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Opinion: आस्था, अव्यवस्था और राजनीति का 'संगम' बन गया प्रयागराज का महाकुंभ मेला

इस साल 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति के पावन अवसर पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत हुई. इस महापर्व में अब तक 52 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगा चुके हैं. श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती भीड़ को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार कुंभ समापन की तिथि आगे बढ़ाकर मार्च के पहले सप्ताह तक कर दी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे 124 साल बाद आया महाकुंभ बताते हुए इसकी व्यापक ब्रांडिंग की, जिसका असर यह हुआ कि अनुमान से कहीं अधिक लोग यहां पहुंच गए.

श्रद्धालुओं की आस्था: 'जैसे नया जीवन मिल गया हो!'

पंजाब से आए श्रद्धालु राम किशन शर्मा (52) की आंखों में श्रद्धा और उत्साह छलक रहा था. उन्होंने कहा: "मैं पहली बार महाकुंभ में आया हूँ. संगम में डुबकी लगाते ही ऐसा लगा जैसे नया जीवन मिल गया हो. पूरी जिंदगी के पाप धुल गए. सरकार ने इतनी शानदार व्यवस्था की है कि बस, शब्द नहीं हैं!"

ऐसे ही कई श्रद्धालु अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, लेकिन इस अपार भीड़ के कारण व्यवस्थाएं भी चरमरा गई हैं.

भयावह भगदड़ और मौतें

श्रद्धालुओं की संख्या इतनी अधिक हो गई कि प्रशासन के इंतजाम नाकाफी साबित हुए. 3 फरवरी 2025 को प्रयागराज संगम तट पर  श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 35 लोगों की मौत हो गई. हालांकि, चश्मदीदों के अनुसार यह संख्या कई गुना अधिक हो सकती है.
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रयागराज के डीआईजी आर.के. मिश्रा ने घटना पर बयान दिया:

"कुंभ मेले में सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता थी, लेकिन अचानक श्रद्धालुओं का भारी दबाव बढ़ गया. कुछ  श्रद्धालु संगम किनारे, ज़्यादा देर तक रुकने की कोशिश कर रहे थे, जिससे स्थिति बेकाबू हो गई. हमने हालात को नियंत्रण में लाने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किया है."

इसके अलावा, मेले में चार बार अलग-अलग शिविरों में आग लगने की घटनाएँ सामने आईं, जिससे कई संतों और श्रद्धालुओं को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.

यात्रा की कठिनाइयाँ और अव्यवस्था

दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर घंटों इंतजार करने को मजबूर हैं. 15 फरवरी की रात दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी भगदड़ मचने से कम से कम 17 लोगों की मौत हो गई. होटल, धर्मशालाएं और सार्वजनिक विश्राम स्थल खचाखच भरे हैं. कई लोगों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ रही है.

राजनीतिकरण का आरोप: क्या बीजेपी ने कुंभ को प्रचार मंच बनाया?

विपक्षी दलों ने इस महाकुंभ को बीजेपी सरकार का एक राजनीतिक प्रचार अभियान करार दिया है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा: "बीजेपी सरकार ने कुंभ को एक धार्मिक आयोजन से ज्यादा चुनावी प्रचार का हथियार बना लिया है. संगम में स्नान को इस तरह प्रचारित किया गया जैसे यह कोई अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य हो. लोगों को भारी संख्या में बुलाकर उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया. यही वजह है कि इतनी त्रासद घटनाएं हो रही हैं."

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भी बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा: "धर्म और आस्था का सम्मान हर सरकार को करना चाहिए, लेकिन इसे वोट बैंक की राजनीति में बदल देना अनुचित है. करोड़ों श्रद्धालुओं को न्योता देने से पहले उनके लिए पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था क्यों नहीं की गई?"

कुंभ का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में चार प्रमुख स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है:

1. प्रयागराज (गंगा-यमुना-सरस्वती संगम)
2. हरिद्वार (गंगा नदी)
3. नासिक-त्र्यंबकेश्वर (गोदावरी नदी)
4. उज्जैन (शिप्रा नदी)

इसके अलावा, 2022 में 700 वर्षों के बाद बंगाल के बांसबेरिया (हुगली) में भी कुंभ मेले का आयोजन किया गया था. देश के अन्य हिस्सों में माघ मेला और मकर मेला जैसे कई छोटे-मोटे धार्मिक स्नान पर्व होते हैं. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में महामहम मेला (कुंभकोणम) हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है और इसे दक्षिण भारत का कुंभ कहा जाता है. इसी तरह, कुरुक्षेत्र, सोनीपत और नेपाल के पनौती में भी कुंभ से मिलते-जुलते मेले होते हैं.

कुंभ की ऐतिहासिक उत्पत्ति: आधुनिक कुंभ की शुरुआत कब हुई?

आज जिस रूप में कुंभ मेला मनाया जाता है, उसके ऐतिहासिक प्रमाण 19वीं सदी के बाद ही मिलते हैं. पहला संगठित कुंभ मेला ब्रिटिश शासन में 1870 में हुआ. 8वीं सदी के संत आदि शंकराचार्य को इसका संस्थापक माना जाता है, जिन्होंने हिंदू मठों को मजबूत करने के लिए बड़े धार्मिक सम्मेलनों की शुरुआत की. माघ मेला का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है, लेकिन "कुंभ मेला" शब्द आधुनिक काल में ही प्रचलित हुआ. 1857 की क्रांति के बाद, ब्रिटिश शासन ने इसे पुनर्गठित किया, जिससे यह संगठित धार्मिक आयोजन बना.

कुंभ का महत्व और भविष्य

हर 12 वर्षों में आयोजित होने वाला कुंभ मेला न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. यह न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि बड़ी संख्या में व्यापार, शिक्षा, धार्मिक प्रवचन और मनोरंजन का संगम भी होता है.

2019 के प्रयागराज कुंभ मेले में 20 करोड़ से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए थे, जिसमें एक ही दिन में 5 करोड़ से ज्यादा लोगों ने संगम में स्नान किया था. यह मेला दुनिया के सबसे बड़े शांतिपूर्ण जनसमूहों में से एक माना जाता है.

निष्कर्ष:

महाकुंभ धर्म, राजनीति और प्रशासनिक प्रबंधन की परीक्षा भी है. श्रद्धालुओं के लिए यह मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति का अवसर होता है, तो सरकारों के लिए बेहतर प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती.

इस वर्ष के कुंभ में जनसैलाब, अव्यवस्था, हादसे और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप सभी देखने को मिले हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में कुंभ आयोजन और भी व्यवस्थित और सुरक्षित हो पाएगा या नहीं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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