Maharashtra: राज्यपाल कोश्यारी आखिर क्यों देते हैं सरकार को नाराज करने वाले बयान?
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उत्तराखंड में बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रह चुके और अब महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अक्सर ऐसे बयान दे देते हैं, जिन पर विवाद पैदा होने के साथ ही राज्य की बीजेपी-शिव सेना सरकार के लिए भी मुसीबत खड़ी हो जाती है. छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर दिए गए उनके ताजा बयान से महाराष्ट्र की सियासत में बवाल मचा हुआ है. नौबत यहां तक आ पहुंची है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना की तरफ से भी अब उन्हें महाराष्ट्र से हटाने की मांग हो रही है. सीएम शिंदे भी उनके इस बयान से नाराज हैं. ऐसा लगता है कि राज्यपाल कोश्यारी ही बीजेपी और शिन्दे के बीच सियासी कड़वाहट पैदा करने की महत्वपूर्ण कड़ी बनते जा रहे हैं.
राज्यपाल एक संवैधानिक पद है और इस कुर्सी पर बैठे शख्स से ये अपेक्षा की जाती है कि वे न तो कोई ऐसा सियासी बयान देंगे, जिससे विवाद पैदा हो और न ही सार्वजनिक मंच से कोई ऐसी बात कहेंगे, जो प्रदेश के लोगों की अस्मिता को अपमानजनक महसूस हो, लेकिन गवर्नर कोश्यारी के दिए बयानों पर गौर करें, तो लगता नहीं कि वे इस कसौटी पर खरे साबित हुए हैं. वह इसलिए कि शिवाजी महाराज पर टिप्पणी से पहले भी वे ऐसा बयान दे चुके हैं, जिसे मुंबई में रहने वाले मराठियों ने अपना अपमान बताते हुए उनसे माफ़ी मांगने के लिए कहा था.
दरअसल, किसी सार्वजनिक मंच पर आते ही कोश्यारी शायद ये भूल जाते हैं कि अब उनका नाता सक्रिय राजनीति से नहीं है और वे जिस पद पर काबिज हैं, उसकी अपनी एक अलग गरिमा व मर्यादा है जिसका ख्याल रखना जरूरी है. राजनीति में तो अक्सर ये देखने को मिलता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता की तारीफ़ में कसीदे पढ़ते हुए छोटे नेता अति उत्साह में आकर बहुत कुछ बोल जाते हैं, लेकिन किसी सार्वजनिक मंच से प्रदेश का राज्यपाल एक केंद्रीय मंत्री की इस कदर तारीफ़ करने लगे, ये पहली बार ही लोगों ने देखा है.
शनिवार (19 नवंबर) को राज्यपाल कोश्यारी औरंगाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में थे, जहां उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को डी. लिट की डिग्री प्रदान की थी, लेकिन उसके बाद कोश्यारी ने अपने भाषण में नितिन गडकरी की 'तुलना' छत्रपति शिवाजी से करते हुए कह दिया कि छत्रपति शिवाजी महाराज तो पुराने जमाने के आदर्श हैं. अब तो नितिन गडकरी ही आदर्श हैं. कोश्यारी को शायद ये अहसास नहीं होगा कि वह जो तुलना कर रहे हैं, उससे सिर्फ सियासत में ही उबाल नहीं आएगा बल्कि हर महाराष्ट्र वासी इससे आहत महसूस करेगा. राज्यपाल के इस बयान का सभी राजनीतिक दलों ने तो जमकर विरोध किया ही है. यहां तक कि केंद्रीय मंत्री गडकरी ने भी उनकी इस तुलना को ठुकराते हुए साफ कर दिया कि,"शिवाजी महाराज हमारे भगवान हैं. हम उनका माता-पिता से भी ज्यादा आदर करते हैं."
लेकिन सबसे तीखी प्रतिक्रिया सीएम शिंदे गुट वाली शिवसेना की तरफ से आई है, जिसने केंद्र सरकार से राज्यपाल कोश्यारी को किसी अन्य जगह पर भेजे जाने की मांग की है. बुलढाणा क्षेत्र से विधायक संजय गायकवाड़ ने कहा, "कोश्यारी मराठा साम्राज्य के संस्थापक को लेकर अतीत में भी विवादित बयान दे चुके हैं. शिवसेना नेता ने कहा कि राज्यपाल को समझना चाहिए कि छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्श कभी पुराने नहीं पड़ते और उनकी तुलना दुनिया के किसी भी महान व्यक्ति से नहीं की जा सकती." उन्होंने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि एक ऐसा व्यक्ति जिसे राज्य का इतिहास न पता हो उसे राज्यपाल बनने से कोई फायदा नहीं, ऐसे व्यक्ति को कहीं और भेजा जाए. हालांकि कोश्यारी के इस बयान की एनसीपी और उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना ने भी कड़ी आलोचना की है.
बता दें कि राज्यपाल कोश्यारी इससे पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं, जिस पर बवाल होने के बाद उन्हें सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा था. बीती 29 जुलाई को मुंबई में हुए एक समारोह के दौरान उन्होंने कहा था कि "मुंबई में कोई पैसा नहीं बचेगा, अगर गुजराती और राजस्थानी लोग शहर में नहीं होंगे तो यह देश की आर्थिक राजधानी नहीं रहेगी." जब उनकी इस टिप्पणी पर हंगामा मचा तो, राज्यपाल ने अगले दिन सफाई दी थी कि उनकी टिप्पणियों को गलत समझा गया और कहा कि उनका "मराठी भाषी लोगों की कड़ी मेहनत को कम करने का कोई इरादा नहीं था."
तब भी मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे को चेताते हुए ये कहना पड़ा था कि राज्यपाल एक संवैधानिक पद पर काबिज हैं और उन्हें अपने बयानों से किसी को ठेस न पहुंचाने के लिए सावधान रहना चाहिए. सवाल है कि राज्यपाल के ये विवादित बयान बीजेपी और शिवसेना के बीच कहीं सियासी खाई तो नहीं खोद रहे हैं?
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