महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: बीजेपी-शिवसेना गठबंधन मजबूत स्थिति में
बीजेपी-शिवसेना गठबंधन बड़े भाई-छोटे भाई के रिश्तों वाली अपनी असाध्य बीमारी से जूझ रहा था. लेकिन सुनते हैं कि सीएम देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना नेता व उद्योग मंत्री सुभाष देसाई के बीच गुरुवार की रात चली मैराथन बैठक में अविश्सनीय ढंग से तय हो गया
नई दिल्लीः भारत निर्वाचन आयोग ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 का बिगुल फूंक दिया है. राज्य में 21 अक्तूबर को एक ही चरण में मतदान होगा और 24 अक्तूबर को उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला सुना दिया जाएगा. इसका एक अर्थ यह भी है कि विजयी उम्मीदवारों और सत्ता प्राप्त करने वाले गठबंधन के लिए इस साल 27 अक्तूबर को मनाई जाने वाली दीपावली की खुशियां हजारों गुना बढ़ जाएंगी. इसी के साथ राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. मौजूदा फडणवीस सरकार अब न तो कोई नई घोषणा कर सकती है, न ही कोई नई योजना शुरू करके मतदाताओं को लुभा सकती है. उनकी सरकार का कार्यकाल 9 नवंबर 2019 को खत्म हो जाएगा.
चुनाव कार्यक्रम भले ही आज घोषित हुआ है लेकिन राज्य के सभी राजनीतिक दल और नेता काफी पहले से अपने-अपने चुनावी समीकरण बनाए बैठे थे. इन समीकरणों को अमली जामा पहनाने के लिए महाराष्ट्र में इस्तीफों, दलबदल, तोड़फोड़, गुटबाजी, गठबंधनों, उम्मीदवारों की छंटनी, मान-मनौव्वल और टिकट बांटने-काटने की तिकड़ तूफानी गति से चल रही हैं. कांग्रेस और एनसीपी के पीछे हमेशा खड़े रहने वाले राज्य के मराठा राजनीतिक खानदानों के कई दिग्गजों ने भगवा पार्टियों की सदस्यता ले ली है और भारी असंतोष के बीच बीजेपी-शिवसेना में सीटों का समझौता हो जाने की भी अपुष्ट खबर है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे अभी चुनाव लड़ने को लेकर ऊहापोह की स्थिति में हैं जबकि उनके तमाम वरिष्ठ सहयोगी चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं. तेजी से घटते चुनावी घटनाक्रम के बीच इतना तो तय है कि ये विधानसभा चुनाव तीखे तेवरों के साथ लड़े जाएंगे. हार-जीत में क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ अनुच्छेद 370 हटाने तथा चौपट होती अर्थव्यवस्था जैसे राष्ट्रीय मुद्दे भी अहम भूमिका निभाएंगे.
नब्बे के दशक में महाराष्ट्र से कांग्रेस का दबदबा समाप्त होने के बाद सूबे की राजनीति दो प्रमुख गठबंधनों के इर्द-गिर्द घूमती रही. पहला एनसीपी+कांग्रेस और दूसरा बीजेपी+शिवसेना का गठबंधन. हालांकि सीटों के बंटवारे से असंतुष्ट होकर पिछले विधानसभा चुनाव में ये तमाम धड़े अगल-अलग चुनाव लड़े थे और बीजेपी 122 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 63, कांग्रेस को 42, एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी. कोई भी पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए तमाम मान-मनौव्वल और उठापटक के बाद सरकार बनाने के लिए बीजेपी और शिवसेना को साथ आना ही पड़ा. एनसीपी और कांग्रेस के कुल मिलाकर इतने विधायक ही नहीं थे कि सरकार बनाने की सोच भी सकें. कांग्रेस पार्टी के लिए इस उस समय बिल्ली के भाग से छींका टूटने की भी कोई संभावना नहीं बन पाई थी.
चुनाव से पहले सबको समझ में आ गया है कि अलग-अलग चुनाव लड़कर महाराष्ट्र की सत्ता फिलहाल किसी एक दल को नहीं मिल सकती और अप्रत्याशित ढंग से वोटों का बंटवारा होने की स्थिति में दोनों गठबंधनों को उम्मीद से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. मराठाओं का मजबूत आधार रखने के बावजूद बीजेपी से नाता तोड़कर अकेले दम पर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना बीजेपी से लगभग आधी सीटें ही जीत सकी थी.
