वो धार जिले के निसरपुर नई बसाहट का सीमेंट के लेंटर वाला दो बडे कमरे वाला छोटा सा मकान था. दो साल पहले बने इस घर के मालिक पंडित पुरुषोत्तम शुक्ला के घर आज उनकी बेटी शादी कृतिका की शादी थी. बारात गुजरात के बड़ौदा से आनी थी. कुछ रिश्तेदार आ गये थे तो कुछ आकर चले गये. वजह थी कि 17 तारीख को होने वाली शादी जिसे खरगोन में 10 तारीख को हुई हिंसा का ग्रहण लग गया था. इस घर के बेटे शिवम पर उस दिन जान पर बन आई थी.  


रामनवमी के दिन खरगोन में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में सबसे गंभीर शिकार जमींदार मोहल्ला में रहने वाला शिवम शुक्ला था. जिसे सिर में लगी चोट के बाद इंदौर में भर्ती कराया गया और जहां दो दिन वेंटिलेटर पर रहने के बाद अब वो खतरे से बाहर है. मगर पुरोहिताई करने वाले इस परिवार पर तो उस घटना के बाद जैसे बिजली सी गिर गयी. पुरुषोत्तम बताते हैं कि शिवम खरगोन मे अपने मामा के घर रहकर पढाई कर रहा था. 


घटना के बाद देर रात उनके रिश्तेदार रमाकांत जोशी आये और सुबह चाय का कप लेकर मुझे घर से बाहर ले गये और कहा कि जरा हिम्मत से काम लो कल अपने शिवम को दंगों में गोली लग गयी है. ये सुनते ही मैं धडाम से गश खाकर गिरा और पूरा परिवार बाहर आ गया कि ये क्या हुआ. घर में घंटों रोना पीटना चलता रहा. हमारे कलेजे को ठंडक तभी मिली जब पूरा परिवार इंदौर में शिवम को जब तक देखने आया. शिवम के इलाज के लिये जमीन और प्लॉट बेचने की बात कर ली थी मगर अब सरकार ने इलाज फ्री करने का वायदा किया तो राहत हैं. मगर शादी तो हमनें टाल दी है. सब कुछ ठीक होता तो आज यहां मेरे घर में बारात आयी होती मेहमानों की चहल पहल होती और मैं आपसे इस तरह फुर्सत से बात नहीं कर पाता.


शिवम अपनी दो बहनों का अकेला भाई हैं, जिसने उसी दिन कृतिका से वायदा किया था कि ग्यारह को तेरा जन्मदिन है अब तू जन्मदिन अपने ससुराल में ही मनाएगी इसलिए ये आखिरी जन्मदिन अपन सब घर में एक साथ मनांयेगे. दस की रात की बस से ही वो आने वाला था. मगर निसरपुर ना आकर उसे घायल अवस्था में इंदौर ले जाया गया. कृतिका याद करती है कि मेरे भाई की हालत की खबर सुन कर हम सब ने दो दिनों तक खाना नहीं खाया. शादी ब्याह सब भूल कर रोज रात दिन परिवार भगवान की पूजा ही करता रहा कि मेरे भाई को बचा लो. अब तो शादी तभी होगी जब मेरा भाई ठीक होकर घर आ जायेगा और नाचने गाने के लायक हो जायेगा. उसने नाचने के लिये बैंड और डीजे बुक कर रखे हैं. ये बात करते करते कृतिका की आखें से कब मुस्कुराते मुस्कुराते आंसू निकल आये पता ही नहीं चला.


शिवम के साथ उसके मामा का बेटा मंथन जोशी भी था. मंथन ने उस दिन को याद कर बताया कि हमारे मोहल्ले के अधिकतर लोग रामनवमी का जुलूस में शामिल होने तालाब चौक गये थे. मगर वहां पथराव हो गया तो जब तक हम लोग संभलते हमारे करीब लगी कालोनी के मकानों से पथराव होने लगा. हमारी गलियों में जाने कहां से इतने लोग आ गये हम समझ ही नहीं पाये और हम जान बचाकर यहां वहां भागने लगे. इसी बीच में किसी ने बताया कि तेरे भाई शिवम को पत्थर लग गया है और वो लहूलुहान पड़ा है चौक की मढिया के पास. वहां जाकर देखा तो वो जमीन पर गिरा था और उसके सर से खून बहे जा रहा था. इस बीच में पथराव चल रहा था. थोडी देर में पुलिस आयी और उसे अस्पताल ले गयी बाद में पता चला कि वो बहुत गंभीर है और उसे इंदौर ले जाया गया है.


मंथन की बातों की गवाही हमें जमींदार मोहल्ले के अधजले मकान, टूटे दरवाजे और गली में बिखरे ढेरों पत्थर दे रहे थे. बावड़ी बस स्टेंड के पास बसे इस मोहल्ले में हिंदू मुसलमान की मिली जुली आबादी है. जिस जगह पर ये आबादी मिलती है वहां के मकानों को भारी नुकसान हुआ है और दोनों समाज के लोग अपने मकान छोड़कर चले गए हैं. मकानों पर ताले लगे हैं और गली में सन्नाटा छाया है. यहां जब खिड़की से सर निकाले राजेश जोशी से पूछा कि सब कहां गये तो जवाब मिला अपने रिश्तेदारों के घर सबने शरण ले ली ओर तुम हमारा कोई रिश्तेदार नहीं है हम कहां जायें. 


सच है लोग कहां जाएं और कब तक कोई अपने रिश्तेदारों के घर रहेगा. लौटना तो इन गलियों में ही पडे़गा जहां जिंदगी बीती है. पुलिस ने बडे़ पैमाने पर धरपकड की है जिसके कारण भी बहुत परिवार घर छोड़कर चले गये हैं. मगर सवाल वही है आखिर कब तक. लौटना तो पडे़गा. खरगोन में अब जिंदगी धीरे धीरे सामान्य हो रही है मगर जिंदगी और सौहार्द वापस आते आते महीनों सालों लगेंगे जो सबसे ज्यादा लहूलुहान हुआ है.


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