भिवानी में एक जली हुई गाड़ी के अंदर दो कंकाल बरामद हुए. दोनों जली हुई लाश की पहचान राजस्थान के भरतपुर जिले के जुनैद और निसार के तौर पर हुई. पुलिस अपनी जांच कर रही है, लेकिन इस बीच इस पूरे मामले को लेकर वीएचपी, बजरंग दल और अन्य हिन्दू संगठनों की तरफ से महापंचायत का बुलाया जाना बेहद दुखद है. मैं नहीं जानता कि इसे राष्ट्रवाद कहा भी जा सकता है कि नहीं और ये कहीं से भी राष्ट्रवाद है ही नहीं. मैं इस पर आपत्ति करता हूं कि ये कोई राष्ट्रवाद नहीं है. अगर मैं धार्मिक दृष्टि से बोलूं तो ये सीधे-सीधे अधर्म है और ये लोगों को बरगलाकर, भड़काकर धर्म का समर्थन करने का काम किया गया है.


दूसरा प्रशासनिक दृष्टि से बात करूं तो ये सीधे-सीधे पुलिस पर दबाव बनाने की और पुलिस को धमकी देने का मामला बनता है और वो भी असंदिग्ध शब्दों में धमकी देने का मामला बनता है.


तीसरी बात आप इसे राजनीतिक दृष्टि से देखें तो पता चलता है कि इससे किन राजनीतिक दलों और शक्तियों को लाभ होता है और वो तो ठीक है कि हर दल चाहे अपनी जाति का मामला हो या धर्म का मामला हो फायदा उठाने के लिए इस तरह का काम करते हैं. लेकिन इसके साथ विश्व हिंदू परिषद के लोग जुड़े और वे इन लोगों को अपना लें और बजरंग दल जो विश्व हिंदू परिषद का और संघ से जुड़ा संगठन माना जाता है, उसके ये कार्यकर्ता निकले. गौ रक्षा के नाम पर ये हत्यारे हैं, तो ये तो उन संगठनों के पदाधिकारियों के ऊपर भी बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है कि आखिर वे क्या कर रहे हैं? क्या बजरंग दल को एक हत्यारों और गुंडों का संगठन बनाया जाएगा. इससे क्या सिद्ध होगा मैं ये नहीं जानता और इससे धर्म का भला कैसे होगा ये नहीं जानता. मुझे तो ये धर्म कहीं से दिखता ही नहीं है और इसे धर्म कहने में भी संकोच हो रहा है. ये न तो राष्ट्रवाद है और न ही धर्म है.


ये नहीं हो सकता राष्ट्रवाद


ये शुद्ध पाप है, अधर्म है और शुद्ध अपराध है. अपराधियों को बचाने के लिए दबाव बनाना, समूह जुटाना, लोगों को इकट्ठा करना और उसपर भाषण करवाना वो भी एक अपराध है और उसके लिए भी कानून है. ये मैसेज तो एकदम साफ है कि भाई हमारे पास इतनी ताकत है और हमारे पीछे एक और बड़ी ताकत खड़ी है कि हम पुलिस की भी पैर तोड़ देने की हिम्मत रखते हैं. ये सीधी धमकी है कि अगर आप यहां आएंगे तो हम आपके पैर तोड़ देंगे. मैं तो ये समझता हूं कि जो लोग दूसरे प्रदेश की पुलिस को धमकी दे सकते हैं तो हरियाणा पुलिस को भी ये सोचना चाहिए कि अगर कभी इन लोगों का दिमाग पलटा किसी बात पर तो वो तो उनके भी हाथ-पैर तोड़ने की धमकी देंगे या हत्या की धमकी दे सकते हैं. कुछ भी धमकी दे सकते हैं. ये इतनी गंभीर बात है कि इतने बड़े समूह में ये हिम्मत कैसे आई कि वो पुलिस को ऐसी धमकी दे.


