BLOG: प्रज्ञा ठाकुर बीजेपी की तीसरी पीढ़ी के चेहरों की संघी-खोज का हिस्सा है
चर्चा को संघ-बीजेपी ने सही साबित किया और प्रज्ञा ठाकुर को अपना उम्मीदवार बना दिया. पहले उसे बीजेपी की सदस्यता दी गई, फिर उम्मीदवारी थमाई गई. उम्मीदवार बनने के बाद से अब तक महज सप्ताह भर में प्रज्ञा ने अपने बयानों से नकारात्मक ही सही, काफी सुर्खियां बटोरी हैं.
अप्रैल के पहले सप्ताह में जब मध्य प्रदेश के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भोपाल से चुनाव लड़ने का एलान किया तो कयास लगाये जाने लगे कि बीजेपी की तरफ से उनके मुकाबले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बाबूलाल गौर या ऐसा ही कोई प्रमुख नेता मैदान में आ सकता है. कुछ दिनों बाद ये चर्चा सुनने में आई कि दिग्विजय़ के खिलाफ प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उतारा जा सकता है. चर्चा को संघ-बीजेपी ने सही साबित किया और प्रज्ञा ठाकुर को अपना उम्मीदवार बना दिया. पहले उसे बीजेपी की सदस्यता दी गई, फिर उम्मीदवारी थमाई गई. उम्मीदवार बनने के बाद से अब तक महज सप्ताह भर में प्रज्ञा ने अपने बयानों से नकारात्मक ही सही, काफी सुर्खियां बटोरी हैं. संभवतः उसका और उसके सांगठनिक सलाहकारों का यही लक्ष्य भी रहा होगा.
एक ज्ञानवान-सूचनासंपन्न समाज में ये नकारात्मक सुर्खियां सियासत की किसी नयी शख्सियत के लिए मुसीबत बनतीं पर प्रज्ञा के राजनीतिक-निर्माण में लगे‘योजनाकारों’ ने ‘हिन्दुत्व की दूसरी प्रमुख प्रयोगशाला’ माने जाने वाले मध्य प्रदेश में इन ‘सुर्खियों’ के नफा-नुकसान का हिसाब जरूर लगाया होगा! प्रज्ञा सिंह ठाकुर राजनीति में किसी संयोग या दुर्घटना-वश नहीं आई. वह संघ-निर्देशित बीजेपी राजनीति में तीसरी पीढ़ी का एक चेहरा बन रही है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की तीसरी पीढ़ी के ऐसे ही चेहरे आदित्यनाथ हैं. बीजेपी ने सन् 2017 में यूपी में पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीता तो मुख्यमंत्री पद के लिए ठेठ राजनीतिक शख्सियत समझे जाने वाले राजनाथ सिंह से लेकर मनोज सिन्हा तक के नाम आए. पर अटकलों का अंत जल्दी ही हुआ और पता चला कि गोरखपुर के तत्कालीन विवादास्पद सांसद आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा. उनके दर्जनों बयान आज भी लोगों को याद होंगे, जो प्रज्ञा के हालिया बयानों से कुछ कम ज्वलनशील और नकारात्मक नहीं होते थे. पर संविधान के तहत शपथ लेकर देश के सबसे बड़े राज्य के वह मुख्यमंत्री बन गये. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह समय-समय पर बयानों के पटाखे छोड़ते रहते हैं.
अटल-आडवाणी दौर में पार्टी के उग्र-कट्टरपंथी तत्वों के लिए एक शब्द-‘फ्रिंज एलिमेंट्स’ को काफी लोकप्रिय किया! इससे अटल-आडवाणी की उदार छवि गढ़ने में सहूलियत हुई. लेकिन आज ऐसी सहूलियत नहीं है. क्योंकि ये सोच अब पार्टी की मुख्यधारा का हिस्सा है. प्रज्ञा ठाकुर सिर्फ भोपाल चुनाव के लिए बीजेपी में नहीं आई है. उसके जरिये रिक्तता भी भरी जानी है. मंदिर-मस्जिद टकराव अभियान से उभरीं एक समय की फायरब्रांड उमा भारती अब किनारे लग चुकी हैं. कथित उदार चेहरा समझी जाने वाली सुमित्रा महाजन और सुषमा स्वराज सरीखों की पारी अब खत्म हो रही है. ऐसे में एक महिला नेत्री की भी जरूरत थी. आज के दौर में उग्र-तेवर की प्रज्ञा ज्यादा उपयोगी लगी होंगी! प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को भी ऐसी शख्सियतें पसंद हैं. नोटबंदी, जीएसटी, रफाल आदि ने सन् 2014 वाले तमाम नारों और जुमलों कीधज्जियां उड़ा रखी हैं. बीएसएनएल-एमटीएनएल सहित सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियों की बेहाली, निजी क्षेत्र में मायूसी औऱ बेरोजगारी पर उठ रहे सवालों के बीच संघ की विचारधारा वाला राष्ट्रवाद, हिन्दू-मुस्लिम दुराव और कट्टरता-आतंक के राजनीतिक शोऱ में ही कुछ राहत और संभावना नजर आ रही है. ऐसे में प्रज्ञाठाकुर का राजनीतिक अवतरण सोची-समझी योजना का हिस्सा है.
ये तो मानना पड़ेगा कि प्रज्ञा ठाकुर सौभाग्यशाली हैं. भोपाल में वह हारें या जीतें, संसदीय राजनीति में उन्होंने अपने हस्ताक्षऱ कर दिये हैं. यह मौका एकबारगी ही उनके विवादास्पद अतीत को धो-पोंछकर उन्हें ‘माननीय’बना सकता है! पहले प्रयास में वह नहीं भी बन पाईं तो कम से कम भविष्य के लिए एक सुनहरी आस तो बनी रहेगी! वह लगातार गरजती रहेंगी और मीडिया के जरिये उन्हें मुंहमांगा प्रचार मिलता रहेगा! लोगों की स्मृतियों से मालेगांव गायब होता जायेगा! बम विस्फोट में मारे गये छह लोगों के परिजन भी मुकद्दमे की जद्दोजहद से तंग होकर शांत हो जायेंगे. इस चुनाव के बाद सत्ता में बीजेपी की फिर वापसी हुई तो हो सकता है कि प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट देने वाली एनआईए जल्दी से जल्दी ‘न्याय दिलाने’ की पुरजोर कोशिश करेगी और इस तरह ‘हिन्दू राष्ट्र-निर्माण’ के प्रोजेक्ट को एक और योद्धा मिल जायेगा! जयकारों और जयमालों के बीच वह गरजती रहेगी!
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)