भोपाल से इंदौर जाने वाली सड़क के एक तरफ गुड भेला गांव तो सड़क की दूसरी ओर चितावलिया हेमा गांव है. जहां बना है कुबेरेश्वर धाम. उस दिन दोनों तरफ भीड़ ही भीड़ थी. रास्ते पर गाडियां और आने जाने वालों की लंबी-लंबी कतारें. इस जनसैलाब के आगे बेबस से इक्के दुक्के पुलिस के जवान जो ना किसी को रोक पा रहे और ना टोक पा रहे. मैंने पूछा नितिन क्या करें गांव में अंदर कैसे जायेंगे.


नितिन ने कहा कि सर जब इतनी दूर आ ही गए हैं तो यहां भी घुस ही जायेंगे. बस फिर क्या था सड़क पार की और जा घुसे भीड़ में. यहां तो अलग ही नजारा था. सड़क से ही बाजार पसरा था. दोनों तरफ दुकानों की बेतरतीब सी कतारें जो लोग सड़क पर चल नहीं पा रहे थे वो इन दुकानों के अंदर बाहर आसरा पाये थे. दुकानें भी खाने पीने नाश्ते रूद्राक्ष और प्रसाद की ज्यादा. आगे बढ़ते ही बांये हाथ पर सरकारी सोसायटी का दफतर था मगर ये दफतर अब सराय में बदल गया था. यहां पर अंदर बाहर हर ओर परिवारों का डेरा था. लोग अपने बैग और सामान के चादरें बिछाकर यहां तहां सर्वत्र बिखरे थे. 


कैमरा देखा और गुबार फट पड़ा. बाबा ने बुलाया तो लिया मगर व्यवस्था जरा भी नहीं की. यहां खाने पीने शौचालय की परेशानी है. हम रात से आए हैं. खाने पीने के अनाप शनाप दाम तो हैं ही सुलभ शौचालय वाला भी मनमर्जी से पैसा वसूल रहा है. ये वो लोग थे जो कुबेरेश्वर धाम में एक दिन पहले से ही आकर डेरा डाले थे. सोचा था पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर रुकने ठहरने की अच्छी जगह और अभिमंत्रित रूद्राक्ष मिलेगा. मगर ना जगह मिली ना रूद्राक्ष. रूद्राक्ष जो एक दिन पहले बांटना शुरू किया था वहां इतने लोग आ गए कि छोटी मोटी भगदड़ के बाद ये देना बंद कर दिया. 


इस सोसायटी से किसी तरह निकले तो देखा गांव के स्कूल पंचायत भवन के साथ करीब के खेतों पर भी श्रद्धालुओं का कब्जा सा है. जिसको जहां जगह मिली है बैठा है, लेटा है और खाली पानी की बोतल लेकर कुड़ रहा है. पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है भाईसाहब. इन बोतलों का पानी लो और पियो. इस भीड़-भाड़ में आमने सामने से तो लोग तो टकरा ही रहे थे नीचे पैरों में प्लास्टिक की खाली बोतलें भी कम शोर नहीं मचा रहीं थीं. सड़क से करीब पांच सो मीटर चलने पर ही है कथावाचक प्रदीप मिश्रा का कुबेरेश्वर धाम. कई एकड़ में फैले इसके कैंपस के गेट नंबर एक पर ही बदहवासी का आलम. 


पुलिस कंट्रोल रूम का बैनर ओर एक लड़का हाथ में माइक रखे उसके हाथों में सैकडों पर्चियां जिनमें खोने वाले का नाम. उसकी जिम्मेदारी वो नाम पुकारे मगर कितनों का सामने हजारों की भीड़ खड़ी हमारा टीवी का माइक देख कर उसे पकड़ कर ही बोल पड़ी बिहार के दरभंगा से आयी अम्मा जो बेटे से वो बिछड़ गई थी. रामेश्वर बेटा आ जाओ गेट पर खड़ी हूं. देखा देखी में कुछ और लोग यहीं करने लगे. अचानक आई इस भीड़ से मोबाइल नेटवर्क ठप हो गया था सैकडों लोग अपनों से बिछड़ गए थे. इनमें बुजुर्ग और बच्चे जयादा थे. ये सब कब अपनों से मिल पाएंगे इस चिंता को छोड़ हम अंदर जा पहुंचे.


