एक्सप्लोरर

चुनाव परिणाम 2024

(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

लोटस ब्लूम्स : कड़वे रस में ममता की मिठास समेटे वैश्विक अपील वाली मैथिली फिल्म

सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है, क्योंकि वह हमारे मनोभावों को व्यष्टि व समष्टि रूप में प्रस्तुत करता है. एक ओर मसाला फिल्में मनोरंजन प्रधान होती हैं, वहीं दूसरी ओर यथार्थवादी फिल्में मानव जीवन के कड़वे सच को खुरदुरेपन के साथ पर्दे पर उतारती हैं. कड़वे का भी एक रस होता है. प्रतीक शर्मा की मैथिली फिल्म लोटस ब्लूम्स यथार्थ के कड़वे रस में ममता की मिठास समेटे हुए है. शाब्दिक भाषा की दृष्टि से देखें तो लोटस ब्लूम्स भले ही एक क्षेत्रिय फिल्म लगे, लेकिन कथानक की मौलिकता की कसौटी पर कसने पर यह एक वैश्विक अपील वाली फिल्म के रूप में सामने आती है. कैसे? इसको ऐसे समझिए.

शांताराम, रे, फेलिनी, डि सिका, बेनेगल, माजिदी की फिल्मों में एक समानता है कि इनकी फिल्में सामाजिक-भौगोलिक सीमा से परे जाकर मानवीय संवेदनाओं को रेखांकित करती हैं और एक कथानक के होते हुए भी संदेश की कसौटी पर बहुस्तरीय होती हैं. प्रतीक शर्मा निर्देशित लोटस ब्लूम्स में ये दोनों समानताएं दिखती हैं. इसलिए लोटस ब्लूम्स जिस शिद्दत से बिहार में देखी जाएगी, उतनी ही शिद्दत से इसे मध्य-पूर्व एशिया, अफ्रीका अथवा लैटिन अमेरिका के देशों में वहां के मूल निवासी देखेंगे और इसके मर्म को उतनी ही गर्माहट के साथ महसूस करेंगे जितना कि कोई मैथिली भाषी. प्रतीक शर्मा ऊर्जावान निर्देशक हैं. सात साल पहले आई 'गुटरूं-गुटरगूं' के बाद 'लोटस ब्लूम्स' तक की यात्रा में उन्होंने सिनेमाई शिल्प को साधने में श्रम किया है. लोटस ब्लूम्स की सांकेतिकी, पार्श्वध्वनि, प्रकाश आदि तत्वों में उनकी प्रगति झलकती है. एक निर्देशक के रूप में उनका आगे बढ़ना सुखद है. कोई फिल्म मैथिली में हो अथवा हिंदी, मराठी तमिल, तेलुगू, फ्रांसीसी, इतालवी अथवा रूसी में, इन सब शाब्दिक भाषाओं से परे सिनेमा शिल्प की एक अपनी भाषा होती है जो विभिन्न बिंबों के माध्यम से व्यक्त होती है. तकनीकी रूप से इसे फिल्म सांकेतिकी (film semiotics) कहते हैं. जो फिल्मकार जितनी गहराई से इस सांकेतिकी का इस्तेमाल करता है, उसे उतना ही कुशल फिल्मकार माना जाता है. प्रतीक शर्मा बहुत हद तक इस कार्य में भी सफल हुए हैं. कुछ उदाहरण देखिए.

