Maharashatra Politics: 30 जून 2022 की शाम से ही मुंबई से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में एक सवाल तैर रहा है कि बीजेपी ने महाराष्ट्र की सत्ता की तश्तरी आखिर एकनाथ शिंदे के सामने क्यों रख दी और इससे पार्टी को भला क्या फायदा होगा? बीजेपी को इससे क्या फायदा होने वाला है,इसकी चर्चा आगे करेंगे लेकिन पहले उस शख्स के दिमाग और उसमें वक़्त से आगे चलने वाली सियासी रणनीति बनाने की जो फ़ितरत है,उसे समझना होगा.


बेशक महाराष्ट्र की राजनीति में कल जो कुछ हुआ है, उसने बीजेपी नेताओं समेत बाकी दलों के नेताओं को भी ऐसा चौंकाया है, जो उन्होंने न पहले कभी सोचा, न देखा होगा. लेकिन सियासत की बिसात पर बिछी शतरंज की चाल में कब, कहाँ, किसे और कैसे मात देनी है, ये इल्म शरद पवार जैसे धुरंधर नेता के पास अगर होता, तो उद्धव ठाकरे की हालत शायद आज ये नहीं होती.


उद्धव ठाकरे तो छोड़िए, शरद पवार जैसे महारथी की सियासी चालों को नेस्तनाबूद करने के लिए हमें उस शख्स के दिमाग को समझना होगा, जो पहले आरएसएस के कार्यालय में एक स्वयंसेवक के तौर पर झाड़ू लगाता है. फिर कुछ साल बाद वह संघ का प्रचारक बनकर देश के विभिन्न राज्यों में संघ का विस्तार करते हुए उन लोगों की नब्ज़ को बारीकी से समझ कर उनकी असलियत को पकड़ता है, जो देश में सत्ता गिराने या दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. फिर ऐसा वक़्त आता है कि संघ उन्हें अपनी राजनीतिक इकाई यानी बीजेपी में संगठन का महामंत्री बनाकर एक नई जिम्मेदारी दे देता है. 


कुदरत का कहर बरपता है औऱ साल 2001 में गुजरात में आये भूंकप की त्रासदी को सही तरीके से न संभाल पाने के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाने का फरमान जारी करते हुए उस वक़्त अटल-आडवाणी की बीजेपी कहलाने वाली पार्टी इन्हीं नरेंद्र मोदी को दिल्ली से गांधीनगर भेजकर ताबड़तोड़ गुजरात का मुख्यमंत्री बना देती है. वे पार्टी नेतृत्व की कसौटी पर न सिर्फ खरे साबित होते हैं, बल्कि लगातार चुनाव जीतकर वे राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर भी अपना लोहा मनवा देते हैं.


राजनीतिक जानकर कहते हैं कि 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने लोगों को ये भरोसा दिलाने में सफलता पाई थी कि जब एक चाय बेचने वाला इस देश का पीएम हो सकता है, तो बीजेपी में सब कुछ संभव है. एक जमाने में ऑटों चलाने वाले उसी एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर उन्होंने महाराष्ट्र की जनता को ये संदेश दिया है कि बीजेपी उन्हीं बाला साहेब ठाकरे की हिंदुत्ववादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में विश्वास रखती है, जिनकी विरासत उनके परिवार के पास नहीं, बल्कि उनके सच्चे, कर्मठ व समर्पित शिव सैनिकों के हाथ में होना चाहिए.


एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर बीजेपी महाराष्ट्र में ये संदेश देने में काफी हद तक कामयाब भी हुई है क्योंकि आने वाले दिनों में उद्धव ठाकरे की शिव सेना से जुड़े कई लोग शिंदे के पाले में आने के लिए बेताब दिखाई दें, तो कोई हैरानी नहीं होना चाहिए. राजनीति का मनोविज्ञान कहता है कि जब कोई पार्टी सत्ता में होती है, तब उसके पास समर्थकों-कार्यकर्ताओं की ऐसी बेतहाशा भीड़ जुट जाती है, जो उसके प्रबंधकों से भी नहीं संभलती. लेकिन वहीं पार्टी जब सत्ता की चौखट से बाहर हो जाती है, तब उसके निष्ठावान कार्यकर्ताओं को आप उंगलियों पर गिन सकते हैं. दुनिया का यहीं दस्तूर है कि वो उगते सूरज को सलाम करती है. और,यहीं सब अब उद्धव ठाकरे परिवार को अपनी आंखों से दिखाई भी देगा और इसका दर्द भी उन्हें ही झेलना होगा.


शिंदे को सीएम बनाने से 2024 का लोकसभा चुनाव आने तक वैसे तो बीजेपी को कई फायदे होने हैं क्योंकि कोई भी बड़ी पार्टी अपना अचूक निशाना वहीं लगाती है, जहां उसे अपने नुकसान की भरपाई एक बड़े फायदे से मिलते हुए दिखाई दे.