ये कानून व्यवस्था का मजाक है और हम जिसे पुलिस का इकबाल कहते हैं या पुलिस का जो एक नैतिक बल होता है उसका मजाक है. मैं समझता हूं कि उसमें पढ़े-लिखे लोग भी शामिल हैं. उसमें एक वकील साहब थे जो मेरे परिचित रहे हैं वो भी उसका नेतृत्व कर रहे थे मैंने देखा उनको तो ये सवाल उठता है कि इससे हमारे देश की क्या छवि बन रही है. इससे हिंदू धर्म की क्या छवि बन रही है. गौ रक्षा के नाम पर नर बलि दी जाएगी क्या और अद्भुत बात ये है कि अब ये दो प्रदेशों की पुलिस-प्रशासनों और राजनीतिक सतारूढ़ दलों की लड़ाई बन गई है. जो दो लोग मारे गए हैं अब उनकी चर्चा भी कम हो रही है. अब पुलिस वाले एक-दूसरे पर एफआईआर करा रहे हैं. अब इस प्रकरण में जनता को उलझा दिया जाएगा. लेकिन इस केस से तो अब ये साफ हो गया है कि जलाकर मारने की इस जघन्य हत्याकांड की जांच निश्चित रुप से प्रभावित होगी. 


पुलिस जांच होगी प्रभावित


ये बात तो निकल ही गई है कि वे तो हरियाणा पुलिस के मुखबिर थे. प्रदेश में जाते थे साथ-साथ. इससे उनकी भी छवि धूमिल होगी और अगर वे कोर्ट में जाते हैं और उन्हें सजा होती है तो इससे तो पुलिस के ऊपर भी सवाल खड़ा होगा. वो तो उनको बचाने की कोशिश करेगी. ऐसे में हरियाणा पुलिस से हम न्याय कि अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि वो ईमानदारी से जांच करेगी क्योंकि ये तो अब लगभग असंभव है. बिल्कुल साफ-साफ उन्हें सार्वजनिक बल मिल रहा है और इन लोगो के पक्ष में विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बकायदा बयान दे रहे हैं. इससे ज्यादा खुला समर्थन और क्या हो सकता है. मैं नहीं जानता कि ये संगठन अपनी क्या छवि बनाना चाहते हैं या इनको समाज गंभीरता से ले या न ले. उनको एक धर्म के प्रति गंभीर और धर्म पूर्ण आचरण के प्रति गंभीर संगठन के रूप में देखे या उनको अपराधियों, गुडों और हत्यारों के पीछे खड़ी होकर उनको शाबाशी देने वाली या उनको प्रोत्साहित करने वाली संगठन के रूप में देखे, ये उनको तय करना है.


देखिये, समाज को तो धार्मिक आधार पर इतने गहराई तक बांटा जा चुका है कि जिसमें एक-एक पक्ष के अंदर मुस्लिम घृणा भर दी गई है और वो ऐसी चीजों से खुश होता है. उससे इन लोगों को इन हरकतों को और इनके पीछे जो भी लोग हैं उनसे इनको ताकत मिलती है. मैं समझता हूं कि अब भी अगर हम हिंदू समाज की बात करें तो हिंदू समाज में अब भी बहुमत ऐसा नहीं है जो ऐसी घटनाओं पर खुश हो या उससे उसको बुरा नहीं लगे. निश्चित रूप से समाज आहत होता है उसको बुरा लगता है. ये दूसरी बात है कि आज उसकी हिम्मत नहीं होती खुलकर बोलने की.


लेकिन कुल मिलाकर कहें तो ये लोग जिस महान सनातन धर्म के श्रेष्ठता और उसके नारे बनाते हैं उसकी श्रेष्ठता से बिल्कुल उल्टा काम कर रहे हैं. धर्म आचरण की चीज है, नारों की चीज नहीं है. ये लोग अपने जिस धर्म को बचाने के नाम पर, उसको बढ़ाने के नाम पर आप जो ये अत्याचार कर रहे हैं तो इससे अपने धर्म का ही नुकसान कर रहे हैं. देश को हिंदु-मुस्लिम में बांट कर देश का कैसे भला हो सकता है. क्या ये देश सुलगने लगे, गृहयुद्ध हो जाए, हिंदू-मुसलमान को जहां मौका मिले वो झगड़ा करने लगे, मारपीट करने लगे. क्या ये देश के हित में है. ये इनको सोचना चाहिए.