शरद पवार को गठबंधन की कीमत सबसे पहले समझ में आई. यही वजह है कि तारीखें घोषित होने से काफी पहले ही दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ बातचीत करके शरद पवार ने समझौता कर लिया था कि दोनों पार्टियां 125-125 सीटों चुनाव लड़ेंगी और 38 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी जाएंगी. लोकसभा चुनाव के बाद से ही एनसीपी में ऐतिहासिक भगदड़ मची हुई है. एनसीपी और कांग्रेस के कई हाई-प्रोफाइल नेताओं ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी या शिवसेना की शरण ले ली. हालत ये हो गई है कि अपने जिन करीबियों को लेकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी की बुनियाद रखी थी, उनमें से ज्यादातर नेता आज उनका साथ छोड़कर जा चुके हैं.
विजय सिंह मोहिते-पाटिल, पद्मसिंह पाटिल और सचिन अहिर एनसीपी से काफी पहले नाता तोड़ चुके थे. इनके अलावा जिन एनसीपी नेताओं ने पार्टी छोड़ी है उनमें पूर्व मंत्री मधुकर राव पिचड़, उनके बेटे वैभव पिचड़, एनसीपी की पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष चित्रा वाघ, शिवेंद्रराजे भोसले, रणजीत सिंह मोहिते-पाटिल, धनंजय महाडिक, जयदत्त क्षीरसागर, तानाजी सावंत, राणा जगजीत सिंह पाटिल जैसे बड़े नाम बीजेपी-शिवसेना में जा चुके हैं.
छत्रपति शिवाजी के वंशज और एनसीपी सांसद उदयनराजे भोसले, नवी मुंबई के क्षत्रप गणेश नाइक, विधायक अवधूत तटकरे और छह बार के विधायक दिलीप सोपल भी हाल ही में एनसीपी छोड़ चुके हैं. कई नेताओं को शिवसेना-बीजेपी के ‘ऑपरेटरों’ से रिकॉर्डेड संदेश सुनाई दे रहा है कि अभी प्रतीक्षा करें, आप कतार में हैं. कांग्रेस के बड़े नेता हर्षवर्धन पाटिल, विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे राधाकृष्ण विखे पाटिल और पूर्व मंत्री अब्दुल सत्तार के बाद अब उत्तर भारतीय कांग्रेसी दिग्गज कृपाशंकर सिंह ने भी पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है.
मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमिटी में जो घमासान मचा हुआ है उससे संदेश स्पष्ट है कि इन्हें हराने के लिए किसी विपक्षी पार्टी की जरूरत ही नहीं है. लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से बॉलीवुड ऐक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर जुड़ी थीं और उन्होंने एक मंजे हुए नेता के रूप में चुनाव भी लड़ा था लेकिन अब वह गुटबाजी से तंग आकर कांग्रेस से किनारा कर चुकी हैं. मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा और पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम के बीच आरोप-प्रत्यारोप व गुटबाजी चरम पर है. उर्मिला ने निरूपम के विश्वसनीय सहयोगियों संदेश कोंडविलकर और भूषण पाटील पर अपने चुनाव अभियान को पटरी से उतारने का आरोप लगाया है. पार्टी में जारी भयंकर गुटबाजी के चलते प्रिया दत्त ने तो लोकसभा चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया था. अब कांग्रेस के कई छोटे-बड़े नेता बीजेपी की गोद में बैठने की तैयारी कर चुके हैं.
बीजेपी-शिवसेना गठबंधन बड़े भाई-छोटे भाई के रिश्तों वाली अपनी असाध्य बीमारी से जूझ रहा था. लेकिन सुनते हैं कि सीएम देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना नेता व उद्योग मंत्री सुभाष देसाई के बीच गुरुवार की रात चली मैराथन बैठक में अविश्सनीय ढंग से तय हो गया कि बीजेपी 162 और शिवसेना बाकी बची हुई 126 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. महाराष्ट्र में अन्य सहयोगी और छोटे दलों को बीजेपी अपने कोटे से ही जगह देगी. ऐसी भी चर्चा है कि बीजेपी कमल के चिह्न पर चुनाव लड़ने के लिए छोटे सहयोगियों को मनाएगी. एनसीपी-कांग्रेस का गठबंधन घोषित हो जाने के कारण बीजेपी और शिवसेना के अलग-अलग लड़ने की कोई संभावना शेष नहीं रह गई थी.
