महाकुंभ : सनातन संस्कृति की अमूर्त विरासत, जहां बहती है अमृत की अलौकिक धारा

समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को हासिल करने के लिए हुआ देवासुर संघर्ष भले अमूर्त हो, संघर्ष के इस पौराणिक आख्यान को मिथक बताकर इतिहास भळे अपना पल्ला झाड़ ले या विज्ञान इसे कोरी कल्पना बताकर किनारा कर ले, लेकिन प्रयागराज की पावन धरा पर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में जिसने डुबकी लगाई है, उसने अमृत की अमूर्त धारा को मूर्तमान ऊर्जा के रूप में महसूस किया है. अमृत की इस अलौकिक धारा ने यहां आए हर व्यक्ति के तन मन को ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा से अभिषिक्त किया है, जो शब्दों से परे है और जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है.
जात-पांत, लिंग-धर्म, रंग-वर्ण और ऊंच-नीच के भेदभाव से परे मानवता का यह विराट संगम सनातन धर्म की अद्भुत समावेशी संस्कृति का जीता जागता प्रमाण है. देश-दुनिया के कोने कोने से श्रद्धालु यहां आ रहे हैं, त्रिवेणी की पावन धारा में स्नान कर पुण्य लाभ कर रहे हैं और प्रयागराज की अलौकिक दिव्यता के साक्षी बन रहे हैं.
लगभग डेढ महीने के महाकुंभ में 65 करोड़ से अधिक लोगों का प्रयागराज पहुंचना और पावन संगम में स्नान करना, इसे मानवता के सबसे बड़े आयोजन की उपाधि से तो विभूषित करता ही है, साथ ही सनातनी आस्था को एक ऐसी उंचाई प्रदान करता है, जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में ढूंढने से नहीं मिलेगी.
हां, यह बात जरूर है कि मानवता के इस विराट संगम के आयोजन के लिए जिस तरह का व्यापक इंतजाम अपेक्षित है, उसमें कमी दिख रही है. बदलती परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक इस पौराणिक शहर में आधारभूत ढांचे का विकास नहीं हो पाया है. करोड़ों श्रद्धालुओं के नदी तट तक पहुंचने के लिए अलग से कोई कॉरिडोर नहीं बनाया गया है. पुरानी सड़कें ही तीर्थ यात्रियों के विराट जमघट का बोझ ढोने को मजबूर हैं. इसके अलावा रेल परिवहन में भी सुधार की सख्त जरूरत है.
लेकिन इस टिप्पणी का निहितार्थ, मौजूदा इंतजाम पर अंगुली उठाना कतई नहीं है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार ने अपने स्तर पर उम्दा इंतजाम किए हैं. तभी करोड़ों तीर्थ यात्रियों के संगम स्नान का सपना पूरा हो पाया है. इसके लिए सरकार को साधुवाद दिया जाना चाहिए.
इस महाकुंभ के दौरान कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनायें भी घटीं. जिससे कई तीर्थयात्री अकाल काल कवलित हो गए. ये दुर्घटनायें हमारे नीति निर्माताओं के लिए वेक अप कॉल होनी चाहिए. प्रयागराज जैसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का सुनियोजित और दूरदर्शी विकास वक्त की जरूरत है. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में जब भी भव्य और दिव्य महाकुंभ का आयोजन हो, तो इसकी भव्यता और दिव्यता का अलौकिक आलोक श्रद्धालुओं के लौकिक जीवन को भी आलोकित करे.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस

