उत्तराखंड के चमोली का माणा गांव अब 'भारत का पहला गांव' है. पहले इसे 'भारत का आखिरी गांव' कहा जाता था. बदलती घरेलू और विदेश नीति के दौर में अभी की सरकार ने सीमांत के गांवों पर खास ध्यान देना शुरू किया है. वहां विकास की गति भी बढ़ी है और इंफ्रास्ट्रक्चर को भी तेजी मिली है. चीन का थ्रेट परसेप्शन हो या विकास की चाहत, देश के सीमांत गांवों की तकदीर बदल रही है.
सीमांत इलाकों के लिए बदले नजरिए की अभिव्यक्ति
माणा गांव को भारत का पहला गांव घोषित करना एक स्वागत योग्य कदम है. यह भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन इसके अर्थ गहरे हैं. सीमांत गांवों के प्रति जो हमारी समझदारी है, वह बीते कुछ दशकों में उत्तरोत्तर बदली है और यह सकारात्मक तरीके से बदली है. यही बदलाव इसको दिखाता है. इसके दो पहलू हैं. एक तो विकास का, दूसरे सामरिक महत्व का. ऐतिहासिक संदर्भ में अगर हम देखें तो आज से 60-70 साल पहले जो समझदारी थी, वह चाहे जिस भी वजह से हो, इतिहास के जिस भी ज्ञान से निकली हो, वह तो बदली है. पहले की समझदारी थी कि सीमांत के गांवों तक सड़कों को ले जाना, बड़े पुलों को ले जाना, इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना, शायद सैन्य-रणनीतिक दृष्टि से सही नहीं है. युद्ध जैसी स्थितियों में शत्रु सेना उसका इस्तेमाल कर सकती है- ये उस जमाने की समझदारी थी और आप जानते हैं कि समझदारियों के संदर्भ होते हैं. वे संदर्भ धीरे-धीरे बदले. राष्ट्रीय सुरक्षा की जो हम बात करते हैं, वह फ्रंटियर जो होता है, वह हमारी सीमांत प्रदेश की जनता है.
विकास पर सीमांत प्रदेश की जनता का भी उतना ही अधिकार है, हम उसे दूर नहीं रख सकते हैं. जिस प्रकार से विकास बदला है, टीवी और इंटरनेट हरेक जगह पहुंचा है, उसमें विकास की चाहत तो हरेक जगह जागी है और सीमांत के गांवों को इससे महरूम रखना ठीक नहीं है. चाहे मध्य प्रदेश या राजस्थान के गांव हों या भुज और अरुणाचल प्रदेश के सीमांत गांव, सब जगह विकास की प्यास जगी है. सबको इंटरनेट और टीवी चाहिए, सड़कें चाहिए. दूरदराज के पहाड़ी इलाके भी अब अपेक्षा रखते हैं कि पूरे देश में जो सुविधाएं हैं, वहां भी हों. दूसरे, केंद्र के स्तर पर सोच बदली है.
इसी का दूसरा पहलू ये भी है कि भारत के जो सीमांत इलाके हैं, वह बहुत आबाद नहीं हैं. हरेक इलाका पंजाब और बंगाल की तरह नहीं है, जहां के सीमांत इलाके बिल्कुल आबाद हों. आप गुजरात देखिए, राजस्थान देखिए, अरुणाचल प्रदेश देखिए और लद्दाख देखिए. हजारों हजार वर्ग किलोमीटर है जहां जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है. अगर आप इन इलाके के युवाओं को ढंग की चीजें नहीं देंगे तो ये इलाके बिल्कुल खाली हो जाएंगे, जो रणनीतिक दृष्टि से बिल्कुल ठीक नहीं होगा. हमारी सामरिक समझदारी भी बदली है. सरकार अब रेलवे से लेकर सड़क तक उन इलाकों तक ले जा रही है. अभी एक बिल्कुल अच्छी योजना आई है- वाइब्रैंट विलेज वाली. इसमें आदर्श ग्राम बनाकर स्थानीय आबादी को उससे जोड़ने की समझदारी विकसित हुई है.
