महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल जारी है. एनसीपी में अब दो खेमा बन चुका है. शरद पवार को उनके भतीजे अजित पवार से ही पार्टी पर कब्जा के लिए चुनौती मिल रही है. शरद पवार खेमा और अजित पवार खेमा ..दोनों ही गुटों की ओर से पार्टी पर दावेदारी जताई जा रही है.


एनसीपी में टूट महाराष्ट्र की राजनीति में कोई नई बात नहीं है. इसी तर्ज पर एक साल पहले शिवसेना में टूट हुई. केंद्रीय जांच एजेंसियों सीबीआई-ईडी के मुकदमे एमएलए पर लगे हैं.  वो मुकदमे वोटर पर नहीं लगे हैं, तो फिर वोटर दल छोड़कर क्यों जाएगा. जो वोटर शिवसेना का था, जो वोटर बाला साहेब ठाकरे में आस्था रखता था,  उनकी आस्था अभी भी है.


जहां तक एनसीपी की बात है तो सबको पता है कि महाराष्ट्र में जनमान्य नेता शरद पवार ही हैं. मुझे नहीं लगता है कि एनसीपी में जो टूट हुई है, वो कोई नई बात नहीं है. एनसीपी भी कई बार टूटी है, शिवसेना भी कई बार टूटी है. सबको पता है कि कांग्रेस कितनी बार टूटी है. कोई भी राजनीतिक टूट होती है, वो ये सिद्ध नहीं करती है कि राजनीतिक दल का अस्तित्व खत्म हो गया.


जैसा कि शरद पवार ने बोला है कि वे 90 दिनों में फिर से अपनी पार्टी को मजबूत कर देंगे. ये सही है कि कई नेता जैसे अजित पवार, छगन भुजबल, प्रफुल पटेल चले गए. लेकिन हमें ये भी देखना पड़ेगा कि ये कौन गए हैं. ये वो लोग हैं जिनके ऊपर कई तरह के आरोप हैं. इस टूटन से शरद पवार उबर जाएंगे.



इस पूरे प्रकरण का असर तो वर्तमान में दिख रहा है, लेकिन इसका असर चुनाव के वक्त इतना पड़ने वाला नहीं है. आगे इसमें बहुत-सी बातें होने वाली हैं. शरद पवार अगर स्वस्थ रहें, तो वो सब कुछ रिकवर कर लेंगे. शरद पवार ने एक बात कही थी कि क्या अब गुजराती लोग मराठियों को चुनौती देंगे. ये बात उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में बरसते पानी के बीच कहा था और फिर सारा चुनाव उल्टा हो गया था. उसके बाद एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थी. बाद में इन दोनों पार्टियों ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.



शरद पवार में वो माद्दा है कि वे अपनी हानि को ठीक कर लेंगे. अब ये देखिए कि एकनाथ शिंदे के साथ आए विधायक इस ताक में थे कि उनको मंत्रिपरिषद में जगह मिलेगी, लेकिन अब ये एनसीपी के विधायकों को मिल रही है. तो ऐसे में वो लोग क्या बगावत नहीं करेंगे. शिंदे की शिवसेना में भी बगावत हो सकती है.


बीजेपी ने गोपीनाथ मुंडे का जो राजनीतिक कद था, उसका बहुत असम्मान किया है. उनकी दो बेटियां हैं. प्रीतम मुंडे सांसद हैं और पंकजा मुंडे पहले विधायक रही हैं. पंकजा मुंडे को बीजेपी वाले पिछले एक साल से टरका रहे हैं कि हम आपको मंत्री पद का दर्जा देंगे. अब पंकजा मुंडे कहां जाएंगी, इस पर भी अटकलें लग रही है. गोपानीथ मुंडे के भतीजे और पंकजा मुंडे के कजन धनंजय मुंडे कई वर्षों से एनसीपी में रहकर पंकजा मुंडे का विरोध कर रहे हैं. अब देखिए पंकजा मुंडे पूर्व मंत्री हैं, लेकिन बीजेपी ने उनका मंत्री पद रोके रखा. उनके परंपरागत विरोधी धनंजय मुंडे को बीजेपी ने अब महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बना दिया. बीजेपी ने गोपीनाथ मुंडे परिवार के साथ जो किया है, उसका भी प्रभाव पड़ेगा.