भविष्य में हो सकते हैं गंभीर परिणाम


पहली बात तो ये कि इन संगठनों के जो शीर्ष नेता हैं या अधिकारी हैं उनको ये सोचना होगा कि इन हरकतों से जो दूरगामी परिणाम निकलेंगे उस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. क्या वो हमारे हिंदू समाज के हित में है. क्या वो भारत के हित में है. ये दो प्रश्न उनके सामने होने चाहिए. क्योंकि वो विश्व हिंदू परिषद हैं, बजरंग दल हैं वो भी अपने को हिंदू हितों का संरक्षक कहता है तो उनको इस पर विचार करना चाहिए कि हत्यारों का साथ देने से हिंदू धर्म, हिंदुत्व और हिंदू हित कैसे सधेंगे. दूसरी बात ये कि कानून व्यवस्था से जुड़े जो लोग हैं, पुलिस के जो उच्चाधिकारी हैं उनको भी ये विचार करना पड़ेगा कि आखिर वे नागरिकों को क्या संदेश दे रहे हैं कि जब वो ताकतवर हो जाएं या हजार लोग एक जगह इकट्ठा हो जाए तो वो फिर पुलिस को भी चुनौती दे सकते हैं. क्या वे इस तरह की पुलिस व्यवस्था को बनाना चाहते हैं. इसके अलावा देश और प्रदेश के नियामकों को जो शासन कर रहे हैं उनको सोचना पड़ेगा कि इससे देश और प्रदेश के भीतर और पूरी दुनिया के भीतर भारत की छवि कैसी बन रही है.


इससे फायदा होगा या नुकसान होगा. आज भारत जिस विकास के मार्ग पर अग्रसर है और महाशक्ति उसे देखना चाहते हैं और आप ये भी चाहते हैं कि पूरे विश्व में भारत को सम्मान मिले आप विश्वगुरु की बात करते हैं लेकिन इस तरह की हरकतें और इनके पीछे ऐसी ताकतें जो खुलेआम घूम रही हैं तो इससे देश की छवि बेहतर होगी क्या. संसार में हमारी इज्जत बढ़ेगी या नुकसान होगा. इन तीनों स्तर के लोगों के लिए तीन सवाल हैं. मैं समझता हूं कि कोई भी गंभीरता से विचार करेगा तो उसको जवाब मिल जाएगा.


मैं एक बात ये भी कहना चाहूंगा कि जो भी नागरिक वो कोई भी हों, इस बात पर अगर इससे सहमत हैं या इस बात को गलत मानते हैं ये जो हो रहा है जिस तरह से हत्याएं हुईं और जिस तरह से उनका बचाव किया जा रहा है, अगर वे इसको गलत मानते हैं तो कृप्या वो खुलकर इसका विरोध करें. इससे असहमति प्रकट करें. अपनी असहमति और विरोध को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करें ताकि इन लोगों को लगे कि हमारे साथ बहुमत नहीं है. शरीफ लोगों के साथ समस्या हो जाती है कि वे डरते हैं और गुंडे से हर आदमी को डर लगता है. सबको डर लगता है कि कल को हमारे घर पर आकर ऐसी की तैसी करने लगेंगे तो हमको कौन बचाएगा, हम क्या करेंगे. इस डर को जबतक हम नहीं छोड़ेंगे नहीं तो ये बात साफ है कि डरा हुआ नागरिक एक मजबूत देश नहीं बना सकता है. अंत में नागरिकों ये फैसला करना है कि वे धर्म के नाम पर इस गुंडागर्दी को कब तक बर्दाश्त करेंगे.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.ये आर्टिकल राहुल देव से बातचीत पर आधारित है.)