये. पार्टी ने पूरी ताक़त झोंक दी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने मिल कर तैयारी की.


तैयारी ऐसी कि रोड शो की चर्चा देश भर में हो और इसी बहाने यूपी के पूर्वांचल में गठबंधन से आगे निकल जायें. भव्य रोड शो के बाद पीएम मोदी ने वाराणसी में चुनाव प्रचार न करने का एलान किया. रोड शो में उमड़ी भीड का बीजेपी ने डंका बजा कर प्रचार किया. कुछ इस तरह की जैसे यूपी में मोदी की लहर हो. इस रोड शो के वीडियो से बीजेपी ने अपना प्रचार फ़िल्म भी बनाया. खुद मोदी तो फिर वाराणसी नहीं आए. लेकिन उनके सेनापति अमित शाह लगातार वाराणसी में रूक कर मोदी को रिकार्ड मतों से जीताने के अभियान में जुटे रहे. बीजेपी के देश भर के हज़ारों कार्यकर्ताओं को इस काम में लगाया गया.


पीएम ने शुरू की ममता के खिलाफ आर-पार की लड़ाई


बंगाल के लिए तो बीजेपी ने करबो, लड़बो और जीतबो की रणनीति बनाई. मोर्चा ख़ुद पीएम नरेन्द्र मोदी ने संभाला. ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ आर पार की लड़ाई का एलान हुआ. पार्टी को इस बात का एहसास हो गया था कि कांग्रेस और लेफ़्ट पार्टियों के समर्थक बीजेपी से आस लगाए बैठे हैं. इससे बेहतर मौक़ा अमित शाह के लिए नहीं हो सकता था. इसीलिए पीएम मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ ने बंगाल में चुनावी रैलियां की.


कोशिश यहां ध्रुवीकरण की रही. ममता बनर्जी पर दुर्गा पूजा रोके जाने के आरोप लगे. ममता राज में इमामों को तनख़्वाह देने का मामला भी उठा. मोदी ने कहा हम तो बंगाल का विकास चाहते हैं लेकिन ममता स्पीड ब्रेकर बन गई हैं. ममता के थप्पड़ की गूंज ने चुनावी माहौल को और गरमाया.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)