जैसा कि होता है हर थोडी देर में व्हाट्सएप खंगालने की बीमारी है. कुछ नया आ तो नहीं गया और इस बार जो वीडियो ग्वालियर से हमारे देव श्रीमाली ने डाला वो हंसा-हंसा कर आंखों में पानी दे गया. इस वीडियो में मध्यप्रदेश के बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर एक कांग्रेसी कार्यकर्ता के घर जाकर उनको अपनी कसमें खिला-खिलाकर मना रहे हैं कि मेरे साथ प्रचार पर चलिये और आप पोलिंग बूथ पर नहीं बैठेंगे. मगर वो कार्यकर्ता जिनका नाम बाद में पता चला कि वह कांग्रेस के सेक्टर अध्यक्ष रवींद्र सिंह तोमर हैं टस से मस नहीं होते. हमारे मंत्री जी जो हर कहीं किसी को भी सिर रखकर दंडवत करने को तैयार रहते हैं सोफे से उतरकर सामने बैठे तोमर साहब के पैरों में सिर रखने को उतावले होते हैं और वो साहब किसी तरह उनको पैरों में सिर रखने को रोकते हैं.


एकदम दंगल जैसा दृश्य होता है कि दोनों पहलवान एक दूसरे के पैरों में अपना अपना सिर फंसाने को उतावले होते हैं. मालूम नहीं बाद में क्या हुआ मगर तकरीबन दो मिनट का यह वीडियो बहुत कुछ कह रहा है. यह बता रहा है कि यह चुनाव कितना मुश्किल है. तकरीबन बीजेपी के प्रत्येक प्रत्याशी के लिए कुछ के वीडियो बाहर आ रहे हैं कुछ के नहीं आ पा रहे. मगर 28 जगहों में से 25 जगहों पर पार्टी बदल कर चुनाव लड़ रहे मंत्री हों या पूर्व विधायक सभी को ऐसी ही परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जब उनको अपने साथ-साथ चले दोस्तों मित्रों, कार्यकर्ताओं को समझाना पड़ रहा है कि जैसे पहले साथ रहे अब फिर साथ रहो, मेरा साथ दो और इतने सारे अपनों को समझाने के बाद फिर आती है जनता को समझाने की बारी कि मुझे वोट क्यों दें. सच तो यह है कि वोट मांगने में अब आंसू आ रहे हैं.


कमलनाथ सरकार से लेकर शिवराज सरकार में पूर्व मंत्री रहे गोविंद सिंह राजपूत का ऐसा ही वीडियो कुछ दिन पहले सामने आया था जब वो एक सार्वजनिक सभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने उनको विनम्रता की मूर्ति बताकर उनको अपना आदर्श बताते हैं और आंखों में आंसू भरकर कहते हैं कि जाने अंजाने में हुई भूलों के लिए कार्यकर्ता और जनता उनको माफ करें. अब वह हमेशा अपनी जनता और कार्यकर्ता के सुख-दुख में खड़े रहेंगे. गोविंद सरीखे विशाल कदकाठी के कद्दावर व्यक्ति को इस तरह मंच पर रोता देख सामने बैठी जनता ने ना जाने क्या सोचा होगा मगर सच तो ये है कि इस वीडियो ने दूर बैठे लोगों को बता दिया कि ये चुनाव कितना कठिन है.


इस चुनाव में एक और रोना-धोना राष्ट्रीय खबर बना वो था कांग्रेस ओर बीजेपी सरकार में मंत्री रहीं इमरती देवी का. डबरा से चौथी बार चुनाव लड़ रहीं इमरती देवी के खिलाफ प्रचार को गये कमलनाथ ने उनको ‘आइटम’ कह दिया और फिर क्या था ये शब्द जिसका हिंदी अनुवाद वस्तु, विषय, मद या नमूना होता है राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया. बीजेपी इस शब्द को ले उड़ी और इसे कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय शर्म का प्रतीक बना दिया.


इमरती देवी ने भी रो-रोकर इसे मुद्दा बना दिया. रही सही कसर इमरती देवी के नेता महाराज साहब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरी कर दी, जब एक सभा में हाथ जोड़कर खड़ी इमरती को उन्होंने अचानक कंधे से लगा लिया और उनके अपमान को डबरा की जनता का अपमान बताया. इमरती देवी ने आंखों में आंसू भर लिए और साड़ी से पोंछने लगीं.


ऐसा नहीं है कि आंसू से वोट लेने के तरीके का इस्तेमाल सिर्फ बीजेपी में कांग्रेस से आए नेता ही कर रहे. अभी मेहगांव से चुनाव में उतरे कांग्रेस के युवा प्रत्याशी हेमंत का भाषण सुन रहा था जिसमें वो अपने पिता सत्यदेव कटारे का जिक्र कर रहे थे और अपने सामने की जनता से वोट के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि देने की बात कर रहे थे और कांग्रेस ने दावा किया कि इस सभा के दौरान हेमंत के पक्ष में प्रचार करने आये कमलनाथ भी भावुक हो उठे उनकी आंखों में भी पानी आ गया.


इंदौर से हॉटलाइन चलाने वाले हमारे पत्रकार मित्र राजा शर्मा ने कुछ दिनों पहले बता दिया कि गृहों के ऐसे योग ऐसे बन रहे हैं कि ये चुनाव अब तथ्यों नहीं भावनात्मक मुद्दों पर आएगा और चुनाव भावनात्मक मुद्दों को उभारने के लिए आंसुओं पर आ गया. कहीं पश्चाताप के आंसू आ रहे हैं तो कहीं शोक और दुख के. हैरानी यह है कि खुशियों के आंसू कहीं नहीं आ रहे. वो दिन चुनावी राजनीति में कभी आयेगा कि जब नेता मंच से कहे कि देखो मैंने जनता के लिये ये सब किया और आप सबकी जिंदगी बदल गयी. यदि नेता की बातों में सच्चाई होगी ओर वाकई जिंदगी बदली होगी तो लोगों की आंखों से खुशी के आंसू निकलेंगे, पश्चाताप और अविश्वास के नहीं.


साहिर लुधियानवी साहब को यहां याद आए.


वो सुबह कभी तो आएगी


बीतेंगे कभी तो दिन आखिर ये भूख और बेकारी के


टूटेंगे कभी तो बुत आखिर दौलत की इजारादारी के


जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी


वो सुबह कभी तो आएगी


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)