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महाराष्ट्र: शिव सेना के सबसे वफादार नेता ही क्यों बन गये उसके 'खलनायक'?

महाराष्ट्र के राजनीतिक समंदर में एक बार फिर से तूफान आ गया है. शिवसेना के सबसे वफादार नेता समझे जाने वाले एकनाथ शिंदे ने पार्टी के दो दर्जन से ज्यादा विधायकों के साथ बगावत का परचम लहरा दिया है. सूरत में डेरा डाले शिंदे ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से फ़ोन पर हुई बातचीत में शर्त रख दी है कि शिवसेना फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाये, तभी वे पार्टी में वापस आएंगे.लेकिन ठाकरे ने उनकी यह शर्त ठुकराते हुए साफ कर दिया है कि बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं हो सकता है. इसलिये सवाल है कि महाराष्ट्र में शिवसेना,एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार अब रहेगी या फिर इन बागी और कुछ निर्दलीय विधायकों के दम पर बीजेपी दोबारा सत्ता हथिया लेगी?

कहते हैं कि राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं लेकिन हर तरह की संभावना का रास्ता भी खुला रहता है. बीजेपी के नेता भले ही इनकार करते रहें लेकिन शिव सेना विधायकों की इस बगावत की स्क्रिप्ट लिखने में असली भूमिका तो बीजेपी की ही है. सोमवार की रात को विधान परिषद के चुनावी नतीजे आते ही ये लगने लगा था कि प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर होने की पूरी तैयारी है. इसलिये कि बगावत करने वाले इन्हीं विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करके बीजेपी को 5 सीटें जितवा दी थी, जबकि उसके पास चार सीटें जीतने लायक ही जरूरी वोट थे. मंगलवार सुबह होते ही ये सभी सूरत के पांच सितारा होटल में गुजरात की बीजेपी सरकार के मेहमान बन गए.शिंदे ने दावा किया है कि उनके साथ 35 विधायक हैं.

बगावत के बाद शिवसेना ने शिंदे को सदन के नेता पद से हटा दिया है लेकिन इससे सरकार पर मंडराता खतरा टला नहीं है बल्कि इसके और ज्यादा गहराने की आशंका सामने दिख रही है.विधानसभा में शिवसेना के 55 विधायक हैं लेकिन सीएम ठाकरे ने आज शिंदे को नेता पद से हटाने के लिए जो बैठक बुलाई थी,उसमें महज 22 विधायक ही मौजूद थे. एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता के पद से हटाने वाली चिट्ठी पर भी 22 के ही दस्तखत हैं. यानी 33 विधायक शिवसेना के साथ नहीं हैं.

सरकार का गणित समझें तो बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 106 विधायक हैं.लेकिन शिवसेना (55) ने एनसीपी (52) और कांग्रेस (44) के समर्थन से मिलकर सरकार बनाई थी.राज्य की विधानसभा में 288 सीटें हैं. शिवसेना के एक विधायक का निधन हो चुका है. सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 145 का है. लिहाजा,ये बागी विधायक शिवसेना से टूटकर बीजेपी को समर्थन देते हैं और कुछ निर्दलीय भी साथ आ खड़े होते हैं,तब महाराष्ट्र में बीजेपी आसानी से बाजी पलट सकती है.

दरअसल,एकनाथ शिंदे दो तरह की बातें करते हुए बीजेपी की सरकार बनवाने का रास्ता साफ कर रहे हैं हैं.एक तरफ वे कहते हैं कि मेरा शिवसेना पार्टी छोड़ने का कोई विचार नहीं है. मैं हमेशा बाला साहब ठाकरे का सच्चा शिवसैनिक था और रहूंगा.लेकिन वहीं दूसरी तरफ वे उद्धव ठाकरे पर ये दबाव डाल रहे हैं कि अगर वे बीजेपी से गठबंधन कर लें,तो पार्टी नहीं टूटेगी.

चूंकि ठाकरे मना कर चुके हैं, इसलिए पूरी संभावना है कि अब वे बीजेपी की सरकार बनवाने के लिए अपना सारा जोर लगा देंगे. बताते हैं कि जब राज्य में शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार में वे मंत्री थे, तब भी वे शिवसेना से उखड़ गए थे. उस वक्त से ही उनके बीजेपी में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे. हालांकि तब उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी.

ठाणे जिले की कोपरी पंचपखाड़ी से विधायक एकनाथ शिंदे साल 2014 में अक्टूबर से दिसंबर तक नेता विपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं. साल 2019 में जब शिवसेना ने बीजेपी से दूरी बना कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई तो उद्धव ठाकरे के बेटे और राज्य में पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने ही उन्हें नेता सदन बनाने का प्रस्ताव किया था. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वे ठाकरे परिवार के किस हद तक वफ़ादार रहे हैं.

एक जमाना था जब छगन भुजबल और नारायण राणे जैसे नेता शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के सबसे खास हुआ करते थे. लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घुमा कि भुजबल ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और जब शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी एनसीपी बनाई, तो वे उसमें शामिल हो गए.जिस शिव सेना ने नारायण राणे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया, उन्हीं राणे ने भी पार्टी से बगावत करने में ज्यादा देर नहीं लगाई और अब वे बीजेपी के साथ हैं.

अब उसी कड़ी में एकनाथ शिंदे का नाम जुड़ता दिख रहा है.शिव सेना ही उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचाने का सबसे बड़ा जरिया बनी लेकिन आज वे उसके खिलाफ ही खड़े हो गए हैं. एक जमाना था जब वह ऑटोरिक्‍शा चलाते थे.शिंदे ने ठाणे की बीयर फैक्‍ट्री में मजदूरी भी की है लेकिन शिव सेना से जुड़ने के बाद उनकी किस्मत ही बदल गई. ठाकरे परिवार के बाद शिवसेना में एकनाथ शिंदे सबसे मजबूत नेताओं में से एक बन गए थे. ठाकरे परिवार ने भला कहां सोचा होगा कि वही शिंदे उनके लिए खलनायक भी साबित हो सकते हैं?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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