मध्यप्रदेश में नेताओं का कथा प्रेम
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मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनावों में बीजेपी, कांग्रेस के नेताओं को अब कथा वाचकों का ही सहारा है. प्रदेश के अधिकतर मंत्री अपनी विधानसभाओं में कथा कराने में व्यस्त हैं. मंत्री भूपेंद्र सिंह, मंत्री गोपाल भार्गव और मंत्री कमल पटेल अपने क्षेत्रों में कथा करा चुके हैं. अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी छिंदवाड़ा में कथा कराने जा रहे है. कथा के आयोजन में उमड़ रही भीड़ नेताओं को वोट का अहसास करा रही है, इसलिये लगातार ये आयोजन हो रहे हैं.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हरदा में हो रही जया किशोरी की कथा में शामिल होने पहुंचे. कथा सुनी और भाषण देने की जगह भजन सुना दिये. दरअसल ये कथा के आयोजक प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल थे. जिन्होंने अपनी विधानसभा में जया किशोरी को कथा करने बुलाया और हर रोज उनको सुनने हजारों की भीड आयी. मुख्यमंत्री इस आयोजन में आये और कथा की भूरि भूरि प्रशंसा की.
शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल में कथा कराने वाले मंत्री अकेले कमल पटेल ही नहीं है. कुछ दिनों पहले गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पंडित धर्मेंद्र शास्त्री की कथा करवाएं. वही नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह कमल किशोर नागर की कथा करवाएं . पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव राजेंद्र दास महाराज की कथा करवाए. जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट मदन मोहन महाराज की कथा करा चुके हैं. और अब इसमें नया नाम जुड़ने वाला है. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ का जो आने वाले दिनों में पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा कराने जा रहे है. जिसकी तारीख अभी तय होनी है.
मंत्रियों और नेताओं का कथा प्रेम यूं ही अचानक नहीं है. दरअसल प्रदेश मे ठीक एक साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं इसलिये सबको जनता के सामने धार्मिक बनने के लिये कथा कराना ही आसान उपाय दिख रहा है. इसलिए सारे नेता और मंत्रियों ने अपनी विधानसभा मे ही कथा करवा रहे है. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि नेताओं का ये कथा करा कर वोटरों को लुभाना पुराना तरीका है. धार्मिक कथा वाचकों से कथा कराने की होड में मंत्री और बड़े नेताओं के अलावा विधायक और सांसद भी पीछे नहीं है.
कुछ दिन पहले ही कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला ने इंदौर में पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा करवाए, तो बीजेपी के विधायक जजपाल सिंह जज्जी ने भी धर्मेंद्र शास्त्री से कथा करवाई ओर भारी भीड़ जुटाई. इन सारे आयोजनों में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है. कथावाचक लाखों रुपये की फीस लेते हैं. उस पर तंबू पंडाल और कथा के दौरान चलने वाले भंडारे किसी भी आयोजन का खर्चा लाखों में पहुंचा देते हैं. नेताओं को चुनावी वोटों के आगे ये लाख रुपये कम ही लगते. तभी तो कथा कराने की भीड़ उमड़ पड़ी है.
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