पहले बिंब का दर्शन कीजिए, बेनू के जाने के बाद सरस्वती बीच सड़क पर खड़ी है. फ्रेम क्षैतिज रूप से दो हिस्सों में आधे में जमीन और ठीक दूसरे आधे हिस्से में आसमान है, यानी उस फ्रेम के बाद से सरस्वती की जिंदगी दो हिस्सों में बंट गई है. एक हिस्सा टूटकर सिंगापुर चला गया है. दूसरा बिंब, सरस्वती के बनाए चित्र के बीच की धारी जो अमरेंद्र उर्फ़ धीरज ऊपर से नीचे तक स्पर्श करता है, यह उसके सरस्वती के प्रति बढ़ते अनुराग का सूचक है. तीसरा बिंब, अमरेंद्र के कमरे में सरस्वती मच्छरदानी लगाकर सोती है. यहां मच्छरदानी उन दोनों के बीच अर्धछीद्रिल पर्दा है, जिसमें निजता के लिए थोड़ी सी ही गुंजाइश बची है. एक रात सोते समय मच्छरदानी की स्ट्रिप लगाते हुए सरस्वती का हाथ उसमें कुछ पल के लिए फंसा रह जाता है और मुट्ठी भर फांक बंद होने से रह जाता है. बाद में हालांकि अमरेंद्र उसे बंद कर देता है, लेकिन फिल्मकार ने संकेत दे दिया है कि अब वह अर्धछीद्रिल पर्दा हटने वाला है. चौथा बिंब, अमरेंद्र से मिले काम में मैथिली चित्रकारी करते समय सरस्वती द्वारा एक शिशु व उसकी माता का तस्वीर उकेरा जाना, यह याद दिलाता है कि सरस्वती के अब भी एकमात्र लक्ष्य अपने पुत्र बेनू को वापस पाना ही है. पांचवां बिंब, पोखर और उसमें खिल रहा कमल. फिल्मांकन ऐसा है जैसे मां पोखर हो और खिलने वाला कमल उसका पुत्र. बाकी, दीवारों पर या टिफिन बॉक्स के ऊपर मधुबनी चित्रकारी तो है ही, मिथिला की माटी को स्थापित करने के लिए. सूर्य देव की आकृति वाला सूप सरस्वती के घर की दिवाल पर टंगा है. छठ महापर्व वहां भी सूक्ष्म रूप में विद्यमान है. अपने इन्हीं लोकल तत्वों के कारण 'लोटस ब्लूम्स' ग्लोबल अपील धारण की हुई है. जिनकों अपनी जड़ों से जुड़ाव है, उन्हें यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

कहानी सरल लेकिन सुंदर है, प्यारी सी. सरस्वती का पति काम पर गया तो कभी लौटकर नहीं आया. इसलिए अब वह अपने बेटे बेनू के साथ रहती है. गरीबी के कारण बेनू की पढ़ाई छूट गई और व्यवस्था में उसे सिंगापुर भेजना पड़ा. फोन पर पुत्र की व्यथा सुन मां का हृदय तड़प उठा और उसने अपने स्वाभिमान को किनारे कर बनू की वापसी के लिए पैसे के प्रबंध में जुट गई. इन पैसों का प्रबंध करने में उसे किन-किन संघर्षों से गुजारना पड़ा? फिर भी क्या बेनू वापस आता है? यही कथा है. कहानी भले ही बिहार के मैथिली क्षेत्र के एक गांव की है. लेकिन, इसकी बुनावट इतनी बारीक है कि यह दुनिया हर उस परिवार का प्रतिनिधित्व करती है, जो विपन्नता के कारण अपने बच्चों को स्वयं से दूर करते हैं. अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया व भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसे करोड़ों परिवार हैं, जो विवशता में कलेजे के टुकड़े को खुद से अलग करते हैं. 'लोटस ब्लूम्स' ऐसे हर वंचित समाज की कहानी है. इसलिए भी इसका वैश्विक अपील है. माजिदी की फिल्मों की भांति.

