कहते हैं कि बीतते वक्त के साथ आदमी आगे बढ़ता है और इतिहास पीछे छूटता जाता है. कैलेंडर की पुरानी तारीखें वक्त की आंधियों में धूंधली पड़ती जाती है, लेकिन इतिहास के कैलेंडर के कुछ पन्ने और तारीखें ऐसी भी होती हैं जो कभी धुंधली नहीं पड़तीं और वर्तमान समय से अपने साथ हुए अन्याय का हिसाब और न्याय मांगती हैं. इतिहास के पन्नों में 6 अगस्त 1945 और 9 अगस्त 1945, दो ऐसी ही तारीखें दर्ज हैं, जिसकी बर्बर तस्वरी आज भी आंखों में चुभती हैं. पिछले दिनों ही ये दो तारीखें फिर से बीतीं और 77 साल पुराने जख्मों को फिर कुरेद गईं. आइए एक बार फिर खोलते हैं हिस्ट्री के उस चैप्टर को जिसका दर्द तो सबको नजर आता है, लेकिन उसके विलेन पर सवाल कोई नहीं उठाता. चलिए जानते हैं इन दोनों तारीखों का दर्द और उस पहलु को भी जिस पर कोई बात नहीं करता.
 
कोई नहीं जानता था कि यह सुबह अलग होगी

77 साल पहले, 9 अगस्त 1945 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था. उस सुबह कई एयर-रेड अलार्म बज चुके थे, लेकिन शहर को इस तरह के अलार्म की आदत बन चुकी थी, ये नियमित था. दरअसल, अमेरिका महीनों से जापान के शहरों पर बमबारी कर रहा था, ऐसे में किसी को भी इस बात पर संदेह नहीं हुआ था कि आज की सुबह कुछ अलग होगी. दो बी-29 सुपरफोर्ट्रेस, जिन्हें विशाल बमवर्षक कहा जाता था, उस दिन टिनियन हवाई अड्डे से निकलकर 9:50 बजे अपने लक्ष्य कोकुरा पहुंच चुके थे, लेकिन यहां बादल की परत काफी मोटी थी, जिस वजह से बम के सटीकता के साथ गिरने की संभावना कम थी. ऐसे में दोनों विमान अब अपने दूसरे लक्ष्य नागासाकी के लिए रवाना हुए. यहां भी एक बार फिर, घने बादलों के कारण दृश्यता तेजी से कम हो गई थी, लेकिन फिर अगले ही पल बादल हट गए और यह - "फैट बॉय" (परमाणु बम का उपनाम) को गिराने के लिए पर्याप्त था, जिसे सुबह 11:02 बजे यह नाम दिया गया था.

एक मिनट के अंदर 40 हजार से ज्यादा लोगों ने तोड़ा दम
 
विस्फोट के एक मिनट के अंदर करीब 40,000 लोगों की जान चली गई. अगले पांच से छह महीनों में लगभग 30 हजार घायलों की मौत हो गई. इस विस्फोट की तबाही यहीं नहीं रुकी. रेडियोएक्टिव विकिरणों की वजह से हताहतों की संख्या वर्षों तक बढ़ती रही, इसमें से धीरे-धीरे कई लोग दम तोड़ते रहे. इस बम विस्फोट के कुछ ही वर्षों के अंदर 1 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई. हाइपोसेंटर, या "ग्राउंड जीरो" या फिर आसान शब्दों में कहें तो जहां बम गिरा उसके 2.5 किलोमीटर के दायरे में बनीं लगभग 90 प्रतिशत इमारतें पूरी तरह से नष्ट हो गईं. इस हमले के बाद अगले ही दिन यानी 10 अगस्त 1945 को जापान के सम्राट की इच्छा के बाद जापानी सरकार ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, हालांकि अमेरिका की की "बिना शर्त आत्मसमर्पण" की जिद की वजह से कई दिनों तक आत्मसमर्पण पर मित्र देशों ने ध्यान नहीं दिया. 15 अगस्त को सम्राट हिरोहितो ने पहली बार अपने लोगों से सीधे बात की और उसके बाद जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा की.

