पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को देश का प्रधानमंत्री बनना है. भले ही वे खुद ये बात खुलकर न कह रहीं हों लेकिन सियासी हलकों में उनकी ये महत्वकांक्षा छुपी नहीं लेकिन अपनी राजनीति सिर्फ पश्मि बंगाल तक समेट कर वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं. उसके लिये पहले उन्हें एक राष्ट्रीय चेहरा बनना होगा और ममता बनर्जी इन दिनों इसी काम में जुटीं हैं. बनर्जी के मुंबई दौरे को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है. मंगलवार की शाम ममता बनर्जी जब मुंबई हवाई अड्डे पर लैंड हुईं तो सबसे पहले पहुंचीं मशहूर सिद्धिविनायक मंदिर में. गणेशजी विघ्नहर्ता हैं और बनर्जी ने अपने सियासी सफर में आ रहे विघ्नों को हटाने की मांग गणपति बाप्पा से जरूर की होगी. सिद्धिविनायक मंदिर के बाद उनका अगला पडाव था गिरगांव चौपाटी पर बनाया शहीद स्मारक जहां उन्होने 26 नवंबर 2008 के हमले में शहीद हुए पुलिसकर्मी तुकाराम ओंबले को श्रद्धांजलि दी.


सियासी गलियारों में ममता मंदिर का इन दोनो ही जगहों पर जाना इमेज बिल्डिंग एक्सरसाईज के तौर पर देखा जा रहा है. बीजेपी हमेशा से ममता पर मुसलिम तुष्टीकरण का आरोप लगाते आयी है जिसका जवाब देने के लिये वे मंदिर चलीं गयीं. बीजेपी उनपर राष्ट्रविरोधी होने का आरोप भी लगा चुकी है, जिसका जवाब देने के लिये ममता ने आतंकी हमले में शहीद सिपाही के स्मारक पर जाना चुना. मुंबई पहुंचकर ममता ने जय मराठा, जय बांग्ला का नारा दिया जिसे भी सियासी चश्में से देखा जा रहा है.


ममता बनर्जी मुंबई आकर उद्धव टाकरे से मिलना चाहतीं थीं लेकिन बीमारी के कारण उद्धव अस्पताल में भर्ती हैं. इसलिये मुलाकात नहीं हो सकी. उद्धव ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री आदित्य ठाकरे, शिव सेना सांसद संजय राउत ने ममता बनर्जी से मुलाकात की. करीब आधे घंटे तक चली इस मुलाकात में सियासी चर्चा भी हुई. बीते दो साल से शिव सेना लगातार ममता बनर्जी के समर्थन में बोलते आयी है. पश्निम बंगाल विधान सभा चुनाव में जीत के बाद उन्हें सामना में बंगाल की शेरनी कहकर संबोधित किया गया था.


शिव सेना नेताओं के बाद ममता बनर्जी की जिस मुलाकात पर सबकी नजरें जमी हुई थी वो थी एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात. बुधवार के दिन बनर्जी ने पवार के घर जाकर उनसे मुलाकात की. ये मुलाकात इसलिये अहम मानी जा रही है क्योंकि ममता बनर्जी देश में बीजेपी विरोधी पार्टियों का एक फ्रंट तैयार कर रही है. ऐसे में एनसीपी जैसी पार्टी का समर्थन भी जरूरी है. बीजेपी विरोधी पार्टियों का फ्रंट शरद पवार भी तैयार करना चाहते हैं लेकिन ममता बनर्जी और शरद पवार की रणनीति में एक बडा फर्क है.


ममता बनर्जी विपक्ष का जो फ्रंट खडा करना चाहतीं हैं उसमें कांग्रेस नहीं है. जबकि साल 2019 में जब महाराष्ट्र में महाविकास आघाडी की सरकार बनी तब शरद पवार ने कहा कि इसी पैटर्न की गैर बीजेपी पार्टियों का गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर भी होना चाहिये. महाराष्ट्र के सत्तारूढ गठबंधन में शिव सेना, एनसीपी के साथ कांग्रेस भी शामिल है. पवार और बनर्जी में मतभेद कांग्रेस का साथ लेने को लेकर है.


उधर ममता बनर्जी के मुंबई आने के बाद कांग्रेस पार्टी की ओर से एक बयान जारी किया गया जिसमें उसकी चिंता साफ झलक रही है. महाराष्ट्र कांग्रेस के महासचिव जाकिर अहमद ने अपने बयान में कहा कि राहुल गांधी लड़ेंगे आरएसएस, बीजेपी, मोदी-शाह से. ममता बनर्जी लड़ेगी राहुल गांधी और कांग्रेस से. जाने-अनजाने ममता बनर्जी वही गलती करके आरएसएस, बीजेपी की मदद कर रही हैं जो अतीत में मायावती, मुलायम व अन्य कर चुके हैं. ममता बनर्जी स्वयं का आकलन करने में गलतफहमी का शिकार हो रही हैं. उन्हें वास्तविक राजनीति करने के लिए राजनीति के नौसिखिए प्रशांत किशोर से अपना पिंड छुड़ाना होगा.


यहां कांग्रेस की चिंता लाजिमी नजर आती है. ममता बनर्जी के बंगाल से बाहर पार्टी विस्तार अभियान की सबसे बडी भुक्तभोगी कांग्रेस ही है. (हाल ही में तृणमूल कांग्रेस ने मेघालय में कांग्रेस के 12 विधायकों का दलबदल करवा कर अपने साथ ले लिया. गोवा में कांग्रेस के दिग्गज नेता लुझिनो फलैरियो को साथ लेकर ममता बनर्जी ने उन्हें सांसद बना दिया. हरियाणा और उत्तर प्रदेश के भी कुछ कांग्रेसी नेताओं को हाल ही में तृणमूल कांग्रेस में शानिल किया गया है.) कुल मिलाकर तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल के बाहर विस्तार में जुटी है और ममता बनर्जी आक्रमक तरीके से इस अभियान की अगुवाई कर रहीं हैं.


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