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मध्य प्रदेश उपचुनाव: क्या इन सात की फिर होगी पौ बारह, 10 तारीख को किसके बजेंगे बारह?

मध्यप्रदेश की दो बड़ी पार्टियों के प्रमुख नेताओं के बयानों से ये तो समझ आ गया है कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही दोनों पार्टियों में पर्दे के पीछे चल क्या रहा है.

दृश्य एक शुक्रवार- पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का उनके घर पर शूट किया गया वीडियो जिसमें कमलनाथ कहते हैं कि जनता ने उपचुनावों में सच्चाई का साथ दिया है और इसी से घबराकर बीजेपी और उसके नेता अब सौदेबाजी पर उतर आए हैं. कमलनाथ आरोप लगाते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी पार्टी के नेता हमारी पार्टी के विधायकों और स्वतंत्र विधायकों से जोड़-तोड़ में लग गए हैं प्रदेश की जनता इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी.

दृश्य दो- शनिवार, भोपाल में बीजेपी का दफ्तर, जहां के मीडिया मंच पर खड़े होकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि बीजेपी उपचुनावों में शानदार सफलता प्राप्त कर रही है और उसी के पूर्वाभास के कारण कांग्रेस और कमलनाथ जी बौखला रहे हैं. मेरा आरोप है कि कमलनाथ आज भी बीजेपी के विधायकों को फोन कर रहे हैं. उनको लुभा रहे हैं. मगर बीजेपी का एक भी विधायक पार्टी छोड़कर नहीं जाएगा. अगर जोड़तोड़ की राजनीति किसी ने की है तो कमलनाथ ने की है वो करे तो मैनेजमेंट और हमारे पास कोई मन से आ जाए तो गद्दारी. ये दोहरा मापदंड नहीं चलेगा.

मध्यप्रदेश की दो बड़ी पार्टियों के प्रमुख नेताओं के बयानों से ये तो समझ आ गया है कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही दोनों पार्टियों में पर्दे के पीछे चल क्या रहा है? कुछ ना कुछ पक तो रहा है जो दोनों पार्टियों के नेताओं को परेशान कर रहा है. भोपाल में शुक्रवार को वरिष्ठ मंत्री भूपेंद्र सिंह के बंगले पर बीएसपी विधायक संजू कुशवाहा, निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा और प्रदेश की तकरीबन सभी पार्टियों से विधायक रह चुके नारायण त्रिपाठी की मेल-मुलाकात के बाद ये खबर गर्म हुई कि बीजेपी का प्लान-बी यानी की चुनाव परिणाम आने के बाद की योजना तैयार हो रही है.

ऐसा नहीं है कि प्लान-बी बीजेपी ही बना रही है. कांग्रेस भी पूरी मजबूती से चुनाव लड़ने के बाद अब फिर से सरकार बनाने की कोई कोशिश नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस के आफिशियल ट्विटर हैंडल और व्हाट्सएप ग्रुप पर तो कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री नहीं बल्कि भावी मुख्यमंत्री लिखा जाने लगा है. इससे ही कांग्रेस के रंग-ढंग और तैयारी समझ आ रही है.

वैसे बीजेपी की सरकार को अपने दम पर पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए 28  में से बहुत ज्यादा नहीं सिर्फ आठ विधायक ही चाहिए. कांग्रेस के एक और विधायक के पाला बदलने से मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायकों का सदन अब 229 का हो गया है और बहुमत का आंकड़ा जो 230 सदस्यों में 116 था वो घटकर 115 हो गया है. बीजेपी के पास 107 विधायक पहले से ही हैं ऐसे में उसे आठ विधायक ही चाहिए होंगे.

उधर लगातार विधायक खो रही कांग्रेस के खेमे में अब 87 विधायक बाकी हैं और उसे 115 के जादुई आंकड़े तक आने के लिए या कहें कि अपनी सरकार फिर से बनाने के लिए पूरी 28 सीटें ही जीतनी होंगी. यानी की तकरीबन पूरी, जो बेहद कठिन काम दिख रहा है. मगर जैसा कि हम सब जानते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. लोकतंत्र में संख्या या सिर ही महत्वपूर्ण होते हैं.

ऐसे में परिणामों की ऊंच-नीच में संख्या जुटाने के लिए चार निर्दलीय और दो बसपा और एक सपा का विधायक तो हैं ही और ये विधायक भी ऐसी परिस्थिति में चुनकर आए हैं कि उनकी किस्मत से पहले बीजेपी और अब कांग्रेस के विधायक मंत्री तक ईर्ष्या करते हैं. आह क्या किस्मत पायी है? कांग्रेस की सरकार थी तो कमलनाथ के साथ और बीजेपी की सरकार है तो शिवराज के साथ घूम रहे हैं.

मजे की बात ये स्वतंत्र या छोटी पार्टी के विधायक अपने क्षेत्र का विकास और अपनी विधानसभा की जनता की आवाज पर कहीं भी जाने और जुड़ने को तैयार हैं. हालांकि जनता भी समझ रही है कि स्वतंत्र विधायक के इधर-उधर होने से जनता का तो नहीं मगर विधायक जी का सर्वांगीण विकास  तो हो ही रहा है. वैसे भी विकास की ललक अचानक पाला बदल कर ही पूरी हो रही है ये हमने पिछले कुछ दिनों में देखा है जब कांग्रेस के पहली बार के चार विधायक नेपानगर की सुमित्रा कास्डेकर,मांधता के नारायण सिंह, बड़ा मल्हरा के प्रदुम्न सिंह लोधी और दमोह के राहुल लोधी के मन में अचानक क्षेत्र के विकास का सपना जगा. वे पहले विधानसभा अध्यक्ष से मिले, उनको विधायकी से इस्तीफा दिया और फिर किसी बीजेपी के बड़े नेता के साथ बीजेपी दफ्तर आकर बताते हैं कि वो अपने इलाके के विकास की ललक के चलते पार्टी बदल कर अपनी विधायकी कुर्बान कर यहां आ गए हैं क्योंकि उनको लगता है कि इस नई पार्टी में विकास की गंगा बहती है.

मगर विकास बिना विधायक बने होता नहीं है इसलिए फिर नई पार्टी से विधायक बनने के लिए मैदान में उतरेंगे. विकास की ललक वाले इन विधायकी छोड़ने वाले नेताओं के 25 साथी ऐसा कर उनको रास्ता दिखा चुके हैं और फिर पंद्रह साल लगातार मंत्री रहने वाले गोपाल भार्गव के चिरंजीव अभिषेक ये तो मंच से बता ही चुके हैं कि मंत्रियों के घर पैसे बरसते हैं, कोई सरपंची नहीं छोड़ता ये तो विधायकी छोड़ रहे हैं मंत्री पद छोड़ रहे हैं इसलिये इनकी कुर्बानी को जनता याद रखे.

मध्यप्रदेश की राजनीति में होली के दिन से शुरू हुई राजनीतिक अस्थिरता दीवाली तक पैर पसार चुकी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि उपचुनावों के दस तारीख को आने वाले परिणामों के बाद से ये धुंध छटेगी. वैसे प्रदेश की जनता के मन में यही सवाल है कि दस तारीख को किस पार्टी के बारह बजेंगे. वैसे बारह किसी के भी बजे पौ बारह तो उन सात विधायकों की होनी तय ही है जो निर्दलीय और सपा-बसपा के हैं. कोई शक?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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