हिरोशिमा के आगे दब कर रह गया नागासाकी का दर्द

अगर नागासाकी पर हुए परमाणु हमले की तुलना यहां से तीन दिन पहले यानी 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा की बमबारी से करें तो इस पर अभी तक बहुत कम चर्चा और खोज हुई है. इसे उतनी मान्यता भी नहीं मिल पाई जितनी हिरोशिमा हमले को मिली थी. निःसंदेह हिरोशिमा का यह एकमात्र दुर्भाग्य है कि इसने मानवता को परमाणु युग में प्रवेश कराया और मानवता को बर्बरता के नए और ऊंचे स्तरों तक पहुंचाया. हिरोशिमा पर गिराए गए बम "लिटिल बॉय" ने विस्फोट के तुरंत बाद ही करीब 70,000 लोगों की जान ले ली थी. शहर 10 मिनट में ही पूरी तरह से कब्रिस्तान बन चुका था. जहां बम गिरा वहां से 29 किलोमीटर के दायरे में आसमान से काली बारिश (रेडियोएक्टिव विकिरण) बारिश शुरू हो गई. कई महीनों तक यहां की तस्वीरें ही बर्बादी की कहानी बयां करती थीं. जो लोग बच गए उन्हें उम्र भर का दंश मिला. रेडियोएक्टिव विकरणों की वजह से कई अपंग हो गए. ऐसी ही एक लड़की की तस्वीर उस समय सामने आई थी जो बच तो गई थी, लेकिन उसकी आंखें खराब हो गईं थीं. तबाही का मंजर सिर्फ लाशों तक ही सीमित नहीं था, जो जिंदा थे उनकी जिंदगी मौत से बदतर हो गई थी. विस्फोट के बाद बढ़ी गर्मी की वजह से लोग नंगे घूमने को मजबूर थे.

‘जानबूझकर आम लोगों को बनाया गया था निशाना’

उस समय के एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने जो कुछ बताया था, उस पर यदि गौर करें तो यह साफ होता है कि इस हमले में कितनी बर्बरता की गई थी. उस सैन्य अधिकारी ने बताया था कि. "जापान की पूरी आबादी अमेरिकी सेना के टारगेट पर थी." हिरोशिमा में मारे गए 250 से भी कम लोग सैनिक थे, जबकि अधिकतर मारे गए लोगों में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं शामिल थीं. दरअसल, लड़ने की उम्र वाले जापानी पुरुष पहले ही सेना के साथ युद्ध में शामिल होने जा चुके थे. अति-यथार्थवादियों ने हमेशा इस स्थिति का पालन किया है कि, युद्ध पर अंतर्राष्ट्रीय कानून जो भी प्रतिबंध लगा सकता है वो हों. इस हमले ने बता दिया था कि युद्ध एक क्रूर व्यवसाय है और इसमें कुछ भी वर्जित नहीं है. इतिहासकार आमतौर पर "टोटल वार" के शीर्षक के तहत इस दृष्टिकोण को देखते हैं.

समय बदला लेकिन अब भी नहीं बदली है सोच

यह अब भी एक अलग तरह की बर्बरता है, जो वर्षों और दशकों बाद भी कई अमेरिकी दोनों परमाणु बम विस्फोटों का बचाव करने के लिए विशेष रूस से करते हैं. हिरोशिमा और नागासाकी बम विस्फोटों के सत्तर साल बाद 2015 के अंत तक इन बमबारी को लेकर एक प्यू रिसर्च सेंटर ने सर्वेक्षण किया. इस सर्वेक्षण में 56 प्रतिशत अमेरिकियों ने दोनों परमाणु बम विस्फोटों का समर्थन किया, जबकि अन्य 10 प्रतिशत ने इस पर कोई पक्ष नहीं रखा. बम के इस्तेमाल के बचाव में इन लोगों ने कई तरह के तर्क दिए थे. कुछ ने तो युद्ध में सब कुछ जायज वाले तर्क को देहराते हुए इन हमलों का बचाव किया. हैं

विस्फोट के सपोर्ट में अधिकतर अमेरिकी

विस्फोट के समर्थन में तर्क देने वालों का सिलसिला ऊपर तक ही सीमित नहीं था. कुछ लोगों का इसे लेकर तर्क है कि परमाणु बमबारी ने करोड़ों लोगों की जान बचाई. ऐसे लोग कहते हैं कि, अगर परमाणु बम नहीं गिराए जाते, तो अमेरिकी सेना औऱ मित्र देश जमीन पर युद्ध लड़ते. यह स्थिति अमेरिका के लिए आसान नहीं होती क्योंकि आयोवा जिमा की लड़ाई ने अमेरिकियों को दिखाया था कि जापानी अपने देश की आखिरी आदमी और शायद महिला और बच्चे की रक्षा तक के लिए खड़े रहेंगे. ऐसे में एक-एक कर जापान के लाखों-करोड़ों लोग मारे जाते. ऐसे में परमाणु बम गिराकर जापान को आत्मसमर्पण तक लाना बेहतर फैसला था.