भारत यहां से शुरू होता है
माणा को प्रथम ग्राम घोषित करना दरअसल सरकार के स्तर पर बदले नजरिए को दिखाता है कि आप हमारे आखिरी नहीं, पहले गांव हो. यहां से भारत शुरू होता है. जहां तक इस बदले नजरिए के पीछे का कारण खोजने की बात है, तो संदर्भ मिले-जुले होते हैं. उनको अलग कर देखने की जरूरत नहीं है. माणा हो या सीमांत के कोई भी गांव, वे भारत का प्रवेश द्वार हैं. नॉर्थ ईस्ट हमारा गेटवे है- साउथ एशिया का. जब साउथ ईस्ट एशिया के लोग बात करते हैं तो उनके लिए ये गेटवे ऑफ इंडिया होता है. जहां तक चीन के खतरे की बात है, तो उससे इनकार तो पूरी तरह किया ही नहीं जा सकता. चीन के साथ जो हमारी सीमा है, तो दूसरी तरफ जो चल रहा है, वे तो हमसे बहुत आगे हैं.
चीन के हिसाब से देखें तो उन्होंने तो तगड़ा इनवेस्टमेंट किया है. हमने तो वाइब्रेंट विलेज जो शुरू किया है, चीन ने तो शाउ खान विलेज बहुत साल पहले से शुरू कर दिया है. हम तो एक सकारात्मक सोच के साथ विकास की बात कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने तो रणनीतिक दृष्टि से बहुत बढ़त ले ली है. वे हमसे 15-20साल आगे हैं, तो हमें तो बहुत कुछ करने की जरूरत है. अब उनके जो 'श्याओ खान' विलेज हैं यानी अंग्रेजी में जिसे वेल-ऑफ विलेज कहेंगे, उसमें तो पूरा का पूरा मिलिटरी-स्ट्रेटेजिक पर्सपेक्टिव ही काम कर रहा है. लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक उनके करीब 630 गांव हैं, जिन्हें इसी हिसाब से उन्होंने विकसित किया या कर रहे हैं, ताकि वे फ्रंटियर बन सकें. तिब्बत को लेकर उनकी जो भी परेशानी है, वह अलग है. इन गांवों में वह बॉर्डर सब्सिडी 5000 युआन दे रहे हैं. अब सवाल ये है कि वे वहां क्या कर रहे हैं, तो इसके लिए बहुत रॉकेट साइंस समझने की जरूरत नहीं है. उन्होंने तिब्बत पर नजर रखने और पीएलए के साथ कॉर्डिनेशन में काम करने के लिए इनको चुना है. उनको पूरे समन्वय के साथ काम करना सिखाया जा रहा है. चीन की तरफ से चुनौती तो आई है.
चीन का रुख भारत के प्रति बेहद कड़ा
चीन ने बहुत तगड़ा निवेश किया है. उनकी प्रशासनिक नीति है कि वह अपना कथित विकास आखिरी गांव तक ले जाएं. वे केवल हिमालय में ऐसा नहीं कर रहे, समंदर में भी कर रहे हैं. इसी वजह से सीमाओं पर या दक्षिण चीन महासागर में भी तनाव दिख रहा है. अभी हाल ही में चीन ने दो कानून बनाए हैं. फरवरी 2021 में उन्होंने न्यू कोस्टगार्ड लॉ बनाया और एक साल बाद न्यू लैंडबाउंड्री लॉ बनाया. इन कानूनों का मकसद भारत को ही घेरना है. जो लैंडबाउंड्री लॉ है, उसका अर्थ ये हुआ कि सीमा विवाद को इन्होंने संप्रभुता से जोड़ दिया है. मतलब यह कि बॉर्डर की तरफ उनका रवैया बहुत कड़ा हुआ है. उनके तमाम कदमों में एक कदम तो श्याओ खान विलेज है. तो, हमें तो चीन से बहुत कुछ समझने की जरूरत है.
चीन का रवैया हमारे बॉर्डर की तरफ बहुत बदला है. जिस तरह वे अरुणाचल प्रदेश में जो कर रहे हैं, उसका जवाब देने में हम सक्षम हैं. हां, चीन के इस तरह के कदम संवेदनशील मामलों को प्रभावित तो करेंगे. भारत को भी अपनी पूरी तैयारी करने की जरूरत है. इस नामकरण को इसी संदर्भ में देख सकते हैं.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]