जब-जब आपको लगेगा कि आप बिहार की राजनीति को समझ गए, बिहार आपको झटका देता है
बिहार की राजनीति पर केंद्रित एक वेब सीरीज आई थी 'महारानी'. जिसमें एक डायलॉग काफी प्रसिद्ध हुआ था जो आज बिहार के राजनीतिक माहौल में प्रासंगिक भी लग रहा है. डायलॉग यह था कि "जब-जब आपको लगेगा कि आप बिहार की राजनीति को समझ गए हैं, बिहार आपको झटका देता है."
अब बिहार में कांग्रेस का हाथ थामें जो विधायक कल तक हाथ के साथ होने की बात कर रहे थे. वहीं विधायक अब कमल का हाथ थाम कर बीजेपी की नय्या पर सवार हो गए हैं. तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी राजद में भी फ्लोर टेस्ट के दौरान हुई फूट के बावजूद और एक विधायक और टूट कर भाजपा में शामिल हो गए. बिहार में जिस खेला होने की बात तेजस्वी कर रहे थे उनकी पार्टी में ही खेला पर खेला हो रहा है और तेजस्वी खिलाड़ी होने के बावजूद खेल नहीं समझ पा रहे. आखिरकार क्या है भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस -राजद विधायक की इन साइड स्टोरी? किन परिस्थितियों में इन्होंने भाजपा में शामिल होकर अपनी विधायक की सदस्यता तक को खतरे में डाल दिया है?
कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा के बीच पार्टी में फूट
कांग्रेस के चेनारी से विधायक मुरारी प्रसाद गौतम जो राहुल गांधी के कांग्रेस जोड़ों यात्रा में मंच पर राहुल और तेजस्वी के साथ काफी सक्रिय रूप में दिख रहे थे. सिर्फ मुरारी प्रसाद गौतम के सोशल मीडिया को ही खंगाल दिया जाए तो यह दिख जाएगा कि वे इस यात्रा के लिए कितने उत्साहित दिखाई पड़ रहे है. तेजस्वी के साथ उनकी चहलक़दमी करती तस्वीरें यह बयां करती है कि उन दोनों के संबंध कितने प्रगाढ़ थे. तो क्या कांग्रेस नेतृत्व यह जान हीं नहीं पाया कि उनके विधायक नाराज चल रहे हैं.? मुरारी प्रसाद गौतम की यह इच्छा भी है कि वे लोकसभा का चुनाव सासाराम से लड़े.
भाजपा में आने का यह भी एक कारण है. हो सकता कि कांग्रेस नेतृत्व के पास उन्होंने अपनी यह बात रखी हो और उनके इस प्रस्ताव को दरकिनार कर दिया गया हो. क्योंकि सासाराम से कांग्रेस की उम्मीदवार मीरा कुमार रहीं है और इस बार भी से वहीं से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी. कांग्रेस द्वारा अपने विधायक और कार्यकताओं के इन्हीं नज़रअंदाजी ने पार्टी में फूट डाली है. यह माना जा रहा कि यह तो बस बानगी भर है और कई विधायक पाला पलट सकते हैं. कांग्रेस के बड़े नेताओं को यह मंथन करना होगा कि आखिर चूक कहां हो रही? वर्तमान में तो कम से कम इस बात को भांपने तक का किसी नेतृत्व में यह करिश्माई व्यक्तित्व नजर नहीं आ रहा है.
पालीगंज से विधायक सिद्धार्थ सौरव की कहानी
बिक्रम विधानसभा से कांग्रेस के विधायक रहे सिद्धार्थ सौरव कांग्रेस नेतृत्व से काफी दिनों से नाराज चल रहे थे. कांग्रेस के विधायकों को जब विश्वासमत हासिल करने के पहले हैदराबाद शिफ्ट किया गया था तो इसमें सिद्धार्थ नहीं शामिल थे. वे भूमिहार जाति से आते हैं. अगर उनके विधानसभा में जातिगत समीकरण की बात की जाए तो बिक्रम विधानसभा में भूमिहार समाज के सबसे अधिक लगभग 1 लाख मतदाता हैं. यहां हर चुनाव में यह माना जाता है कि जीत उसी को मिलती है जिसे यहां भूमिहार चाहते हैं. हालांकि इस क्षेत्र में यादव जाति के मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है लेकिन भूमिहार के अपेक्षा काफी कम है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि बिक्रम की जनता इस बार सिद्धार्थ के पाला बदलने से और सहज रूप से उसे वोटों में तब्दील करेगी या नहीं. क्योंकि अगड़ी जातियों में आज भी भाजपा ही उसकी पहली पसंद नजर आती है. ऐसे में सिद्धार्थ सौरव ने जातिगत समीकरण को साधने की पुरजोर कोशिश भी की है. अब देखने वाली बात यह होगी कि यह उनकी जीत में यह कितना निर्णायक साबित होता है. बिक्रम विधानसभा में भाजपा का कोई मज़बूत उम्मीदवार भी नहीं था. पिछले बार 2020 के चुनाव में बीजेपी ने अतुल कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था. ऐसे में सिद्धार्थ के सहारे भाजपा विक्रम विधानसभा में भी अपना किला मजबूत करेगी जिसका फायदा उसे लोकसभा के चुनाव में होगा.