एनसीपी में टूट और उसके बाद अजित पवार गुट का सरकार में शामिल होने से एकनाथ शिंदे के लोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव होगा. अजित पवार के बगावत और प्रफुल पटेल के जाने से से शरद पवार को धक्का तो लगा है. प्रफुल पटेल के जाने से ज्यादा धक्का लगा है. अजित पवार एक मैनेजर हैं, वे कोई नेता नहीं हैं. छगन भुजबल दो साल जेल में रहकर आए हैं. उनको अपने बच्चे और भतीजे को बचाना है. जाहिर सी बात है कि ईडी का केस उन पर भी लगा हुआ है. प्रफुल पटेल को अपनी बिल्डिंग बचानी है. अजित पवार के खिलाफ तो भोपाल में नरेंद्र मोदी ने भाषण दिया कि 70 हजार करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार एनसीपी से जुड़ा है.


ये टूट जरूर है, लेकिन मुझे लगता है कि चुनाव आते-आते शरद पवार स्थिति को बेहतर कर लेंगे. सब कुछ अब वोटर पर निर्भर है. आप देखिए कि उद्धव ठाकरे के 40 विधायक चले गए, लेकिन उनकी और आदित्य ठाकरे की रैली में भीड़ कहां से आती है. इसका साफ मतलब है कि वोटर साथ छोड़ कर नहीं गए हैं. उसी तरह से टूट के बाद सतारा में जब 3 जुलाई को शरद पवार गए तो  बहुत भीड़ थी. पार्टी में टूट होने से वोटर नहीं चले जाते हैं. जो नेता गए हैं, उनके ऊपर आरोप थे, इसलिए गए हैं. मतदाता तो यहीं कहेगा कि मैंने कौन सी चोरी की है, जो मैं पाला बदलूं.


आने वाले चुनाव में सब कुछ साफ हो जाएगा और मेरे ख्याल से शिवसेना और एनसीपी में जो टूट हुआ है, उससे उद्धव ठाकरे और शरद पवार दोनों उबर जाएंगे. इंडिया टुडे के सर्वे में भी आया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी को 48 में से 43 लोकसभा सीटों पर जीत मिल सकती है.


नरेंद्र मोदी की समस्या ये है कि उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें है और महाराष्ट्र में उसके बाद सबसे ज्यादा 48 सीटें है. उत्तर प्रदेश में तो वे बहुत मजबूत हैं, लेकिन महाराष्ट्र में उनकी स्थिति मजबूत नहीं है. इंडिया टुडे का सर्वे ही कह रहा है कि बीजेपी को यहां 4-5 सीटें ही मिल सकती है. बीजेपी को पता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में ज्यादा सीटें जीतने के लिए तोड़-फोड़ करना ही पड़ेगा.


एक और संभावना पर भी बात हो रही है. अजित पवार की बगावत के बाद एनसीपी के शरद पवार गुट के कांग्रेस में विलय को लेकर भी बातें हो रही हैं. शिवसेना और एनसीपी में टूट के बाद अब कांग्रेस विधानसभा में इन दलों से ज्यादा सीटों वाली पार्टी हो गई है. अब कांग्रेस यहां मजबूत होगी और कांग्रेस बेहतर परिस्थितियों में आएगी.


कुछ लोग और अखबार भले ही कह रहे हैं कि शरद पवार के लिए कांग्रेस में जाने का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन मैं समझता हूं कि शरद पवार ऐसा नहीं करेंगे. शरद पवार को अपनी बेटी सुप्रिया सुले की भविष्य की चिंता है. उन्होंने पूरा का पूरा दल अपनी बेटी को दिया हुआ है. जब तक शरद पवार को सुप्रिया सुले का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित और सुनिश्चित नहीं दिखेगा, तब तक वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे. लेकिन ये बात सही है कि महाराष्ट्र में अब कांग्रेस मजबूत हो गई है.


भविष्य में शरद पवार सब कुछ ठीक कर लेंगे. जो भी नेता गए हैं, उन सबका बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है. असल में एनसीपी पूरी तरह से शरद पवार के नाम से है. इसलिए भविष्य में शरद पवार स्थितियों को फिर से बेहतर कर लेंगे, इसकी पूरी संभावना है. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जाने पर जो हाल ज्योतिरादित्य सिंधिया का हुआ है, वैसा ही आगे चलकर अजित पवार का होने वाला है. एकनाथ शिंदे की भी यही हालत होने वाली है. शरद पवार को अभी नुकसान भले दिख रहा हो, लेकिन वे आने वाले समय में पार्टी के लिए नया नेतृत्व तैयार कर लेंगे.


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