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कोरोना वायरस का बढ़ता जाल...मॉस्को की राह पर मुंबई

मुंबई में कोरोना वायरस तेजी से बढ़ रहा है. देश में कोरोना के एक लाख 58 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं.

मुंबई में प्रतिदिन जिस रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए ये शहर मॉस्को के बाद रोज सबसे ज्यादा बढ़ने वाले मामलों के लिहाज से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन गया है. मॉस्को में तो संक्रमित लोगों की संख्या घटने भी लगी है लेकिन जिस तरह मुंबई में संक्रमण फैल रहा है उसे देखते हुए ये शहर दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना हॉटस्पॉट बन सकता है. मुंबई में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 18 फीसदी हो गई है. हर 5 टेस्ट में से एक टेस्ट पॉजिटिव आ रहा है.

भारत में कोरोना की सबसे ज्यादा मार अगर किसी शहर पर पड़ी है तो वो है मुंबई. कोरोना मरीजों के आंकड़ों में लगातार इजाफा हो रहा है और सरकार के तमाम इंतजाम नाकामयाब होते नजर आ रहे हैं. अब शहर के हालात की तुलना मॉस्को से की जा रही है. हर दिन नए संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्या में इजाफा होने के मामले में रूस की राजधानी मॉस्को के बाद मुंबई का दूसरा नंबर आता है.

भारत का हर 5 में से एक मामला मुंबई से आ रहा है. इस शहर की 0.22 फीसदी आबादी कोरोना की चपेट में है और ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. मई की शुरुआत से ही मुंबई में कोरोना के मामले तिगुने हो गये हैं. जिस तरह से मुंबई पौने दो करोड़ की आबादी के साथ देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है उसी तरह से मॉस्को भी सवा करोड़ की आबादी के साथ रूस का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है.

दोनो शहरों की आबादी भी काफी घनी है. मुंबई में आबादी का घनत्व 32 हजार लोग प्रति वर्ग किलोमीटर का है जबकि मॉस्को में प्रति वर्ग किलोमीटर आबादी का घनत्व साढ़े 8 हजार लोगों का है. दोनों ही अंतरराष्ट्रीय शहर हैं और अपने अपने देशों के बड़े आर्थिक केंद्र हैं. अब जहां एक ओर मॉस्को में रोजाना नये मामलों के आने की संख्या कम हो रही है तो वहीं मुंबई मॉस्को की जगह लेता दिख रहा है.

मुंबई में जिन ठिकानों से लगातार मामले सामने आ रहे हैं वे हैं झुग्गी बस्तियां. एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी कोरोना का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गई है. यहां दो वर्ग किलोमीटर के दायरे में साढ़े सात लाख लोग रहते हैं. धारावी के भीतर एक अलग ही दुनिया है. धारावी में इतनी पतली-संकरी गलियां हैं कि दो लोग अगर एक दूसरे के सामने से गुजरें तो उनके बीच कोई फासला नहीं रह सकता.

सूरज की रोशनी तक का इन गलियों में पहुंचना मुश्किल है. किस तरह की सोशल डिस्टेंसिंग की उम्मीद आप यहां कर सकते हैं. यहां मौजूद पतले संकरे घरों में पांच से लेकर 15 तक लोग रहते हैं. कॉमन शौचालय और पानी भरने के नलों का इस्तेमाल करते हैं. ज्यादातर लोग चमड़ा कारोबार या फिर यहां चलने वाले दूसरे उद्योगों से जुड़े हैं. धारावी की तरह ही वर्ली, वडाला, गोवंडी और मालाड की झुग्गी बस्तियों से भी लगातार बड़ी तादाद में कोरोना संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं.

मुंबई में मामलों के बढ़ने के पीछे एक अहम कारण है इसका अंतरराष्ट्रीय शहर होना. हालांकि मुंबई में लॉकडाउन का एलान 25 मार्च को किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से पहले शुरू हो गया था लेकिन फ्लाइट्स का उड़ना 25 मार्च के बाद ही बंद हुआ. तब तक लगातार दुनियाभर से रोजाना सैकड़ों विमान मुंबई के इस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लैंड कर रहे थे. ये भारत के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक है और रोजाना एक हजार के करीब विमानों को हैंडल करते है. इस हवाई अड्डे पर पहुंचने वाले मुसाफिरों की स्क्रीनिंग तो हो रही थी लेकिन वो किसी खानापूर्ति की तरह ही थी. पुख्ता स्क्रीनिंग के अभाव में बड़ी तादाद में कोरोनाग्रस्त मुसाफिर बाहरी देशों से मुंबई पहुंचे और उनसे कोरोना फैला.

