अगले लोकसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र की राजनीति कुछ नई करवट लेते हुए दिख रही है. सियासत की फ़ितरत ये है कि वहां अपना फायदा देखे बगैर सत्ता को संभालने वाला कोई भी शख्स अपने विरोधी की तारीफ़ यों ही नहीं करता. शिवसेना से बगावत करके बीजेपी के समर्थन से प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे पिछले तीन महीने से ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ रहे, जब उन्होंने सार्वजनिक मंच से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की तारीफों के पुल बांधने में कोई कसर छोड़ी हो. इसलिए सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि कहीं ये महा विकास अघाड़ी गठबंधन को तोड़ने की कवायद का हिस्सा तो नहीं है?
आगामी लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता के सूत्रधार चाहे नीतीश कुमार बनें या फिर तेलंगाना के सीएम केसीआर या फिर ममता बनर्जी लेकिन शरद पवार पहले दिन से ये कहते आये हैं कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष की एकता का न तो कोई मतलब है और न ही उसके बगैर बीजेपी को टक्कर दी जा सकती है. कुछ यही बात महा विकास अघाड़ी में शामिल उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिव सेना भी कह चुकी है. यही नहीं, पार्टी के नेता संजय राऊत तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर इसकी तस्दीक कर चुके हैं कि आगामी चुनाव में भी कांग्रेस और शिव सेना का ये गठबंधन बरकरार रहेगा.
इसलिये महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे द्वारा शरद पवार की बार-बार तारीफ़ किये जाने को पवार पर सियासी डोरे डालने के तौर पर देखा जा रहा है ताकि वे महाराष्ट्र में बने इस गठबंधन से बाहर निकलकर अपनी स्वतंत्र हैसियत में आ जाएं. जाहिर है कि पवार बीजेपी का साथ तो कभी नहीं देंगे लेकिन महा विकास अघाड़ी से अगर एनसीपी बाहर आ जाती है तो महाराष्ट्र में उसका सीधा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. चर्चा है कि शिन्दे को ये जिम्मेदारी सौंपने की बड़ी वजह ये है कि उनके पवार के साथ न सिर्फ नजदीकी रिश्ते हैं बल्कि वे उन्हें आज भी खुले तौर पर अपना मार्गदर्शक मानते हैं.
शनिवार को पुणे में वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट की 46 वीं वार्षिक आम सभा की बैठक में बोलते हुए एकनाथ शिंदे ने शरद पवार की जमकर तारीफ़ की. उन्होंने राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर नीति-निर्माताओं का मार्गदर्शन करने में पवार की दरियादिली का हवाला देते हुए ये भी कह दिया कि कोई भी शरद पवार के महत्व को नजरअंदाज नहीं कर सकता है. मंच पर शरद पवार की मौजूदगी में शिंदे ने ये कबूलने से भी कोई गुरेज़ नहीं किया कि वरिष्ठ नेता शरद पवार सीधे उन मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्हें बुलाते हैं, जो राज्य के हित में है.
हालांकि शिंदे द्वारा पवार की इतनी तारीफ करने के बाद उद्धव ठाकरे और पार्टी के बाकी नेताओं के कान खड़े हो गये हैं कि दिल्ली दरबार से ये कौन -सी नई खिचड़ी पकाने की कोशिश हो रही है.
दरअसल, पुणे के मंच से मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा है कि, 'शरद पवार राज्य और राष्ट्रीय स्तर के एक अनुभवी नेता हैं. सहकारी क्षेत्र में उनका योगदान बहुत बड़ा है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. शिंदे ये बताना भी नहीं भूले कि 'सुझाव और सलाह देने के लिए शरद पवार अक्सर मुझे टेलीफोन करते हैं.' उन्होंने कहा कि लोगों के हित में और राज्य के कल्याण के लिए, जो भी सत्ता में है, पवार मार्गदर्शन और सुझावों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं.
दरअसल, सीएम शिंदे ने शरद पवार की प्रशंसा ऐसे माहौल में की है, जब महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस के नेता सत्तारूढ़ बीजेपी-शिवसेना पर अपनी पार्टियों को तोड़ने और नेताओं को दूर करने की कोशिश करने का आरोप लगाते रहे हैं. बताया जाता है कि मंत्रिमंडल के विस्तार में देरी को लेकर भी शिंदे खेमे में अशांति है और गुट का हर दूसरा नेता मंत्रीपद पाने के लिए लालायित है. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में भी शिंदे ने शरद पवार के साथ मंच साझा करते हुए उनकी तारीफ़ करने में कोई कंजूसी नहीं बरती थी. तब मौका था, मुंबई क्रिकेट संघ (MCA) के चुनावों की पूर्व संध्या पर आयोजित विशेष रात्रि भोज का. उस मौके पर मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा था, ''थोड़ी बल्लेबाजी मुझे भी आती है. जब भी मौका मिलता है, थोड़ी बल्लेबाजी कर लेते हैं. हमने तीन महीने पहले बल्लेबाजी की थी. मैंने सभी के आशीर्वाद से मैच जीत लिया.'' उन्होंने हंसते हुए कहा, ''कुछ खुलेआम साथ हैं, तो कुछ दिल से साथ हैं. मैं किसी का नाम नहीं ले रहा हूं.'' तब शिंदे ने ये भी कहा था,''पवार साहब के पास हमेशा मार्गदर्शन होता है. वे अच्छे काम के लिए आशीर्वाद देते हैं.''
बता दें कि एक जमाने में बाला साहेब ठाकरे के सबसे विश्वस्त सहयोगी माने जाने वाले एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों ने शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ बगावत की थी. तब उन्होंने राज्य में सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के फैसले पर सवाल उठाया था. विद्रोह के बाद ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई और शिंदे पिछले साल 30 जून को मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि इन तारीफों से शरद पवार की सियासी सेहत पर कुछ असर पड़ेगा या फिर वे अपने उसूलों वाली राजनीति पर ही अड़े रहेंगे?
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