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400 करोड़ रुपये से बने अस्पताल में भी लाचार बुजुर्ग को क्यों नहीं मिलता स्ट्रैचर?

सरकार का दावा है कि भारत अब दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है जिस पर हर भारतीय को गर्व करने में शायद कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये. लेकिन हमारा ही संविधान ये सवाल पूछने की इजाज़त भी देता है कि तरक्की की इस बुलंदी तक पहुंचने के बाद भी देश के एक सरकारी अस्पताल में अपनी टूटी हुई हड्डियों का इलाज कराने के लिये किसी बुजुर्ग को डॉक्टर तक पहुंचने के लिए आज भी एक स्ट्रैचर तक आखिर नसीब क्यों नहीं होता है?

सबका साथ, सबका विकास के स्लोगन को प्रचारित करने में करोड़ों बहा देने वाली सरकार में बैठे हुक्मरानों से मध्य प्रदेश की जनता तो ये भी जवाब मांगेगी कि आखिर ऐसा क्यों हुआ कि एक लाचार बहू को दिव्यांग हो चुके अपने बुजुर्ग ससुर को सफेद चादर में बैठाकर घसीटते हुए डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा? वह भी ऐसे अस्पताल में जिसका कायाकल्प करने में प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने हाल ही में करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किये हैं. कोरोना काल की विपदा झेलने के बाद सरकार ने दावा किया था कि देश में अब स्वास्थ्य सेवाओं को इतना मुस्तैद कर दिया गया है कि किसी गरीब इंसान को ईलाज के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा. तो फिर इस घटना को क्या समझा जाये?

ये तो भला हो उस सोशल मीडिया की ताकत का जिसके एक वीडियो ने मध्य प्रदेश सरकार के सरकारी अस्पतालों में मौजूद लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है. ये घटना किसी कस्बे की नहीं बल्कि प्रदेश के महत्वपूर्ण शहर ग्वालियर की है, जहां आजादी से पहले तक सिंधिया राजवंश हुआ करता था. वही राजवंश जिसके वारिस अब ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जो कभी कांग्रेस के सबसे बड़े वफादार हुआ करते थे लेकिन अब केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं. दरअसल, शिवराज सरकार ने बीते सालों में इस जयारोग्य अस्पताल का पुनर्निर्माण करते हुए इसे 1 हजार बिस्तरों वाला और चिकित्सा की तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल बनाने का दावा किया है.

रोचक तथ्य ये है कि इस अस्पताल भवन का निर्माण भी साल  1899 मे सिंधिया राजवंश ने ही कराया था. बताते हैं कि तब इसमें सिंधिया रियासत से जुड़े कुछ कामकाज हुआ करते थे. लेकिन भारत के आजाद होने से पहले ही ज्योतिरादित्य के दादाजी ने इस इमारत को अंचल का सबसे बड़ा अस्पताल बनाने के लिए दान कर दिया था. तब से इस भवन में न केवल ग्वालियर का बल्कि मध्य भारत का सबसे बड़ा अस्पताल समूह संचालित होता आ रहा है. बताते हैं कि उस जमाने में  450 बिस्तरों वाला  यह अस्पताल देश के लिए रोल मॉडल बन गया था. छोटी-बड़ी रियासतों के राजा-महाराजाओं से लेकर आम जनता व अंग्रेज अफसर वहां इलाज के लिए जाया करते थे. दिल्ली, मुंबई, इंदौर व भोपाल से रेल-बस व हवाई जहाज की सुविधा ने उस जमाने में ये ग्वालियर का मेडिकल हब बन गया था और उसके बाद से महानगर में चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार होने लगा.

दरअसल, सरकार द्वारा नवनिर्मित इस अस्पताल में शुक्रवार को एक महिला अपने बुजुर्ग ससुर श्रीकृष्ण ओझा को लेकर पहुंची थी. ओझा भिंड के रहने वाले हैं और कुछ समय से ग्वालियर में सूबे की गोट में निवास कर रहे हैं. साइकिल से गिर जाने की वजह से उनके दाहिने पैर की हड्डी टूट गई और वे चलने से लाचार हो गए. अपने ससुर का उपचार करवाने के लिए महिला अपने ससुर को लेकर अस्पताल पहुंची थी.

अस्‍पताल में महिला को डॉक्टरों ने कह दिया कि वे अपने ससुर  को जयारोग्य अस्पताल की पत्थर वाली बिल्डिंग में ले जाएं, जो ट्रामा सेंटर भी कहलाता है. महिला ने अपने ससुर को ले जाने के लिए अस्पताल में स्ट्रेचर मांगा, लेकिन उसे कोई स्ट्रेचर नहीं मिला. बेबस महिला काफी देर तक स्ट्रेचर मांगती रही, लेकिन जब स्ट्रेचर का जुगाड़ नहीं हुआ, तो उसने अपना दिमाग चलाया.महिला ने एक चादर को ही स्ट्रेचर की तरह इस्तेमाल करने का सोचा और अपने ससुर को चादर पर बैठाकर उसे खींचते हुए अस्पताल के बाहर तक ले गई. वहां से एक ऑटो वाले को दोगुने पैसे देकर अपने ससुर को उसमें बैठाया और वे अस्पताल की पत्थर वाली बिल्डिंग में जा पहुंची.

ऑटो से उतरने के बाद उसने फिर ससुर को चादर में बैठाया और उन्हें खींचकर अंदर ले जाने लगी. उसी दौरान अस्पताल में मौजूद एक शख्स ने इस पूरे वाकये का वीडियो बना लिया. वही वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो को देखकर जहां लोग महिला की सूझबूझ की तारीफ कर रहे हैं,तो वहीं सरकारी अस्पतालों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर शिवराज सरकार को जमकर कोस भी रहे हैं.

हालांकि अधिकांश लोग इसे एक मामूली घटना बताकर दरकिनार कर देंगे कि ऐसा तो हर शहर के सरकारी अस्पतालों में आये दिन होता रहता है. लेकिन कोई भी ये सीधा सवाल पूछने का हौंसला क्यों नहीं जुटाता कि स्वास्थ्य के लिए इतना भारी-भरकम बजट होने और सरकार के तमाम दावों के बावजूद आखिर ऐसा क्यो होता है और ऐसे दोषियों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती? बहरहाल, चार सौ करोड़ की लागत से तैयार हुए इस अस्पताल की करतूत उजागर होने के बाद  शिवराज सरकार आफत में आ गई लगती है. इसलिये कि अगले नवंबर में वहां विधानसभा के चुनाव हैं और उससे पहले मुख्य विपक्षी कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा मिल गया है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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