महाराष्ट्र की राजनीतिक ताकत में वहां की सरकार के बाद बृहन मुंबई नगरपालिका यानी बीएमसी को सबसे अहम माना जाता है, जहां अभी तक शिव सेना का जलवा भी है और कब्ज़ा भी. बीजेपी की नज़र इसे पूरी तरह से हथियाने की है. अगले पांच महीने के भीतर यानी नवम्बर में बीएमसी के चुनाव हैं. जाहिर है कि शिंदे के सीएम बनते ही ठाकरे गुट की शिव सेना के कई मौजूदा पार्षद अपना पाला बदलते हुए शिंदे-दरबार में हाजिरी लगाएंगे कि उन्हें अब उनके वाली शिव सेना ही चुनाव लड़ना है. शिंदे नापतौल कर उनमें से कुछ को टिकट देंगे भी लेकिन कुछ ऐसे नए चेहरे भी मैदान में उतारेंगे, जिनके जीतने की तस्सली भी हो.


बीजेपी का तो वहां अपना कैडर है ही लेकिन उस चुनाव में  शिंदे गुट से उसे जो ऑक्सिजन मिलेगी, वो ठाकरे परिवार वाली शिव सेना के खात्मे की विधिवत पहली सियासी शुरुआत होगी. हो सकता है कि शिंदे गुट इन चुनावों से पहले ही चुनाव आयोग में ये अर्जी लगा दे कि अब असली शिव सेना यहीं है और उन्हें पार्टी का पुराना चुनाव-चिन्ह आवंटित कर दिया जाये. हालांकि ये पेंच कानूनी लड़ाई में फंस सकता है लेकिन तब भी बीजेपी के तो दोनों ही हाथों में लड्डू हैं.


ये सब जानते हैं कि महाराष्ट्र में सियासी तौर पर पहला उदय शिव सेना का ही हुआ था और 1966 में जब बाल ठाकरे ने इसकी नींव रखी थी, तब जनसंघ, फिर जनता पार्टी और 1980 में बनी बीजेपी का कोई वजूद भी नहीं हुआ करता था. वह तो भला हो, इस समय की बीजेपी के चाणक्य समझे जाने वाले प्रमोद महाजन का जिन्होंने अटल-आडवाणी से पूछे बगैर "मातोश्री" में बाल ठाकरे के दरबार में जाकर उन्हें इसके लिए राजी कर लिया कि अगला विधानसभा चुनाव शिव सेना और बीजेपी मिलकर लड़ेंगी क्योंकि दोनों की विचारधारा एक ही है. बाल ठाकरे मान गए और वहीं से बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपनी जमीन तलाशनी शुरु कर दी और उसका ही नतीजा है कि वो 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 106 सीटें लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि शिव सेना को सिर्फ 56 सीटें ही मिली थीं. लेकिन पहले ढाई साल मुख्यमंत्री कौन होगा? उस अहंकार ने उद्धव ठाकरे को ऐसा पथभ्रष्ट कर दिया कि दोनों का गठबंधन टूट गया और उस बेमेल सियासी रिश्ते का नतीजा अब सबके सामने है.


दरअसल, बीजेपी एकनाथ शिंदे के बहाने महाराष्ट्र के लोगों को ये संदेश दे रही है कि असली शिव सेना यहीं है. उद्धव ठाकरे ने तो उसे महज़ एक परिवार की पार्टी बना डाला था और बाला साहेब ठाकरे के सिद्धांतों के खिलाफ जाते हुए महज सत्ता के लालच में वे हिंदुत्व विरोधी ताकतों की गोद में जा बैठे. मराठी मानुष के लिए ये संदेश बेहद अहम मायने रखता है क्योंकि न तो वह वीर सावरकर के खिलाफ कुछ सुनना चाहता है और न ही बाला साहेब ठाकरे की शान में की गई किसी गुस्ताखी को ही माफ करना पसंद करता है.


राजनीति को समझने वाले ये जानते हैं कि उत्तरप्रदेश के बाद महाराष्ट्र में ही सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं. शिंदे को सीएम बनाने से बीजेपी को कई सीटों पर इसका फायदा भी अवश्य मिलेगा और उसका टारगेट यहीं है कि कम से कम दो तिहाई सीटों पर भगवा लहराये. शिंदे की ताकत को कम करके आंकने वाले लोगों को ये नहीं भूलना चाहिए कि पहले पार्षद, फिर विधायक और उसके बाद मंत्री रहते हुए उन्होंने लगातार जमीन पर काम करते हुए इस मुकाम को हासिल करने का जज़्बा दिखाया है.


शायद इसीलिए एकनाथ शिंदे को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा कि उनकी जमीनी पकड़ और प्रशासनिक अनुभव महाराष्ट्र की जनता की भलाई के लिये उपयोगी साबित होगा.


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.