इंदौर में हुई 40 मौतें हादसा नहीं,बल्कि लापरवाही की सबसे बड़ी मिसाल है !

मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में रामनवमी के मौके पर एक बावड़ी में गिरने से जो 40 निर्दोष जानें चली गईं, उसे महज़ एक हादसा बताकर प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार जिस तरह अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है, उसे लोगों की आंखों में धूल झोंकना ही माना जायेगा. शुरुआती रिपोर्ट से साफ हो गया है कि वह एक हादसा नहीं बल्कि धार्मिक आस्था के नाम पर मंदिर की बावड़ी पर किया गया ऐसा खतरनाक अवैध निर्माण था,जिसे स्थानीय नेताओं की शह पर अंजाम दिया गया.
लिहाजा, इसे "एक्ट ऑफ गॉड" बताकर स्थानीय प्रशासन और सरकार के मंत्री 40 मौतों के कलंक के उस दाग को धो नहीं सकते,जिसके लिए मुख्य रूप से वही जिम्मेदार हैं. सरकार ने जांच शुरू कर दी है और कुछ अफसरों को सस्पेंड करने की लीपापोती भी हो गई है, लेकिन सवाल उठता है कि नगर निगम के नोटिस देने के बावजूद सरकार में बैठे किस मंत्री या सत्तारुढ़ पार्टी के किस नेता ने निगम के आला अफसरों को खामोश रहने का जुबानी निर्देश देते हुए उस अवैध निर्माण को बदस्तूर होने दिया.
सरकारी जांच में शायद ही इसका खुलासा हो पाए. लिहाज़ा, प्रशासन के ईमानदारों अफसरों का पहला फ़र्ज़ बनता है कि वे उस मंत्री-नेता का नाम सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटाएं और उन 40 बेकसूर लोगों के परिवारों के साथ इतना इंसाफ तो कर दें कि भविष्य में कोई नेता ऐसे निर्माण को शह देने की जुर्रत न कर सकें. बेलेश्वर महादेव मंदिर में हुई इस दर्दनाक घटना के एक दिन बाद शुक्रवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पीड़ित परिवारों व घायलों से मिलने इंदौर पहुंचे थे,लेकिन उन्हें लोगों के जिस जबरदस्त आक्रोश का सामना करना पड़ा. उससे उन्हें भी इतना तो अहसास हो ही गया होगा कि ये 40 मौतें किसी भगवान की मर्जी नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही की सबसे बड़ी मिसाल है.
कहते हैं कि किसी मौत पर सियासत नहीं होनी चाहिए, लेकिन राजनीतिक दलों खासकर विपक्ष के लिए ऐसी घटनाएं उनकी सियासी जमीन मजबूत करने का औजार बन जाती है. मध्यप्रदेश में आगामी नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले हुई इस दर्दनाक घटना ने मुख्य विपक्षी कांग्रेस को शिवराज सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ा हथियार दे दिया है. जाहिर है कि विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा भी बनायेगा और इंदौर के पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को कटघरे में खड़ा करने के बहाने सरकार पर भी हमला बोलेगा.
हालांकि इन मौतों की बड़ी वजह तो बावड़ी पर हुआ अवैध निर्माण ही था, लेकिन हादसा हो जाने के बाद बचाव अभियान के लिए पुलिस-प्रशासन की तरफ से जो लापरवाही बरती गई, वह भी कम निंदनीय नहीं है. बताया गया है कि ये घटना सुबह करीब साढ़े 11 बजे हुई, लेकिन जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे लोगों को बचाने के लिए पुलिस और नगर निगम के दल ने डेढ़ घंटे बाद करीब एक बजे राहत कार्य शुरू किया. उससे पहले आसपास के रहवासी ज्यादातर घायलों को निकाल चुके थे. प्रशासन, पुलिस और नगर निगम की यह चूक बचाव और राहत कार्य पर भारी पड़ी. कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक प्रशासन के अफसर इसे हलके में लेते रहे और शाम तक नगर निगम और पुलिस के भरोसे ही बचाव कार्य चलता रहा लेकिन जब लापता लोगों के परिजनों का आक्रोश बढ़ा,तब शाम अफसरों ने हाथ ऊंचे कर सेना को बुलाने का फैसला लिया.
केंद्र में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार के दौरान जब केंद्रीय स्तर पर NDRF और राज्य स्तर पर SDRF का गठन किया गया था, तब देश के सभी आईएएस-अफसरों को आवश्यक निर्देश दिया गया था कि अपने शहर में कोई भी आपदा की स्थिति आने पर अपने स्तर पर बचाव-कार्य शुरू करते ही सबसे पहले SDRF को सूचित करें क्योंकि उस टीम को घटनास्थल तक पहुंचने में वक़्त लग सकता है. अब सवाल उठता है कि इंदौर के कलेक्टर-कमिश्नर ने उन्हें वक़्त पर सूचना क्यों नहीं दी और आखिर वे मौतों का आंकड़ा बढ़ने का इंतज़ार ही क्यों कर रहे थे?
घटना के चश्मदीदों के मुताबिक सेना और एसडीआरएफ की टीम शाम को घटनास्थल पर पहुंची.जबकि Military Headquarters Of War यानी महू की दूरी इंदौर के घटनास्थल से महज़ 35 किलोमीटर भी नहीं है, लेकिन प्रशासनिक अफसरों ने शाम को सेना से मदद मांगी. पुलिस और नगर निगम की टीम के आने से पहले मंदिर के आसपास के जो रहवासी घायलों को निकाल रहे थे, उन्हें भी पुलिसवालों ने सख्ती दिखाते हुए बावड़ी के आसपास से बाहर भगा दिया. बड़ी हैरानी तो ये है कि प्रशासन के पास बचाव की कोई प्लानिंग नहीं थी.
स्थानीय स्तर पर जो बचाव अभियान चला भी तो उसे लीड करने के लिए कोई आला अनुभवी अफसर तक वहां मौजूद नहीं था.जिन्हें जो समझ आ रहा था,वे अपने हिसाब से लोगों को बचाने की कोशिश कर रहे थे.हालत ये थी कि नगर निगम के कर्मचारी बावड़ी मे मोटी रस्सियां डालकर उन्हें हिलाते रहे,ताकि लोग उसे पकड़कर ऊपर आ जाएं. यानी,राहत-कार्य में भी हर कदम पर लापरवाही बरती गई.यहां तक कि लापता लोगों की जानकारी के लिए कंट्रोल रूम बनाने का निर्णय भी रात को लिया गया. कहते हैं कि हर हादसा सरकार को कोई सबक देकर जाता है लेकिन यहां तो धार्मिक आस्था के नाम पर सब कुछ जानते -समझते हुए 40 लोगों को "मौत की बावड़ी" में धकेल दिया गया.सरकार के लिए अपनी ही लापरवाही का इससे बड़ा सबक भला और क्या हो सकता है?
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