युद्ध के बाद भी दिखा अमेरिका का दोहरा चरित्र

नागासाकी हमले के 2 दिन बाद 11 अगस्त 1945 को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन के बयान से यह साफ पता चलता है कि उनके दिमाग में परमाणु बम गिराने के पीछे जापानी लोगों की जान बचाने का मकसद निश्चित रूप से नहीं था. सैन्य योजनाकारों के दिमाग में भी यह विचार कहीं से नहीं था. इस हमले को लेकर जापानी जो एकमात्रा भाषा समझते हैं वो ये है कि, जब आपको किसी जानवर के साथ व्यवहार करना है तो आप उसके साथ जानवर जैसा ही व्यवहार करते हैं. यह सबसे खेदजनक है लेकिन फिर भी सच है." इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन दोनों बमबारियों में जापानियों के साथ पूरी तरह से अमानवीय व्यवहार किया गया था. जापान के साथ अमेरिका का अमानवीय व्यवहार इससे भी साफ हो जाता है कि जर्मनी के खिलाफ युद्ध में मुकदमा चलाने में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने हमेशा यह स्पष्ट किया था कि हमारे दुश्मन सिर्फ नाज़ी हैं, न कि सामान्य जर्मन. हालांकि, जापान के खिलाफ मुकदमा चलाने में ऐसा नजरिया नहीं दिखा था. सैन्य योजनाकारों और अधिकांश सामान्य अमेरिकियों ने समान रूप से खुद को जापानियों के खिलाफ युद्ध में देखा, न कि केवल जापानी नेतृत्व के खिलाफ. जापानियों के प्रति यह क्रूर नजरिया सिर्फ सैनिकों में ही नहीं अमेरिकी सरकार और समाज में सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों में भी नजर आया था. अमेरिकी युद्ध जनशक्ति आयोग के अध्यक्ष पॉल वी. मैकनट ने इस मुद्दे पर कहा कि, “उन्होंने पूरी तरह से जापानियों के विनाश का समर्थन किया था". वहीं राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के अपने बेटे इलियट ने उपराष्ट्रपति के सामने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने तब तक युद्ध जारी रखने का समर्थन किया था जब तक कि हम जापान की लगभग आधी आबादी को नष्ट नहीं कर देते.”

आधुनिक युग का था आदिम अपराध

एक केस इस पर बनाया जा सकता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम विस्फोट करने में, युद्ध अपराध, यहां तक कि मानवता के खिलाफ अपराध और राज्य आतंकवाद में शामिल होने का अपराध किया है. काफी उचित रूप से हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस तरह के दृष्टिकोण का आक्रामक रूप से मुकाबला किया जाएगा. हम कह सकते हैं कि हिरोशिमा का अपराध हमारे आधुनिक युग का आदिम अपराध है.

विस्फोट के समर्थन में अजीबो गरीब तर्क

फिर भी, क्या यह तर्क देना भी संभव है कि नागासाकी का अपराध हिरोशिमा के अपराध से भी बड़ा था. अमेरिकियों को दूसरा बम क्यों गिराना पड़ा? वे जापान के आत्मसमर्पण के लिए कुछ दिन और इंतजार क्यों नहीं कर सकते थे? नागासाकी बमबारी का बचाव करने वालों का तर्क है कि, चूंकि जापानियों ने हिरोशिमा बमबारी के तुरंत बाद आत्मसमर्पण नहीं किया था, इसलिए अमेरिकियों के लिए यह बिल्कुल स्पष्ट था कि वे लड़ाई जारी रखने के लिए दृढ़ थे. हो सकता है कि जापानियों ने माना हो कि संयुक्त राज्य अमेरिका के पास केवल एक बम है; कुछ लोगों का तर्क है कि जापानियों के लिए आत्मसमर्पण कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उनके समाज में योद्धा संस्कृति व्यापक थी और "ओरिएंटल संस्कृति" इस तरह के अपमानजनक अंत की अनुमति नहीं देती है. इन सबसे अलग यह तर्क भी दिया गया है कि अमेरिकी सैन्य योजनाकारों के पास एक परमाणु बम के रूप में एक खिलौना था और अगर खिलौने को खेलने में इस्तेमाल नहीं किया जाए तो फिर उसका क्या उपयोग है.

जापान पर विस्फोट के पीछे थी अमेरिका की महत्वाकांक्षा

जैसा कि मैंने कहा है, और कई अन्य लोगों ने मुझे बहुत पहले यह तर्क दिया है कि परमाणु बमबारी का उद्देश्य जापान को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित करना कभी नहीं था. युद्ध समाप्त होने से पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही अगले युद्ध की तैयारी कर रहा था, और वह भी एक मोर्टल दुश्मन के खिलाफ. सोवियत संघ और जापान, इस समय तक पूरी तरह से नष्ट हो चुकी शक्ति थीं. यहां वास्तव में अमेरिकियों के लिए तुलनात्मक रूप से रुचि की बात थी. अमेरिका स्टालिन को यह बताना चाहता था कि संयुक्त राज्य अमेरिका सोवियत संघ को दुनिया भर में साम्यवाद का जहर फैलाने और विश्व प्रभुत्व की तलाश करने के लिए तैयार नहीं होगा. हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक दोहरा पंच देने की कोशिश की. पहला ये कि जापान को खदेड़ दिया और दूसरा ये कि सोवियत संघ को नोटिस दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया में एक ताकतवर देश के रूप में अपने उभार के लिए तैयार था. नागासाकी के अपराध का अर्थ निकालने के लिए अभी काम किया जाना बाकी है.


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