2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को झटका देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वो 2024 में अकेले लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी. ममता बनर्जी ने जो कुछ कहा है वह अप्रत्याशित नहीं है. ख़ासकर जो तीन राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव हुआ, उनमें त्रिपुरा में कांग्रेस और सीपीएम मिलकर चुनाव लड़ी थी और टीएमसी अकेले लड़ी थी. हालांकि टीएमसी का प्रदर्शन मेघालय में तो देखने को मिला है, लेकिन त्रिपुरा में कुछ ख़ास नहीं रहा.
पश्चिम बंगाल में शुरू से ही टीएमसी, कांग्रेस और सीपीएम के खिलाफ लड़ते आ रही है. सीपीएम वहां तीन दशक तक सत्ता में रही है और कांग्रेस का भी सत्ता में रहने का इतिहास रहा है. लेकिन टीएमसी के आने से इन दोनों का ही वहां पर एक तरह से अस्तित्व मिट गया है. इन दोनों से संघर्ष करके टीएमसी ने अपना वहां प्रभुत्व कायम किया है.
एक बात तय है कि ममता बनर्जी का कांग्रेस से तो कभी दोस्ती होगी नहीं और सीपीएम से भी नहीं होगी. ममता बनर्जी ने जो रुख अपनाया है कि टीएमसी 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ेगी, इससे विपक्ष को एकजुट करने की कवायद को झटका लगा है. आपको याद होगा कि अभी कुछ महीने पहले ही बिहार में राजनीतिक उथल-पुथल हुआ और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी और कांग्रेस से दोस्ती कर ली. इसके साथ यह भी एक बात सामने आई कि नीतीश केंद्र की राजनीति में जाएंगे और विपक्ष को एकजुट करेंगे. लेकिन ममता बनर्जी के इस घोषणा से स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष तो अब एकजुट होने से रहा. और यह बात न सिर्फ ममता बनर्जी ने कही बल्कि इसी तरह का राग तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर भी अलाप रहे हैं. केसीआर भी वहां कांग्रेस से ही लड़ रहे हैं और वे भी कांग्रेस के फोल्ड में जाएंगे या नहीं और उसका नेतृत्व स्वीकार करेंगे यह भी होता हुआ नहीं दिख रहा है.
2024 में बीजेपी की राह है आसान
इसी तरह अगर आप इशारे-इशारे में देखें तो डीएमके नेता स्टालिन ने वहां बैठक की थी, जिसमें शरद पवार ने भी ये बात कही थी कि विपक्ष को एकजुट करने के लिए हमें मिलजुल कर लड़ना चाहिए और कहीं भी बिखराव की बात नहीं होनी चाहिए. कुल मिलाकर यह है कि विपक्ष में पीएम के चेहरे को लेकर कई दावेदार हैं. लेकिन विपक्षी एकजुटता को लेकर फिलहाल बहुत कुछ होता हुआ नहीं दिख रहा है. विपक्ष में चिंतन भले ही हो रहा है कि अगर हम बीजेपी को शिकस्त देना चाहते हैं तो हम सब को एकजुट होना चाहिए. लेकिन मुझे कहीं नहीं लगता है कि विपक्ष एकजुट हो पाएगा.
अभी बिहार में ही भाकपा माले का महाधिवेशन हुआ था, इसमें नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव के साथ ही कांग्रेस के सलमान खुर्शीद भी शामिल हुए थे. इसमें यह बात उठी तो नीतीश कुमार ने कहा कि विपक्ष को एकजुट करने के लिए कांग्रेस को पहल करनी चाहिए. इसके बाद बिहार के पूर्णिया में महागठबंधन की रैली हुई. उसमें भी ये बात आई. लेकिन कांग्रेस ने तो पहले से ही स्पष्ट कर दिया है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहाथा कि हमने विपक्ष को एकजुट करने के नाम पर और खासतौर पर क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के नाम पर बड़ी कुर्बानी दी है. लोकसभा के चुनाव में ऐसा नहीं होगा कि कांग्रेस 200 सीट लड़ेगी और क्षेत्रीय दल का प्रभुत्व होगा. यही बात अभी तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व है कांग्रेस को उसे स्वीकार करना चाहिए. मतलब ये कि जहां कांग्रेस नहीं है वहां का नेतृत्व क्षेत्रीय दल संभाले. तो कहीं न कही कुल मिलाकर विपक्ष के अंदर इतना विरोधाभास है कि विपक्ष एकजुट नहीं हो पाएगा और इससे 2024 में बीजेपी की राह आसान होगी.
तीसरे मोर्चे की कोई संभावना नहीं
सवाल उठता है कि क्या तीसरे मोर्चे की कोई संभावना है. तो फिर इससे जुड़ा एक सवाल और उठ जाता है कि अगर तीसरा मोर्चा बन भी जाता है तो उसका नेतृत्व कौन करेगा. ममता बनर्जी ने तो अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया है. कमोबेश यही रुख समाजवादी पार्टी और बसपा का भी है. चूंकि यूपी की राजनीति में 80 लोकसभा सीटें हैं, इसलिए विपक्ष की एकता के लिहाज ये सपा और बसपा महत्वपूर्ण पार्टी हो जाती है. मुझे लगता है कि लोकसभा के चुनाव में फ्रंट दो ही होगा, एक तरफ तो बीजेपी होगी और राष्ट्रीय स्तर पर जो मुख्य लड़ाई होगी वो कांग्रेस से ही होगी. लेकिन जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल का प्रभुत्व है वहां कांग्रेस तो हाशिए पर ही रहेगी. जैसे बिहार की ही बात करें तो अगर यहां पिछली बार कांग्रेस ने एक सीट जीता है तो हमें लगता है कि इस बार उसको तीन से चार सीट से अधिक नहीं मिलेगी. यहां विपक्ष में प्रमुख पार्टी की हैसियत आरजेडी और जेडीयू की है. लेकिन आरजेडी का पिछले चुनाव में खाता भी नहीं खुला था. स्वाभाविक रूप से फिलहाल यहां 80 विधानसभा सीट राजद के खाते में है, तो उसके हिसाब से अगर छह विधानसभा सीट का एक लोकसभा सीट है तो 13 सीटों पर तो उसकी दावेदारी ऐसे भी बनेगी. अब अगर जदयू के पास 17 सांसद हैं तो जब विपक्षी एकता में सीटों के बंटवारे की बात आएगी तो इसपर भी तनातनी होना तय है. कुल मिलाकर यही स्थिति है कि कोई तीसरा मोर्चा नहीं बनेगा. विपक्ष में अगर कोई मेन फ्रंट होगा तो वो कांग्रेस ही होगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह स्पष्ट रूप से कहा है कि कांग्रेस के बगैर विपक्ष का कोई सशक्त मोर्चा नहीं होगा.
ममता बनर्जी बनना चाहती हैं विपक्ष का चेहरा
ममता बनर्जी का संदेश साफ है कि अगर कांग्रेस के खिलाफ लड़ना है तो गैर कांग्रेस दल उनका नेतृत्व स्वीकार करें. चूंकि प्रधानमंत्री पद का एक चेहरा वो भी हैं, ऐसे में ममता बनर्जी किसी और का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगी. कुल मिलाकर ममता बनर्जी ने बीजेपी विरोधी जो रुख लिया है, उसमें उन्होंने ये विपक्ष को साफ-साफ बता दिया है कि इसके लिए उनके नेतृत्व को स्वीकार किए बिना बात आगे नहीं बढ़ेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)