कैंपस में कथा गूंज रही थी और कैंपस की दीवारों के किनारे किनारे हजारों महिलाओं की भीड़ उस छोटी सी जगह में ही पूजा पाठ करते और कथा की धुन पर नाचती दिखीं. यहीं एक चबूतरे पर रूद्राक्ष से बना शिवलिंग था जिसके पास सबसे ज्यादा भीड़ थी. श्रद्धा से लोग उसे प्रणाम कर रहे थे तो चबूतरे पर खड़ा आदमी उनको कह रहा था यहां भीड़ ना लगाएं यहां नहीं मिलेगा रूद्राक्ष. महाराष्ट्र से आए कांताराव हमसे ही बोले कुछ करवाइये सर यहां पर रूद्राक्ष नहीं मिल रहा. हम यवतमाल से आए हैं रूद्राक्ष लेने. हमने पूछा मिल जाएगा तो क्या हो जाएगा. अरे सर अच्छा रहता है. बाबा भोलेनाथ का प्रसाद है वो तो रामबाण है रूद्राक्ष. उसका पानी पीने से सब कष्ट दूर हो जाते हैं किसने कहा पंडित जी बताते हैं.


कुबेरेश्वर में उमड़ी लाखों की भीड़ में सबसे ज्यादा लोग महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश बिहार छत्तीसगढ़ से आए हैं. ये सब वो हैं जो पंड़ित प्रदीप मिश्रा की कथा टीवी मोबाइल पर सुनते हैं और जिंदगी की समस्याओं के समाधान के लिए बताए आसान नुस्खा के वशीभूत होकर यहां चले आए हैं हालांकि मिश्रा जी का दावा है कि लोग उनकी कथा सुनने ज्यादा आते है रूद्राक्ष तो हर जगह मिलता है. कथा पंडालों के पास ही रुकने के पंडाल बने हैं जहां पर लोग किसी तरह ठहरे हुए हैं. माइक देखते ही परेशानियां बताने की कोशिश करते हैं. मगर दूसरे आकर रोकते हैं और कहते हैं इतनी परेशानियां तो चलती हैं जिनको इन पंडाल में जगह नहीं मिली वो खेतों में चार डंडियों में अपने साथ लाए चादर दरी और साड़ियों से छांह कर झुग्गी जैसी बनाकर रह रहे हैं. यहां खुले में ठंड नहीं लगती पूछने पर परिवार में दो छोटे बच्चों के साथ बैठे किशोर कामटे बोलते हैं. लगती तो है मगर आ गए हैं तो कहीं ना कहीं तो रुकना ही होगा. रूद्राक्ष मिलेगा तो चले जायेंगे. 


रूद्राक्ष की चाह में हजारों किलोमीटर दूर से आए इन लोगों की संख्या का अनुमान ना तो प्रदीप मिश्रा और ना प्रशासन लगा पाए. शौचालयों की सीमित व्यवस्था ने इस भीड़ के आगे दम तोड़ दिया था. खुले में शौच के कारण पंडालों के आसपास गंदगी और बदबू का डेरा था. भारी भीड़ में हुई इन अव्यवस्थाओं में बीमार अशक्त बुजुर्गों की जान पर बन आई है. जिला अस्पताल सिहोर में कुबेरेश्वर धाम से आए बीमारों की सूची में सत्तर लोगों के नाम लिखे हैं जो विभिन्न वार्डो में भर्ती हैं. इनमें तीन मरने वाले भी है जिनमें दो बुजुर्ग महिला और बच्चा हैय सवाल ये है कि कथावाचक के बुलावे पर लाखों की ये भीड़ क्यों कष्ट उठाते हुए इतनी दूर चली आती है ये आस्था है अंधविश्वास है या फिर अपनी जिंदगी से जुड़ी समस्याओं से निजात पाने के आसान रूद्राक्षी उपाय समझ नहीं आता. 


उधर हमारे लौटते में पंडाल से आवाज आ रही थी अरे भाई कई बार शादियों में भी तो ज्यादा लोग आ जाते हैं तो इसमें परेशानी कैसी. लोग जो यहां परेशान हो रहे हैं लगता है वो पूरी आस्था के साथ नहीं आए. हमने भी सोचा कि जब अव्यवस्थाओं को ही आस्था की आड़ में छिपाने लगो तो फिर क्या रह गया. भाईसाब आप पत्रकार हो लोगों को बताइए बुलाने के बाद ऐसी अव्यवस्था होगी तो आयोजकों पर केस होना चाहिए. यहां हर साल ऐसा ही होता है. एक बुजुर्ग शख्स ने मेरा माइक पकड़ कर कहा.



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)