तेजस्वी की पार्टी में सेंधमारी की मुख्य वजह
तेजस्वी यादव ने राजद की कमान जब से अपने हाथ में ली है. पार्टी के स्वरूप में कई बदलाव किए गए हैं. यह बात भी सही है कि बिहार की जनता ने तेजस्वी को नेता के रूप में स्वीकार भी कर लिया है. अब तो तेजस्वी ने भी यह खुले मंच से कहा है कि राजद माय-बाप दोनों की पार्टी है. उनकी छवि भी पहले की अपेक्षा बहुत निखरी भी है. लेकिन पार्टी के अंदरखाने में हो रही गुटबाजी की तेजस्वी को भी खबर नहीं लग रही है कि उनकी पार्टी में असल में कौन कहां से सेंधमारी कर रहा है. उनके बड़े भाई तेजप्रताप ही कई मौकों पर अपने आप को नजरअंदाज महसूस करते हैं.
सरकार से बाहर होते ही तेजस्वी ने बिहार में जिस खेला होने की बात की और अपने खिलाड़ियों को पिच पर सेट भी कर दिया. उसी खेला में तेजस्वी क्लीन बोल्ड हो गए. अब उनकी एक और मोहनिया विधायक संगीता देवी ने भी राजद को छोड़ भाजपा का हाथ थाम लिया है और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी. संगीता देवी ने राजद पर पिछड़ी जातियों की उपेक्षा का आरोप भी लगाया. यह आरोप साफ दर्शाता है कि वे पार्टी में हो रही अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहीं थीं. भाजपा से उनकी यह अपेक्षा है कि उन्हें भी मंत्रिमंडल में आने वाले समय में शामिल कराया जाए. भाजपा में पिछड़ी जातियों से महिला विधायकों की संख्या भी कम है ऐसे में वह एक सामाजिक समरसता का संदेश भी देने में सफल होगी. वहीं राजद को पिछले पंद्रह दिनों में दूसरा बड़ा झटका लगा है. कई लोग ऐसा मानते हैं कि तेजस्वी अपने फैसले कुछ ही लोगों के बीच ले रहे हैं. जिस कारण से राजद के कई वरिष्ठ नेता तक तेजस्वी से नाराज चल रहे हैं.
आखिर क्या कहता है दल-बदल कानून
दल-बदल कानून में किसी भी दल के सांसद या विधायक अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ते हैं या पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हैं. तो उस स्थिति में उनकी सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है और उनपर दल बदल निरोधक कानून लागू होता है. दल-बदल के आधार पर अयोग्यता से संबंधित मामलों पर निर्णय ऐसे सदन के सभापति या अध्यक्ष को कारवाई हेतु संप्रेषित किया जाता है. यह सभी प्रक्रिया न्यायिक समीक्षा के अधीन होता है. अब राजद और कांग्रेस के विधायक क्या इस कानून से अपनी सदस्यता गंवा बैठेंगे? तो देखने वाली बात यह भी है कि दोनों में किसी पार्टी ने अपने विधायकों को व्हिप जारी नहीं किया था. ऐसे में अगर पार्टी द्वारा उन्हें निष्कासित कर उनकी सदस्यता को खत्म करने का फैसला लेने के बाद भी तत्काल प्रभाव से उसका कोई असर नहीं होगा. उसे पदेन अध्यक्ष के पास भेजना होता है और उसका निर्णय वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव को ही लेना है. जो भाजपा के ही नेता है. ऐसे में यह अंदेशा लगाया जा सकता है कि अभी तुरंत इस मामले में विधायकों की सदस्यता खत्म नहीं होगी. विधानसभा अध्यक्ष इस मामले को लंबे समय तक विचाराधीन रख सकते हैं. ऐसे कई मामले अन्य राज्यों की विधानसभा में लंबित पड़े हुए हैं.
लोकसभा चुनाव तक होंगे कई उलटफेर
लोकसभा चुनाव का बिगुल अब बजने ही वाला है. मार्च के पहले सप्ताह में यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि चुनाव आयोग द्वारा नोटिफिकेशन जारी कर दिए जाएंगे. आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी. कई नेताओं को अपने टिकट कटने का डर सता रहा है तो वहीं वे दूसरी पार्टियों से टिकट फाइनल करने में अंदरखाने से जुड़े हुए हैं. ऐसे में यह तय है माना जा रहा है कि बिहार में अभी और कई पार्टियों में फूट देखने को मिल सकती है. बिहार सरकार में नए मंत्रिमंडल का गठन इसलिए भी नहीं किया जा रहा ताकि नए मंत्रिमंडल बनते ही कई नाराज नेता इधर-उधर हो सकते हैं.
भाजपा बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी
कांग्रेस के दो और राजद के एक विधायक भाजपा में शामिल होने से भाजपा के बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर गई है. आने वाले समय में भी कई और विधायक भी भाजपा का हाथ थाम सकते है. भाजपा ने इसकी बिसात तो काफी पहले ही बिछा दी थी. राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा ने एक अन्य अपने उम्मीदवार को उतारने का फैसला किया था हालांकि आधिकारिक रूप से इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आई थी. लेकिन सियासी गलियारों में यह चर्चा थी. नीतीश के हस्तक्षेप के बाद पार्टी ने अपने फ़ैसले को वापस लिया था. अब आने वाले चुनाव में भी बिहार भाजपा भी पूरी ताकत के साथ चुनावी अभियान में आ जाएगी. वह इस बात को भी प्रचारित करेगी कि अब बिहार विधानसभा में वह सबसे बड़ी पार्टी है. यह भी सही है कि जेडीयू का जनाधार पहले से काफी घटा है और अब चुनावी लड़ाई बस भाजपा और राजद के बीच हीं है. हालांकि अंदरखाने खबर है कि नीतीश यह चाहते है कि विधानसभा को ही भंग करके फिर से चुनाव लोकसभा के साथ ही कराया जाए. लेकिन भाजपा इसके पक्ष में नहीं है.
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