BLOG: इस बार चुनावी मुद्दा सिर्फ मोदी हैं !
कम से कम यूपी में तो चुनाव का गणित अब बस सामाजिक समीकरण के भरोसे रह गया है. जाति-बिरादरी के हिसाब से ही जीत हार का फ़ैसला होता दिख रहा है.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में पहले दौर का मतदान हो गया है. राज्य की 80 में से 8 सीटों पर मतदान हुआ. सब के मन में बस एक ही सवाल है. जिन जगहों पर चुनाव हुए हैं, वहां कौन जीतेगा ? बीजेपी, गठबंधन या फिर कांग्रेस. जब से वोटिंग हुई है, लगातार फोन आ रहे हैं. नेताओं से लेकर अफ़सरों तक के. मज़े की बात ये हैं कि चुनाव लड रहे कुछ नेताओं ने भी फोन घुमा दिए. किसकी जीत होगी और कौन हारेगा ? ये तो अब वोटों की गिनती के बाद 23 मई को ही पता चलेगा. वैसे दावे हर पार्टी अपनी-अपनी जीत के कर रही है. अखिलेश यादव ने तो कह दिया कि हम आठों सीटें जीत लेंगे. अब बीजेपी के यूपी अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडे भला कहां पीछे रहने वाले. उनका दावा भी अखिलेश की तरह ही सभी सीटें जीत लेने का है.
इस बार यूपी में अधिकतर सीटों पर दो तरफ़ा मुक़ाबला है. मामला गठबंधन बनाम बीजेपी का है. गठबंधन में बीएसपी, समाजवादी पार्टी और आरएलडी शामिल हैं. कुछ सीटों पर कांग्रेस भी ज़ोर आज़माइश कर रही है. पहले दौर में ग़ाज़ियाबाद, गौतमबुद्ध नगर ( नोएडा), बागपत, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, बिजनौर, कैराना और सहारनपुर में चुनाव हुए. इस बार न कोई लहर है, न ही किसी तरह का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण. इस बार के चुनाव में सिर्फ़ एक ही मुद्दा है. पीएम नरेन्द्र मोदी. देश का एक तबक़ा फिर से उनकी सरकार चाहता है. तो दूसरा गुट उन्हें सत्ता से हटाना चाहता है. इसके अलावा कोई चुनावी चर्चा नहीं है. खेत-खलिहान और घर-आंगन से लेकर चौक-चौराहे पर यही बातें हो रही हैं.
कम से कम यूपी में तो चुनाव का गणित अब बस सामाजिक समीकरण के भरोसे रह गया है. जाति-बिरादरी के हिसाब से ही जीत हार का फ़ैसला होता दिख रहा है. बीजेपी का सामाजिक फ़ार्मूला कमोबेश वही है, जो पिछले चुनावों में था. चाहे 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2017 का विधानसभा चुनाव. बस बीजेपी से मुक़ाबला कर रहे गठबंधन का जातीय फ़ार्मूला बदल गया है. ऐसा नेचुरल भी है. तीन पार्टियों के एक साथ आ जाने भर से ही गठबंधन के सामाजिक समीकरण का विस्तार हो गया है. सबसे बडा बदलाव तो मुस्लिम वोटरों के हिसाब किताब में आया है. समाजवादी पार्टी और बीएसपी के मिल जाने से इस वोट बैंक के बिखराव की गुंजाइश बहुत कम होती दिख रही है. पिछले दो चुनाव में मुस्लिम वोट के बँट जाने से बीजेपी को ज़बरदस्त फ़ायदा हुआ था.
सहारनपुर में चुनाव के दौरान जो हुआ, उस के बाद तस्वीर साफ हो चुकी है. यहां से कांग्रेस के टिकट पर इमरान मसूद और बीएसपी से फ़ज़लुर्र रहमान चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद राघव लखनपाल पर ही दांव आज़माया है. बीजेपी की कोशिश ये रही कि कैसे भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाए. सहारनपुर से संदेश निकला कि मुस्लिम समुदाय उसी उम्मीदवार का साथ देगा जो बीजेपी के सामने चुनाव जीत सकता है. यानी अगर दो मुस्लिम उम्मीदवार हैं तो मुसलमानों का वोट उसी को मिलेगा जो बीजेपी को हराने की ताक़त रखता हो. इस बार के चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने दिल नही दिमाग से वोटिंग का मन बनाया है.
तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद मायावती ही यूपी में दलितों की इकलौती नेता है. दलित समाज में जाटव बिरादरी के वोटर तो आंख मूंद कर अपने बहिन जी पर भरोसा करते हैं. उनके एक इशारे पर वे कहीं भी वोट करने को तैयार रहते हैं. मायावती की इसी ख़ासियत ने उन्हें ताक़तवर नेता बना रखा है. वे जब चाहें, अपना ये वोट बैंक किसी के लिए ट्रांसफ़र करा सकती हैं. मोदी के उदय के बाद से पिछले कई चुनावों में पासी, वाल्मीकि और सोनकर जैसी दलित जातियों का एक बड़ा तबक़ा बीजेपी में चला गया है.
पहले दौर के मतदान के बाद ये तसवीर साफ हो गयी है कि किस जाति के लोग किसके पीछे गोलबंद हैं. कमोबेश पिछले दो चुनावों में यही ट्रेंड ही इसबार भी नज़र आ कहा है. पहले चरण में जिन आठ सीटों पर मतदान हुआ वहां यादव वोटरों की संख्या कम है. बार बार ये सवाल पूछे जाते हैं. लोग आपस में चर्चा करते हैं कि क्या एसपी का वोट बीएसपी को ट्रांसफ़र हो पाएगा ? अब से 25 साल पहले मुलायम सिंह यादव और काशीराम के ज़माने में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ था. तब मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम के नारे लगते थे. राम मंदिर आंदोलन के दौर में भी एसपी बीएसपी गठबंधन ने बीजेपी को जीतने से रोक दिया था. क्या इस बार भी ऐसा हो पाएगा ? क्या यादव बिरादरी के लोग बीएसपी के जाटव या फिर मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए वोट करेंगे ? पहले दौर के मतदान के बाद से ऐसा लग रहा है कि कुछ वोटों का बंटवारा संभव हो सकता है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)