इससे पहले शिवसेना 50-50 के फॉर्म्युले पर जोर दे रही थी और मुख्यमंत्री पद को लेकर समझौता करने को तैयार नहीं थी. लेकिन एक-दूसरे के परंपरागत वोट बैंकों में सेंध लगाने के बावजूद दोनों भगवा दल समझ चुके हैं कि संघे शक्तिः कलौयुगे. आशय यह कि कलियुग में गठबंधन करने पर ही मजबूती प्राप्त होती है. परंपरागत तौर पर मुंबई और कोंकण का पूरा क्षेत्र शिवसेना का गढ़ समझा जाता रहा है लेकिन 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान ही बीजेपी ने यह ट्रेंड पलट दिया था. शिवसेना ने राज्य के कुछ अंदरूनी हिस्सों में पैठ बनाई लेकिन मुंबई में उसे बड़ी हार झेलनी पड़ी थी. वैसे भी विचारधारा और पार्टीनिष्ठा को ताक पर रख कर तमाम विपक्षी नेता जिस तरह बीजेपी में शामिल होने के लिए मरे जा रहे हैं, उसे देखते हुए शिवसेना को भी आखिरकार सरेंडर करना ही पड़ा.
बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (युती) को एडवांटेज इस वजह से भी नजर आ रहा है कि एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन को अब बिल्कुल नए चेहरों पर ज्यादा दांव लगाना पड़ेगा. लोकसभा चुनाव से पहले तीसरी शक्ति के रूप में उभरा प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन विकास आघाडी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम का गठजोड़ सीटों का समझौता न हो पाने और एक-दूसरे की पीठ में छुरा भोंकने के आरोपों के चलते बिखर चुका है. बीते लोकसभा चुनाव में एनसीपी-कांग्रेस की लुटिया इसी गठबंधन ने डुबोई थी. महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और सुशीलकुमार शिंदे की हार का सबब एमआईएम ही थी. दलित बहुल सीटों पर प्रकाश आंबेडकर का अब भी अच्छा-खासा असर बरकरार है.
इसी के मद्देनजर लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी ने आंबेडकर को साथ लेने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. इस बार प्रकाश आंबेडकर राज्य की सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं और माना जा रहा है कि एआईएमआईएम अपने दम पर 75 से 80 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. सपा समेत इन शक्तियों का अलग-अलग चुनाव लड़ना युती के लिए किसी टॉनिक से कम नहीं है. समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने के लिए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बालासाहेब थोरात, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, माणिकराव ठाकरे, नसीम खान व अन्य नेताओं ने महाराष्ट्र सपा प्रमुख अबू आसिम आजमी से बातचीत की थी लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में सपा को कांग्रेस ने जिस तरह अंतिम समय तक लटकाए रखा था और सपा अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को बी-फॉर्म तक नहीं पहुंचा पाई थी, उसे आजमी भूल नहीं पाए.
सीएम फडणवीस पूरे राज्य में ‘महाजनादेश यात्रा’ पूरी कर चुके हैं और अभूतपूर्व जीत का दावा कर रहे हैं. 80 वसंत देख चुके दिग्गज शरद पवार भी इस चुनाव में फुल फॉर्म में नजर आ रहे हैं. कांग्रेस ने मुकुल वासनिक को समूचे विदर्भ क्षेत्र, अविनाश पांडे को मुंबई व इलेक्शन कंट्रोल रूम, रजनी पाटील को पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र, आरसी खूंटिया को उत्तरी महाराष्ट्र और राजीव साटव को मराठवाड़ा का चुनाव प्रभारी बना दिया है. दिक्कत यह है कि वासनिक और रजनी पाटील के अलावा बाकी नाम महाराष्ट्र की जनता के लिए अनजाने से हैं. मराठा, दलित और मुस्लिम वोटों के बिखराव तथा स्थापित नेताओं द्वारा एनसीपी का साथ छोड़ दिए जाने से बीजेपी-शिवसेना के दिग्गजों के सामने एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन उम्मीदवार कमजोर पड़ जाने की आशंका है. एक सरदर्द यह भी है कि पीडब्ल्यूपी और आरपीआई (गवई) जैसे सहयोगी दल गठबंधन से 38 नहीं बल्कि 55 से 60 सीटें मांग रहे हैं.
वर्तमान परिदृश्य बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को तगड़ी स्थिति में ले आया है क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस से टूटकर आए व्यक्तिगत मजबूत जनाधार वाले नेता पूरे राज्य में अपनी ही पूर्व पार्टियों के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे रहे होंगे. विशाल ठाणे-मुंबई रीजन में गुजराती और उत्तर भारतीय मतदाता अब थोक में बीजेपी की झोली में जा चुके हैं. दूसरी तरफ मुस्लिम, शिम्पी, माली और कुनबी मतदाताओं पर कांग्रेस की पकड़ बरकरार है. लेकिन व्यापक मराठी मतदाता इस बार किसकी दिवाली शुभ एवं मंगलमय बनाएंगे, यह तो 24 अक्तूबर को ही पता चलेगा!
-विजयशंकर चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/VijayshankarC और फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/vijayshankar.chaturvedi
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