महाराष्ट्र में एक बार फिर से काफी सियासी उथल-पुथल देखने को मिल रहा है, जहां पर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. उनके साथ 9 और पार्टी विधायक शिंदे सरकार में शामिल हुए. हालांकि, अजित पवार का ये दावा है कि उनके पास 40 विधायकों का समर्थन हासिल है. दरअसल, ये जो कुछ भी महाराष्ट्र में राजनीतिक भूकंप आया है, इसकी तैयारी सुनियोजित तरीके से करीब दो महीने पहले ही कर ली गई थी. 


बीजेपी और एनसीपी के जितने भी करीबी लोग थे उनको ये जानकारी थी कि एक सीक्रेट मीटिंग हुई थी. ये खबरें आ रही थी कि कुछ देर के लिए अजित पवार का फोन नोट रिचेबल था, ये बात सही है. क्योंकि प्रफुल्ल पटेल ने सीक्रेट मीटिंग कराई थी, जो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के यहां पर हुई थी. उस मीटिंग में खुद देवेन्द्र फडणवीस थे. इसके बाद, जेपी नड्डा, प्रफुल्ल पटेल, अजित पवार और अमित शाह, विनोद तावड़े ये सब साथ में थे.


अजित पवार के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन


उसके बाद शरद पवार के इस्तीफे वाला जो घटनाक्रम चला, उसके चलते जिन 40 विधायकों का अजित पवार को समर्थन हासिल था, वो घटकर 38 विधायकों का रह गया. बाद में जब सुप्रिया सुले को वर्किंग प्रसिडेंट को पोस्ट दी गई तो 2 और विधायक कम हो गए. इस तरह 36 विधायकों का समर्थन आज भी अजित पवार के पास है. फिर भी अजित पवार को ये उम्मीद थी कि उन्हें जिम्मेदारी मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.



इसलिए, प्रफुल्ल पटेल हो या छगन भुजबल या शरद पवार के काफी खास दिलीप वलसे पाटिल हो... ऐसे कई करीबी नेता अजित पवार के साथ रविवार को शपथ ग्रहण समारोह में दिखे. क्योंकि, इसकी पूरी तैयारी पहले ही हो चुकी थी. एक कहावत है कि जब खेल अपने साथ ही खेला जाता है तो उसकी प्लानिंग पहले ही कर लेनी चाहिए. इस चीज की तैयारी पहले ही की जाती है. ये उसी का उदाहरण है, जो सबके सामने इस रूप में आया है.


कई नेताओं पर चल रही जांच


महाराष्ट्र की राजनीति अब काफी अप्रत्याशित हो गई है. जब नेता जिसके साथ है, कल जरूरी नहीं कि वो उनके साथ हो. लेकिन, अब यहां के वोटर्स को लेकर कन्फ्यूजन बना हुआ है. इसके अलावा, कई नेताओं पर ईडी और सीबीआई की जांच चल रही है और कुछ नेता तो डर से ही जा रहे हैं. इनको लग रहा है कि अगर एन्क्वायरी से बचना है तो उनके साथ हो जाओ, ताकि किस भी तरह से जांच न लगे.



पिछले हमने करीब साल भर तक देखा है कि एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से पहले ईडी और सीबीआई के एन्क्वायरी कई नेताओं के ऊपर चल रही थी, लेकिन जैसे ही बीजेपी के साथ ये सरकार में आए उसके बाद इनके ऊपर एन्क्वायरी का प्रोसेस काफी धीमा हो गया है. चर्चा में भी नहीं है. आने वाले समय में आप ये देखेंगे कि विनोद तावड़े को केन्द्र की तरफ से महाराष्ट्र में अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी और पावरफुल बनाया जाएगा.  


क्या लागू होगा दल-बदल कानूनी?


अभी हाल में जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, इसमें स्पीकर के पास संवैधानिक अधिकार तो दिए हैं, लेकिन उस अधिकार के साथ ही और भी कई गाइडलाइंस दी गई हैं, जिसे फॉलो करते हुए उन्हें ये करना होगा. अगर दो तिहाई बहुमत है तो अजित पवार को ऊपर ये लागू नहीं होगा. लेकिन जैसा कि अजित पवार ने कहा कि हम पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे, ऐसे में कानूनी समस्याएं हैं, जो आने वाले समय में स्थिति साफ हो पाएगी.


लेकिन, राजनीति हमेशा से नंबर का गेम रही है. चाहे पार्टी तोड़कर नई राजनीतिक पार्टी खड़ी करनी हो या फिर और कुछ हो. इससे पहले जब अजित पवार पार्टी छोड़कर गए थे तब शरद पवार ने कोई एक्शन नहीं लिया था, बल्कि उनकी और जिम्मेदारी बढ़ा दी गई थी. लेकिन, इस समय एक्शन लिया जा रहा है.


अजित पवार पिछले काफी समय से ग्राउंड वर्क किया है. पिछले 20-22 साल से उन्होंने अपना ग्राउंड कनेक्टिविटी काफी मजबूत कर लिया था.  इसलिए, वो हमेशा से अग्रेसन मोड में रहे हैं. जब भी शरद पवार ने कहा कि यूथ को आना चाहिए तो उसका अजित पवार ने समर्थन किया था. लेकिन जब सुप्रिया सुले को वर्किंग प्रसिडेंट बनाया तो अजित पवार को कुछ भी हाथ नहीं लगा था.


एनसीपी पहले भी वेस्ट में मजबूत रही


एनसीपी वेस्ट महाराष्ट्र में काफी मजबूत रही है. पश्चिम हमेशा एनसीपी का गढ़ रहा है, वहां से एनसीपी के बड़े नेता आते हैं. को-ऑपरेटिव वाले जितने भी बेल्ट हैं वो ग्राउँड के साथ ही पैसे से भी मजबूत है. सुप्रिया सुले की पहुंच संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित था, वो दिल्ली में ही ज्यादा समय देती थी. ऐसे में आने वाले समय में अजित पवार की आपको ज्यादा मजबूत दिखेंगे.


अजित पवार एक मात्र महाराष्ट्र में ऐसा चेहरा हैं, जो डिप्टी सीएम के पद से काफी खुश हैं. 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद कुछ अगर समीकरण बदलते है तो सीएम बन सकते हैं, लेकिन मौजूदा हालात में वे डिप्टी सीएम ही बने रहना पसंद करेंगे.



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