मजदूरों की भीड़ भी संक्रमण फैलने का एक बड़ा कारण हैं. जबसे श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की शुरुआत की गई है तबसे मजदूरों की भीड़ मुंबई के अलग अलग इलाकों में नजर आ रही है. पुलिस इन्हें एक साथ जमा करती है और रेल स्टेशनों पर ले जाकर ट्रेनों में बिठाती है, लेकिन इस प्रक्रिया में सोशल डिस्टेंसिंग का कोई पालन नहीं हो रहा. इस तरह का बर्ताव कोरोना के संक्रमण को फैलाने में एक बड़ी हद तक जिम्मेदार रहा है.

मुंबई के सीएसएमटी, चर्चगेट, एलटीटी और बांद्रा टर्मिनस जैसे स्टेशनों पर रोजाना इस जैसी भीड़ देखी जा सकती है जहां से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लिये रोजाना ट्रेनें छोड़ी जा रहीं हैं. इन मजदूरों को इस बात की राहत है कि ये वापस अपने गृहराज्य वापस लौट रहे हैं लेकिन इसी के साथ साथ वे अपने आपको भीड़ के इस जोखिम में भी डाल रहे हैं. मुंबई के बिगड़े हुए हालात के पीछे एक कारण ये है कि कई इलाकों में लॉकडाउन पर कड़ाई से अमल नहीं हो पाया. लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं किया. कई जगहों पर लॉकडाउन करवाने गये पुलिस कर्मियों पर भीड़ ने हमला कर दिया.

यही वजह है कि कोरोना की एक बड़ी गाज लॉकडाउन पर अमल करवाने वाले पुलिसकर्मियों पर भी गिरी. मंगलवार तक आये आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में कोरोनाग्रस्त पुलिसकर्मियों की संख्या 2 हजार तक पहुंच गई है और 22 पुलिसकर्मी मारे जा चुके हैं. ज्यादातर ऐसे पुलिसकर्मी कोरोना की चपेट में आये हैं जो कि हॉटस्पॉट्स में तैनात थे. कई पुलिसकर्मी डायबिटीज या फिर ब्लड प्रेशर की बीमारियों से भी ग्रस्त हैं जिसकी वजह से वे जल्द कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं.

महाराष्ट्र में कोरोना पर अंकुश लगाने के लिये कई रणनीतियां बनाईं जा रहीं है लेकिन इसके बावजूद मामले लगातार बढते ही जा रहे हैं. कई लोग आए दिन नए बनाए जा रहे नियमों का भी शिकार हो रहे हैं. अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं और टेस्ट की रिपोर्ट आने में लंबा वक्त लग रहा है. कुछे एक मामले ऐसे सामने आये हैं जहां मरीजों को अस्पताल में जगह नहीं मिल पाई. वे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के चक्कर लगाते रहे.

इस बीच उनकी हालत बिगड़ती गई और उन्होंने दम तोड़ दिया. मुंबई के पड़ोसी शहर ठाणे में हाल ही में एक शख्स की मौत इसलिये हो गई क्योंकि उसे कुछ अस्पतालों ने भर्ती नहीं किया. ऐसे लगातार कई मामले सामने आ रहे हैं. दूसरी बात ये है कि कोरोना टेस्ट के लिये जो नये नियम बनाये गये हैं उनसे भी समस्या बढ़ गई है. उसे जटिल बना दिया गया है. अब कोई भी शख्स सीधे जाकर किसी प्राईवेट लैब से टेस्ट नहीं करवा सकता.

उसे महानगरपालिका अधिकारी के पास एक फॉर्म जाम करना होगा. अगर किसी को कोरोना के लक्षण नजर आ रहे हैं तब भी उसके टेस्ट किये जाने की इजाजत होगी नहीं तो उसे क्वॉरन्टीन कर दिया जाता है. लक्षण दिखने पर जब टेस्ट कराया जाता है तो उसकी रिपोर्ट आने में 3 से 4 दिन लग जाते हैं और तब तक मरीज की हालत खराब हो जाती है. 2 हफ्ते पहले मुंबई पुलिस के एक असिसटेंट सब इंस्पेक्टर अमोल कुलकर्णी की कोरोना से मृत्यू हो गई थी. 12 मई को उन्होंने कोरोना का टेस्ट कराया और 15 मई को जब रिर्पोर्ट आई तब तक उनकी हालत काफी खराब हो गई थी. इस दौरान वे घर पर ही थे.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि इस वक्त मुंबई की तस्वीर बेहद डरावनी हो चली है. अब बस यही उम्मीद की जा सकती है कि सरकार जो कदम उठा रही है उनका असर नजर आयेगा और मुंबई, न्यू मॉस्को बनने से बच जायेगा.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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