सरस्वती के पात्र में इस फिल्म की निर्मात्री अस्मिता शर्मा हैं, जिन्होंने अपने कंधों पर पूरी फिल्म को उठा रखा है. 'गुटरूं-गुटरगूं' के बाद से अब तक उनका अभिनय अधिक स्वाभाविक हुआ है, हालांकि उनका एफर्टलेस होना अभी बाकी है. अस्मिता पूरी तरह सरस्वती के किरदार में समाई हुई हैं. अकेली महिला का संघर्ष, पुत्र के प्रति वात्सल्य, फिर उसी पुत्र के लिए बाहरी दुनिया से बाप वाली सख्ती, विपन्नता में भी स्वाभिमान... इन सारे भावों को एक साथ घोलकर उन्होंने परोसा है. भावों में संतुलन देखिए. अमरेंद्र से प्रथम दैहिक स्पर्श के ठीक पूर्व अपनी दोनों हथेलियों को आपस भींचकर रखना, बेनू के नहीं रहने पर हवा में हाथ लहराना, घड़ी को अपलक देखना.... अस्मिता शर्मा के बाद बेनू के किरदार में अथ शर्मा औसत हैं. उन्हें अभी और सीखना है. बाबा के किरदार में परवेज अख्तर का अभिनय नाटकीय है. बाबा के पुत्र अमर बाबू के रूप में अखिलेंद्र मिश्रा ने अपनी एक्टिंग के टूलकिट में से उतना ही निकाला जितने में काम चल जाए.

तकनीकी पक्षों की बात करें, तो फिल्म के आरंभ में कैमरा विहंगम कोण से ग्राम्य जीवन की स्थापना करता है. गांव का मटमैला रंग संयोजन कथा के यथार्थ को पुष्ट करता है. हल्की सर्दी के कलर टोन को मिलाने का प्रयास हुआ है. पार्श्वध्वनि का कहीं-कहीं आधिक्य कर्णभेदी प्रतीत होता है. जैसे एक बार घर लौटने के बाद सरस्वती के कमरे में बैठने वाला दृश्य हो या अमरेंद्र के भाग जाने के बाद हताश खड़ी सरस्वती वाला दृश्य. इससे बचना चाहिए. 'बउआ...' गाना मोहक है. स्कूल और अमरेंद्र के संग चित्रकारी वाले कुछ दृश्य लंबे हो गए हैं, उन्हें संपादित किया जा सकता था, तो फिल्म और भी चुस्त होती.

हालांकि, तकनीकी पक्ष ऐसा है कि उसमें कभी भी आदर्श स्थिति की संभावना नहीं होती है. मूल है कथानक की प्रस्तुति, जिसमें निर्देशक प्रतीक शर्मा सफल हुए हैं. मैथिली सिनेमा अभी बाजार सापेक्ष नहीं हुआ है, इसके बावजूद इसमें निवेश करने का साहस करने वाली प्रोड्यूसर अस्मिता शर्मा को कोटि-कोटि बधाई. निर्माता-निर्देशक की इस प्यारी जोड़ी की जानिब से आगे भी मैथिली, भोजपुरी, मगही व हिंदी में अच्छी फिल्में हमें देखने को मिलेंगी, ऐसी आशा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

IND vs AUS: पर्थ टेस्ट में टीम इंडिया का दबदबा, यशस्वी-राहुल के दम पर 218 रनों की बढ़त, ऑस्ट्रेलिया के उड़े होश
पर्थ टेस्ट में टीम इंडिया का दबदबा, यशस्वी-राहुल के दम पर 218 रनों की बढ़त
56 लाख फॉलोवर्स वाले एजाज खान को चुनाव में मिले सिर्फ़ 100 वोट, सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक
56 लाख फॉलोवर्स वाले एजाज को चुनाव में मिले सिर्फ़ 100 वोट, खूब उड़ा मजाक
Maharashtra Election Result: शिवसेना-एनसीपी में बगावत, एंटी इनकंबेंसी और मुद्दों का अभाव...क्या हिंदुत्व के सहारे महाराष्ट्र में खिल रहा कमल?
शिवसेना-एनसीपी में बगावत, एंटी इनकंबेंसी और मुद्दों का अभाव...क्या हिंदुत्व के सहारे महाराष्ट्र में खिल रहा कमल?
Maharashtra Assembly Election Results 2024: शिंदे की सेना या उद्धव ठाकरे गुट, चाचा या भतीजा और बीजेपी कांग्रेस... कौन किस पर भारी, जानें सारी पार्टियों का स्ट्राइक रेट
शिंदे की सेना या उद्धव ठाकरे गुट, चाचा या भतीजा और बीजेपी कांग्रेस... कौन किस पर भारी, जानें सारी पार्टियों का स्ट्राइक रेट
ABP Premium

