मध्य प्रदेश में विदिशा जिले के गंजबासौदा कस्बे से करीब एक डेढ़ किलोमीटर पक्की सड़क पर चलने पर ही पड़ता है लाल पठार गांव. इस गांव के रास्ते में हर ओर पुलिस का पहरा है. सरकार और प्रशासन का ऐसा कोई अधिकारी नहीं था जो वहां पर 16 की रात से लेकर 17 जुलाई की रात तक मौजूद ना था. तकरीबन हजार लोगों की आबादी वाले इस गांव में हुए हादसे ने पुलिस प्रशासन के हाथ पैर फूला दिए थे. इसलिए ये सख्ती और चुस्ती दिख रही थी.


गांव की सकरी गलियों में घुसते ही माइक हाथ में देख दो लोगों ने हाथ पकड़कर कहा कि भाईसाहब आप ये जरूर बताना कि यदि हमारे गांव में पीने के पानी की व्यवस्था होती तो ये हादसा नहीं होता और इतने सारे लोगों की जान नहीं जाती. गांव में सिर्फ दो कुएं हैं. एक उस तरफ और ये दूसरा जिसमें इतने सारे लोग गिर गए कि अब तो ये भी खत्म हुआ ही समझो. कुछ लोग कुएं के पानी में डूबकर मर गए. हम बाकी अब प्यासे मरेंगे. हमें तो घटनास्थल पर पहुंचने की जल्दी थी तो हां हां कह कर हाथ छुड़ा कर भागे.


उफ वो घटनास्थल क्या था गांव के किनारे एक तरफ कुछ मकान तो तीन तरफ से खेतों से घिरा कुआं था जिसका अब नामो निशान ही मिटा दिया गया. चार जेसीबी और दो बड़ी पोकलेन मशीन अपनी भारी घड़घड़ाहट के साथ उस कुएं को चौडा कर गीली मिट्टी और मलबा किनारे लगाने में जुटी थी. हर तरफ पुलिस के जवान तमाशबीनों को रोकते हुए डटे थे. आपदा प्रबंधन में माहिर एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवानों की निगरानी में राहत और बचाव कार्य देर रात से जारी था. गुरुवार रात को हुए हादसे के बाद जो तीन शव जो रात में ही निकाले गए थे. उसके बाद से शुक्रवार की दोपहर तक और कोई शव नहीं निकाला जा सका था. इससे गांव वालों का धीरज जवाब दे रहा था जो गांव के लोग रात से लेकर सुबह तक पुलिस प्रशासन और प्रेस को सहयोग की मुद्रा में दिख रहे थे अब वो बात बात पर उत्तेजित हो रहे थे. टीवी कैमरों को देख कर भडक रहे थे. घटनास्थल वो कुआ था जिसमें गुरुवार की रात रवि अहिरवार गिरा तो उसे बचाने आये तीस लोग फिर कुएं का स्लैब टूटने से कुएं में गिर गए थे. इनमें से 19 तो किसी तरह फिर निकल आए थे बाकी के लोगों को निकालने की कोशिश जारी थी.


इस कुएं से थोड़ी दूरी पर कुएं के चारों तरफ रेलिंग लगाकर रोका गया था मगर उन्हीं रैलिंग में सिर फंसा फंसा कर कहीं औरतें सुबक रहीं थीं तो कहीं पुरूष. इसी रेलिंग को पार कर पार्वती कुएं के पास एक मकान की छांव में बैठी हुई थी. आंखों के आंसू रो रोकर सूख चुके थे गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी. कुछ पूछो तो हाथों के इशारे से ही बता रहीं थी कि उनका 14 साल का नाती कुएं में गिरा है. जैसे ही इस घटना का पता चला है तभी रात से यहीं जमकर बैठी हैं और उस अभागे कुएं की तरफ टकटकी लगाकर देखे जा रहीं है जिसने इनके कलेजे के टुकडे को लील लिया. गांव की दूसरी औरतें भी कुएं से थोड़ी दूर पर खड़ी हैं और कैमरे देखते ही भड़क उठती हैं. रात से अपनी फिल्म बनवा रहे हैं अब नहीं बनवानी हमारे लोगों को जिंदा निकाल दो तो हम मानें बड़ी मीडिया वाले हो. मगर ये तो सब जान रहे थे कि अब किसी का भी जिंदा निकलना नामुमकिन ही है. बस इंतजार है लाशों का कितनी और किसकी निकलती है.


गांव में सर्वे करवाया गया तो करीब दस लोग लापता है जिसका अंदेशा इस कुएं में डूबने का था. गांव क्या था पठारी इलाके में बसे कुछ 25-50 लोग और ऊंचे नीचे कच्ची गलियों के बीच पत्थरों से बने छोटे छोटे मकान. इन मकानों में बच्चे ही खेलते दिख रहे थे. पुरुष और महिलाएं कुएं के पास ही रात से डेरा जमाएं थीं. कुछ के लोग लापता थे तो कुछ के जवान बच्चे. कोई रो रहा था तो कोई किसी को सहारा दे रहा था. गांव में रात के बाद से शायद ही किसी घर में चूल्हा जला होगा. भूखे बच्चे हम अजनबियों को देख देखकर सहम रहे थे. कुएं के पास ही उस रवि का घर था जो कुएं में पहले गिरा. कच्चे कबेलू वाले छोटे से घर में रवि की मां पछाड़ खाकर बेसुध पड़ी थी. उनको सहारा दे रही पास बैठी ने बताया कि कल शाम छह बजे से ही यही हालत है बेटा नहीं मिला तो जान दे देंगी इतना चाहती थी छोटे बेटे रवि को. इस छोटी सी बस्ती में हर घर में मातम है किसी का सगा तो किसी का नाते रिश्ते वाला उस मौत के कुएं में गिरा है. हर थोड़ी दूर पर घरों के अंदर से महिलाओं के दहाड़ मारकर रोने की आवाजें लगातार आ रहीं थीं. 


लाल पठार के उस मौत के कुएं ने शुक्रवार की रात तक 11 लाशें उगलीं. मरने वालों के परिजनों को सीएम से लेकर पीएम तक ने राहत का ऐलान किया. मगर उस गांव से लौटने में ये एहसास हो रहा था कि ये दर्दनाक कहानी लाल पठार की नहीं उन सभी गांवों की है जहां पर पानी की किल्लत साल भर बनी रहती है. गांवों में सरकारी कागजों में नलकूप और हैंडपंप बने और खुदे हैं. मगर असल में वो या तो होते नहीं या फिर बिगड़े होते हैं. जिनको सुधारने की सुध किसी को नहीं. लाल पठार में भी इस हादसे के बाद गांव के लोगों को पीने के पानी के लिए नलकूप की खुदाई शनिवार शाम से शुरू हो गयी. हमारी सरकार मूलभूत सुविधाओं के लिए भी हादसों का इंतजार करती है. हद है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)