वीडियोज

Assembly Election Results: देवेंद्र फडणवीस ने जीत के बाद क्या कहा? Devendra Fadnavis | BreakingMaharashtra Election Result : विधानसभा चुनाव के रुझानों पर महाराष्ट्र में हलचल तेज!Maharashtra Election Result : देश के अलग-अलग राज्यों में हो रहे उपचुनाव में बीजेपी की बड़ी जीतMaharashtra Election Result : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शानदार जीत पर CM Yogi की आई प्रतिक्रिया

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
IND vs AUS: पर्थ टेस्ट में टीम इंडिया का दबदबा, यशस्वी-राहुल के दम पर 218 रनों की बढ़त, ऑस्ट्रेलिया के उड़े होश
पर्थ टेस्ट में टीम इंडिया का दबदबा, यशस्वी-राहुल के दम पर 218 रनों की बढ़त
56 लाख फॉलोवर्स वाले एजाज खान को चुनाव में मिले सिर्फ़ 100 वोट, सोशल मीडिया पर उड़ा मजाक
56 लाख फॉलोवर्स वाले एजाज को चुनाव में मिले सिर्फ़ 100 वोट, खूब उड़ा मजाक
Maharashtra Election Result: शिवसेना-एनसीपी में बगावत, एंटी इनकंबेंसी और मुद्दों का अभाव...क्या हिंदुत्व के सहारे महाराष्ट्र में खिल रहा कमल?
शिवसेना-एनसीपी में बगावत, एंटी इनकंबेंसी और मुद्दों का अभाव...क्या हिंदुत्व के सहारे महाराष्ट्र में खिल रहा कमल?
Maharashtra Assembly Election Results 2024: शिंदे की सेना या उद्धव ठाकरे गुट, चाचा या भतीजा और बीजेपी कांग्रेस... कौन किस पर भारी, जानें सारी पार्टियों का स्ट्राइक रेट
शिंदे की सेना या उद्धव ठाकरे गुट, चाचा या भतीजा और बीजेपी कांग्रेस... कौन किस पर भारी, जानें सारी पार्टियों का स्ट्राइक रेट
Housing Prices: रेसिडेंशियल हाउसिंग प्रोजेक्ट्स का निर्माण हो गया 39 फीसदी महंगा, ये है इसकी बड़ी वजह!
रेसिडेंशियल हाउसिंग प्रोजेक्ट्स का निर्माण हो गया 39 फीसदी महंगा, ये है इसकी बड़ी वजह!
शादी में क्यों नाराज हो जाते हैं फूफा, क्या आपने कभी पता किया इसका कारण?
शादी में क्यों नाराज हो जाते हैं फूफा, क्या आपने कभी पता किया इसका कारण?
महाराष्ट्र में हिंदुत्व का बिग बॉस कौन? आंकड़े गवाही दे रहे कि बीजेपी के सामने अब कोई नहीं है टक्कर में
महाराष्ट्र में हिंदुत्व का बिग बॉस कौन? आंकड़े गवाही दे रहे कि बीजेपी के सामने अब कोई नहीं है टक्कर में
महाराष्ट्र में करोड़ों महिलाओं को मिलेगा BJP की जीत का फायदा, जानें कितना बढ़ सकता है लाडली बहन योजना का पैसा
महाराष्ट्र में करोड़ों महिलाओं को मिलेगा BJP की जीत का फायदा, जानें कितना बढ़ सकता है लाडली बहन योजना का पैसा
Embed widget